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दरअसल : जल्दी हो जाते हैं प्रैक्टिकल

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-अजय ब्रह्मात्मज     आम जिंदगी में भी ऐसा होता है। मशहूर और व्यस्त होने के साथ व्यक्ति की प्राथमिकताओं के साथ नजरें भी बदल जाती हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इस बदलाव का कड़वा अनुभव होता है। दरअसल ़ ़ ़ यह बदलाव ही कथित व्यावहारिकता है। प्रैक्टिकल होना है। पुराना परिचय, संबंध, गर्मजोशी और सारी औपचारिकताएं समय के साथ समाप्त हो जाती हैं। स्थापित और मशहूर तो यों भी परवाह नहीं करते। उनकी नजरों में आने में सालों बीत जाते हैं। अनेक मुलाकातों के बाद हुई भेंट में भी उनके होंठो पर पहचान की मुस्कराहट नहीं होती। पहले बहुत तकलीफ होती थी। विस्मय होता था। ऐसा कैसे हो सकता है? अभी उस दिन तो कैसे हंस-हंस कर बातें कर रहे थे और आज पहचान भी नहीं रहे हैं।     फिल्म स्टारों के इस व्यावहारिक रवैए का खेल रोचक होता है। इवेंट या समारोह में पहुंचते ही उनकी नजरें स्वागत में सामने खड़ी भीड़ को स्कैन कर लेती है। वे सिक्युरिटी गार्ड के घेरे में आगे बढ़ते हुए वहीं रुकते हैं, जहां उन्हें रुकना चाहिए। आप कभी नहीं मिले हो तो संभव है वे प्रत्युत्तर में हाथ हिला दें या मिला लें। थोड़ा भी...