फिल्म समीक्षा : तीन पत्ती
नयी और अलग सी प्रचलित और सामान्य फिल्मों की शैली से अलग है तीन पत्ती। इसके दृश्य विधान में नवीनता है। इस में हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे खांचों में बंधे चरित्र नहीं हैं। फिल्म की कहानी भी अलग सी है। एकेडमिक जगत, छल-कपट और लालच की भावनाएं और उन्हें चित्रित करने की रोमांचक शैली के कारण फिल्म उलझी और जटिल लग सकती है। व्यंकट सुब्रमण्यम मौलिक गणितज्ञ हैं। वे गणित में प्रोबैबिलिटी के समीकरण पर काम कर रहे हैं। अपनी धारणाओं को आजमाने के लिए वे तीन पत्ती के खेल का सहारा लेते हैं। उनका लक्ष्य एकेडमिक है, लेकिन उनके साथ आए प्रोफेसर शांतनु और चार स्टूडेंट धन के लालच में हैं। इस लालच की वजह से उनके रिश्ते और इरादे में बदलाव आता है। आइजक न्यूटन अवार्ड लेने लंदन पहुंचे व्यंकट सुब्रमण्यम वहां के गणितज्ञ पर्सी से मन का भेद खोलते हैं। फिल्म प्ऊलैशबैक और वर्त्तमान मे ं चलने लगती है। वे उस कचोट का भी जिक्र करते हैं, जिसकी वजह से वे खुद को इस अवार्ड का हकदार नहीं मानते। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि उनके साथ छल करने वाला व्यक्ति ही उन्हें अवार्ड दिलवा कर प्रायश्चित करता है। आखिरकार तीन पत्