दरअसल : खिलाडि़यों पर बन रहे बॉयोपिक
-अजय ब्रह्मात्मज चंबल के इलाके में ‘ पान सिंह तोमर ’ की कथा तलाश करते समय फिल्म के लेखक संजय चौहान को नहीं मालूम था कि वे एक नए ट्रेंड की शुरूआत कर रहे हैं। सीमित बजट में अखबार की एक कतरन को आधार बना कर उन्होंने पान सिंह तोमर का जुझारू व्यक्तित्व रचा,जिसे निर्देश्क तिग्मांशु घूलिया ने इरफान की मदद से पर्दे पर जीवंत किया। उसके बाद से बॉयोपिक काट्रेड चला। हम ने राकेश ओमप्रकाश मेहरा के निर्देशन में ‘ भाग मिल्खा भाग ’ जैसी कामयाब फिल्म भी देखी। ‘ पान सिंह तोमर ’ की रिलीज के समय कोर्अ र्ख्ख नहीं थी। प्रोडक्शन कंपनी को भरोसा नहीं था कि इस फिल्म को दर्शक भी मिल पाएंगे। सबसे पहले तो इसकी भाषा और फिर पेशगी पर उन्हें संदेह था। लेखक और निर्देशक डटे रहे कि फिल्म की भाषा तो बंदेलखंडी ही रहेगी। उनकी जिद काम आई। फिल्म देखते समय एहसास नहीं रहता कि हम कोई अनसुनी भाषा सुन रहे हैं। फिलम कामयाब होने के बाद प्रोडक्शन कंपनी के आला अधिकारी आनी सोचा और मार्केटिंग रणनीति के गुण गाते रहे। सच्चाई सभी को मालूम है कि अनमने ढंग से रिलीज की गई इस फिल्म ने दर्शकों को झिंझोड़ दिया था। ...