दरअसल : नहीं याद आए ख्वाजा अहमद अब्बास
-अजय ब्रह्मात्मज पिछले महीने 7 जून को ख्वाजा अहमद अब्बास की 100 वीं सालगिरह थी। 21 साल पहले 1 जून 1987 को वे दुनिया से कूच कर गए थे। किशोरावस्था से प्रगतिशील विचारों से लैस ख्वाजा अहमद अब्बास मुंबई आने के बाद इप्टा में एक्टिव में रहे। अखबारों के लिए नियमित स्तंंभ लिखे। उन्होंने पहले ‘बांबे क्रॉनिकल’ और फिर ‘ब्लिट्ज’ के लिए ‘लास्ट पेज’ स्तंभ लिखा। वे फिल्मों की समीक्षाएं भी लिखा करते थे। आज की तरह ही तब के साधारण फिल्मकार अपनी बुरी फिल्मों की आलोचना पर बिदक जाते थे। किसी ने एक बार कह दिया कि आलोचना करना आसान है। कभी कोई फिल्म लिख क दिखाएं। ख्वाजा अहमद अब्बास ने इसे अपनी आन पर ले लिया। उन्होंने पत्रकारिता के अपने अनुभवों को फिल्म की स्क्रिप्ट में बदला। वे बांबे टाकीज की मालकिन और अभिनेत्री देविका रानी से मिले। देविका रानी ने उस पटकथा पर अशोक कुमार के साथ ‘नया संसार’ 1941 नामक फिल्म का निर्माण किया। इसे एनआर आचार्य ने निर्देशन किया था? निर्देशन में आने के पहले वे भी पत्रकार थे। क्रांतिकारी पत्रकारिता की थीम पर बनी यह फिल्म खूब चली थी। बाद में ख्वाजा अहमद अब्बास ने फिल्म निर्माण औ...