फिल्म समीक्षा : बॉम्बे टाकीज
- अजय ब्रह्मात्मज भारतीय सिनेमा की सदी के मौके पर मुंबई के चार फिल्मकार एकत्रित हुए हैं। सभी हमउम्र नहीं हैं, लेकिन उन्हें 21वीं सदी के हिंदी सिनेमा का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। फिल्म की निर्माता और वायकॉम 18 भविष्य में ऐसी चार-चार लघु फिल्मों की सीरिज बना सकते हैं। जब साधारण और घटिया फिल्मों की फ्रेंचाइजी चल सकती है तो 'बॉम्बे टाकीज' की क्यों नहीं? बहरहाल, यह इरादा और कोशिश ही काबिल-ए-तारीफ है। सिनेमा हमारी जिंदगी को सिर्फ छूता ही नहीं है, वह हमारी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है। भारतीय संदर्भ में किसी अन्य कला माध्यम का यह प्रभाव नहीं दिखता। 'बॉम्बे टाकीज' करण जौहर, दिबाकर बनर्जी, जोया अख्तर और अनुराग कश्यप के सिनेमाई अनुभव की संयुक्त अभिव्यक्ति है। चारों फिल्मों में करण जौहर की फिल्म सिनेमा के संदर्भ से कटी हुई है। वह अस्मिता और करण जौहर को निर्देशकीय विस्तार देती रिश्ते की अद्भुत कहानी है। करण जौहर - भारतीय समाज में समलैंगिकता पाठ, विमर्श और पहचान का विषय बनी हुई है। यह लघु फिल्म अविनाश के माध्यम से समलैंगिक अस्मिता को रेखांकित करने के साथ उसे समझ...