दरअसल : खलनायक बन जाते हैं थिएटर एक्टर
-अजय ब्रह्मात्मज ऐसा नहीं कह सकते कि यह किसी साजिश के तहत होता है,लेकिन यह भी सच है कि ऐस होता है। थिएटर से फिल्मों में आए ज्यादातर एक्टर आरंभिक सफलता के बाद खलनायक की भूमिकाओं में सिमट कर रह जाते हैं। लंबे समय से यही होता आ रहा है। आठवें दशक के आरंभ में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से आए ओम शिवपुरी समर्थ अभिनेता थे। छोटी-मोटी भूमिकाओं से उन्होंने पहचान बनाई। बाद में मुख्यधारा की फिल्मों में उन्हें मुख्य रूप से खलनायक की भूमिकाओं में ही इस्तेमाल किया गया। कभी-कभार चरित्र भूमिकाओं में भी हम ने उन्हें देखा। इस तरह उनकी बहुमुखी प्रतिभा का सदुपयोग नहीं हो पाया। उनके बाद अमरीश पुरी,मोहन आगाशे,अनुपम खेर,परेश रावल,आशीष विद्यार्थी,आशुतोष राणा,मुकेश तिवारी,मनोज बाजपेयी,इरफान खान,यशपाल शर्मा,जाकिर हुसैन,गोविंद नामदेव,के के मेनन,नीरज काबी,पंकज त्रिपाठी,दिब्येन्दु भट्टाचार्य,राजकुमार राव और मानव कौल जैसे अनेक नाम इस सूची में शामिल किए जा सकते हैं। दरअसल,हिंदी फिल्मों के नायक(हीरो) के खास प्रतिमान बन गए है। इस प्रतिमान के साथ उनकी उम्र भी ...