फ़िल्म समीक्षा:चिंटू जी
-अजय ब्रह्मात्मज **** रंजीत कपूर का सृजनात्मक साहस ही है कि उन्होंने ग्लैमरस, चकमक और तकनीकी विलक्षणता के इस दौर में चिंटू जी जैसी सामान्य और साधारण फिल्म की कल्पना की। उन्हें ऋषि कपूर ने पूरा सहयोग दिया। दोनों के प्रयास से यह अद्भुत फिल्म बनी है। यह महज कामेडी फिल्म नहीं है। हम हंसते हैं, लेकिन उसके साथ एक अवसाद भी गहरा होता जाता है। विकास, लोकप्रियता और ईमानदारी की कशमकश चलती रहती है। फिल्म में रखे गए प्रसंग लोकप्रिय व्यक्ति की विडंबनाओं को उद्घाटित करने के साथ विकास और समृद्धि के दबाव को भी जाहिर करते हैं। यह दो पड़ोसी गांवों हड़बहेड़ी और त्रिफला की कहानी है। नाम से ही स्पष्ट है कि हड़बहेड़ी में सुविधाएं और संपन्नता नही है, जबकि त्रिफला के निवासी छल-प्रपंच और भ्रष्टाचार से कथित रूप से विकसित हो चुके हैं। तय होता है कि हड़बहेड़ी के विकास के लिए कुछ करना होगा। पता चलता है कि मशहूर एक्टर ऋषि का जन्म इसी गांव में हुआ था। उन्हें निमंत्रित किया जाता है। ऋषि कपूर की राजनीतिक ख्वाहिशें हैं। वह इसी इरादे से हड़बहेड़ी आने को तैयार हो जाते हैं। हड़बहेड़ी पहुंचने के बाद जब जमीनी सच्चाई से उनका ...