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फिल्‍म समीक्षा : काय पो छे

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-अजय ब्रह्मात्मज गुजराती भाषा का 'काय पो छे' एक्सप्रेशन हिंदी इलाकों में प्रचलित 'वो काटा' का मानी रखता है। पतंगबाजी में दूसरे की पतंग काटने पर जोश में निकला यह एक्सप्रेशन जीत की खुशी जाहिर करता है। 'काय पो चे' तीन दोस्तों की कहानी है। तीनों की दोस्ती का यह आलम है कि वे सोई तकदीरों को जगाने और अंबर को झुकाने का जोश रखते हैं। उनकी दोस्ती के जज्बे को स्वानंद किरकिरे के शब्दों ने मुखर कर दिया है। रूठे ख्वाबों को मना लेने का उनका आत्मविश्वास फिल्म के दृश्यों में बार-बार झलकता है। हारी सी बाजी को भी वे अपनी हिम्मत से पलट देते हैं। तीन दोस्तों की कहानी हिंदी फिल्मों में खूब पसंद की जा रही है। सभी इसका क्रेडिट फरहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' को देते हैं। थोड़ा पीछे चलें तो 1981 की 'चश्मेबद्दूर' में भी तीन दोस्त मिलते हैं। सिद्धार्थ, ओमी और जय। 'काय पो चे' में भी एक ओमी है। हिंदी फिल्मों में रेफरेंस पाइंट खोजने निकलें तो आज की हर फिल्म के सूत्र किसी पुरानी फिल्म में मिल जाएंगे। बहरहाल, 'काय पो छे' चेतन भगत के बेस्ट स...