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फिल्‍म समीक्षा - वेलकम टू कराची

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-अजय ब्रह्मात्‍मज भारत और पाकिस्तावन के बीच पल रहे दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को तोड़ती कुछ फिल्मों की कड़ी में ‘वेलकम 2 कराची’ को भी रखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच किरदारों के मेल-मिलाप, हंसी-मजाक और हास्यास्पद प्रसंगों से मौजूद तनाव को कम करने के साथ समझदारी भी बढ़ सकती है। ‘फिल्मिस्तान’ ने यह काम बहुत खूबसूरती के साथ किया था। अफसोस कि ‘वेलकम 2 कराची’ का विचार तो नेक, कटाक्ष और मजाक का था, लेकिन लेखक-निर्देशक की लापरवाही से फिल्म फूहड़ और कमजोर हो गई। कई बार फिल्में पन्नों से पर्दे तक आने में बिगड़ जाती हैं।                                        याद करें तो कभी इस फिल्मं में इरफान खान थे। अभी जो भूमिका जैकी भगनानी ने निभाई है, उसी भूमिका को इरफान निभा रहे थे। क्या उन्होंने इसी स्क्रिप्ट के लिए हां की थी या जैकी के आने के बाद स्क्रिप्ट बदली गई और उसका यह हाल हो गया? सोचने की बात है कि हर कला...

फिल्‍म समीक्षा : यंगिस्‍तान

नई सोच की प्रेम कहानी -अजय ब्रह्मात्मज     निर्माता वासु भगनानी और निर्देशक सैयद अफजल अहमद की ‘यंगिस्तान’ राजनीति और चुनाव के महीनों में राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म पेश की है। है यह भी एक प्रेम कहानी, लेकिन इसका राजनीतिक और संदर्भ सरकारी प्रोटोकोल है। जब सामान्य नागरिक सरकारी प्रपंचों और औपचारिकताओं में फंसता है तो उसकी अपनी साधारण जिंदगी भी असामान्य हो जाती है।     देश के प्रधानमंत्री का बेटा अभिमन्यु कौल सुदूर जापान की राजधानी टोकियो में आईटी का तेज प्रोफेशनल है। वहां वह अपनी प्रेमिका के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहता है। वह पूरी मस्ती के साथ जी रहा है। एक सुबह अचानक उसे पता चलता है कि उसके पिता मृत्युशय्या पर हैं। अंतिम समय में वह पिता के करीब तो पहुंच जाता है, लेकिन अगले ही दिन उसे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। पार्टी की तरफ से उसे पिता का पद संभालना पड़ता है। इस कार्यभार के साथ ही उसकी जिंदगी बदल जाती है। उसे नेताओं, अधिकारियों और जिम्मेदारियों के बीच रहना पड़ता है। वह अपनी सहचर प्रेमिका के साथ पहले की तरह मुक्त जीवन नहीं जी पाता।   ...