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जान भी लो यारो

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अभी मैं भ्रष्टाचार को आड़े हाथों लेती फिल्म जाने भी दो यारों की बातें कर रहा हूं। इस फिल्म पर केंद्रित पुस्तक जय अर्जुन सिंह ने लिखी है। सामान्य रूप से फिल्म प्रेमियों और विशेष रूप से जाने भी दो यारों के प्रशंसकों के लिए यह रोचक पाठ है। 12 अगस्त, 1983 को जाने भी दो यारों रिलीज हुई थी। तब से यह फिल्म दर्शकों को हंसाती आ रही है। आज की हास्य (कॉमेडी) फिल्मों की तरह इसमें नॉनसेंस, वल्गर और फिजिकल कॉमेडी नहीं है। जाने भी दो यारों अपने समय की सामाजिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। यह फिल्म मुंबई की पृष्ठभूमि में बिल्डर, कानून के रक्षक, उच्च अधिकारी और मीडिया की मिलीभगत से चल रहे भ्रष्ट तंत्र को उजागर करती है। फिल्म में एक गहरा संदेश है, लेकिन उसे उपदेश की तरह नहीं पेश किया गया है। यही कारण है कि फिल्म हंसाने के साथ चोट भी करती है। 18 सालों के बाद भी इस फिल्म का प्रभाव कम नहीं हुआ है। अफसोस की बात है कि हिंदी में दोबारा ऐसी फिल्म नहीं बनी। जय अर्जुन सिंह ने पूरे मन जाने भी दो यारों की मेकिंग की जानकारियां बटोरी हैं और उन्हें रोचक तरीके से फिल्मी पटकथा की तरह पेश किया है। यह पुस्तक फिल्म निर्मा...