फ़िल्म समीक्षा:चांदनी चौक टू चायना
चूं चूं का मुरब्बा निकली 'चांदनी चौक टू चायना' निखिल आडवाणी, रोहन सिप्पी और उनकी टीम को अंदाजा लग गया होगा कि 'चांदनी चौक टू चायना' का प्रचार भारत में गैरजरूरी है। यहां इस फिल्म को पसंद कर पाना मुश्किल होगा, लिहाजा वे अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में अपनी फिल्म का प्रचार और प्रीमियर करते रहे। मालूम नहीं, उनकी मेहनत क्या रंग ले आयी? अक्षय कुमार का आकर्षण और दीपिका पादुकोण का सौंदर्य भी इस फिल्म से नहीं बांध सका। फिल्म की कहानी लचर थी और पटकथा इतनी ढीली कि गानों से उन्हें जोड़ा जाता रहा। 'चांदनी चौक टू चायना' में न तो चांदनी चौक की पुरजोश सरगर्मी दिखी और न चायना की चहल-पहल। साल के पहले बड़े तोहफे के रूप में आई 'चांदनी चौक टू चायना' चूं चूं का मुरब्बा निकली। यह स्थापित होता है कि सिद्धू चांदनी चौक का है,लेकिन वह चायना में कहां और किस शहर या देहात में है ... यह लेखक और निर्देशक के जहन में रहा होगा। पर्दे पर हमें कभी शांगहाए दिखता है, तो कभी पेइचिंग की फॉरबिडेन सिटी तो कभी नकली चीनी गांव ... इस गांव में बांस की खपचियों से बने मकान हैं। मकान में दैनिक उपयोग के ऐ...