रोजाना : खारिज करने का दौर
रोजाना खारिज करने का दौर -अजय ब्रह्मात्मज बकवास...बहुत बुरी फिल्म है...क्या हो गया है शाह रूख को...इम्तियाज चूक गए। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के बारे में सोशल मीडिया की टिप्पणियों पर सरसरी निगाह डालें तो यही पढ़ने-सुनने को मिलेगा। हर व्यक्ति इसे खारिज कर रहा है। ज्यादातर के पास ठोस कारण नहीं हैं। पूछने पर वे दाएं-बाएं झांकने लगते हैं। यह हमारे दौर की खास प्रवृति है। किसी स्थापित को खारिज करो। पहले मूर्ति बनाओ। फिर पूजो और आखिरकार विसर्जन कर दो। हम अपने देवी-देवताओं के साथ यही करते हैं। फिल्म स्टारों के प्रति भी हमारा यही रवैया रहता है। थिति इतनी नकारत्मक हो चुकी है कि अगर आप ने फिल्म के बारे में कुछ पाम्जीटिव बातें कीं तो ये स्वयंभू आलोचक(दर्शक) आप से ही नाराज हो जाएंगे और ट्रोलिंग होने लगेगी1 ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ सामान्य मनोरंजक फिल्म है। सच्चाई क्या है ? हिंदी फिल्मों के ढांचे में जकड़ी यह फिल्म किसी साहसिक प्रयोग से बचती है। इम्तियाज अली ने खुद की रोचक शैली विकसित कर ली है। यह उसी शैली की फिल्म है। उनके किरदारों(प्रेमियों) का बाहरी विरोध नहीं होता। ...