फिल्म समीक्षा : डियर जिंदगी
फिल्म समीक्षा डियर जिंदगी -अजय ब्रह्मात्मज हम सभी की जिंदगी जितनी आसान दिखती है,उतनी होती नहीं है। हम सभी की उलझनें हैं,ग्रंथियां हैं,दिक्कतें हैं...हम सभी पूरी जिंदगी उन्हें सुलझाते रहते हैं। खुश रहने की कोशिश करते हैं। अनसुलझी गुत्थियों से एडजस्ट कर लेते हैं। बाहर से सब कुछ शांत,सुचारू और स्थिर लगता है,लेकिन अंदर ही अंदर खदबदाहट जारी रहती है। किसी नाजुक क्षण में सच का एहसास होता है तो बची जिंदगी खुशगवार हो जाती है। गौरी शिंदे की ‘ डियर जिंदगी ’ क्यारा उर्फ कोको की जिंदगी में झांकती है। क्यारा अकेली ऐसी लड़की नहीं है। अगर हम अपने आसपास देखें तो अनेक लड़कियां मिलेंगी। वे सभी जूझ रही हैं। अगर समय पर उनकी भी जिंदगी में जहांगीर खान जैसा ‘ दिमाग का डाक्टर ’ आ जाए तो शेष जिंदगी सुधर जाए। हिंदी फिल्मों की नायिकाएं अब काम करने लगी हैं। उनका एक प्रोफेशन होता है। क्यारा उभरती सिनेमैटोग्राफर है। वह स्वतंत्र रूप से फीचर फिल्म शूट करना चाहती है। उसे रघुवेंद्र से आश्वासन मिलता है। संयोग कुछ ऐसा बनता है कि वह स्वयं ही मुकर जाती है। मानसिक दुविधा में वह अनिच्छा के सा...