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फिल्‍म समीक्षा : कुछ लव जैसा

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उपेक्षित पत्‍‌नी का एडवेंचर -अजय ब्रह्मात्‍मज बरनाली राय अपनी पहली कोशिश कुछ लव जैसा में उम्मीद नहीं जग पातीं। विषय और संयोग के स्तर पर बिल्कुल नयी कथाभूमि चुनने के बावजूद उनकी प्रस्तुति में आत्मविश्वास नहीं है। आत्मविश्वास की इस कमी से स्क्रिप्ट, परफारमेंस और बाकी चीजों में बिखराव नजर आता है। फिल्म अंत तक संभल नहीं पाती। उच्च मध्यवर्गीय परिवार की उपेक्षित पत्‍‌नी मधु और भगोड़ा अपराधी राघव संयोग से मिलते हैं। पति अपनी व्यस्तता और लापरवाही में पत्‍‌नी का जन्मदिन भूल चुका है। इस तकलीफ से उबरने के लिए पत्‍‌नी मधु एडवेंचर पर निकलती है और अपराधी राघव से टकराती है। राघव के साथ वह पूरा दिन बिताती है। अपनी ऊब से निकलने के लिए वह राघव के साथ हो जाती है। दोनों इस एडवेंचरस संसर्ग में एक-दूसरे के करीब आते है। कहीं न कहीं वे एक-दूसरे को समझते हैं और उनके बीच कुछ पनपता है, जो लव जैसा है। बरनाली राय शुक्ला की दिक्कत इसी लव जैसी फीलिंग से बढ़ गई हैं। अगर उसे लव या लस्ट के रूप में दिखा दिया जाता तो भी फिल्म इंटरेस्टिंग हो जाती है। फिल्म मध्यवर्गीय नैतिकता की हद से नहीं निकल पाती। थोड़ी देर के बाद मधु क...