कहीं हम खुद पर तो नहीं हंस रहे हैं?
-अजय ब्रह्मात्मज छोटे से बड़े पर्दे तक, अखबार से टी.वी. तक, पब्लिक से पार्लियामेंट तक; हर तरफ बिखरी मुश्किलों के बीच भी जिंदगी को आसान कर रही गुदगुदी मौजूद है। बॉलीवुड के फार्मूले पर बात करें तो पहले भी इसकी जरूरत थी, लेकिन आटे में नमक के बराबर। फिल्मों में हंसी और हास्य कलाकारों का एक ट्रैक रखा जाता था। उदास और इंटेंस कहानियों के बीच उनकी हरकतें और दृश्य राहत दे जाते थे। तब कुछ कलाकारों को हम कॉमेडियन के नाम से जानते थे। पारंपरिक सोच से इस श्रेणी के आखिरी कलाकार राजपाल यादव होंगे। उनके बाद कोई भी अपनी खास पहचान नहीं बना पाया और अभिनेताओं की यह प्रजाति लुप्तप्राय हो गई है। [हीरो की घुसपैठ] अब यह इतना आसान रह भी नहीं गया है। कॉमेडियन के कोने में भी हीरो ने घुसपैठ कर ली है। अमिताभ बच्चन से यह सिलसिला आरंभ हुआ, जो बाद में बड़ा और मजबूत होकर पूरी फिल्म इंडस्ट्री में पसर गया। पूरी की पूरी फिल्म कॉमेडी होगी तो कॉमेडियन को तो हीरो बनाया नहीं जा सकता। आखिर दर्शकों को भी तो रिझाकर सिनेमाघरों में लाना है। सो, वक्त की जरूरत ने एक्शन स्टार को कॉमिक हीरो बना दिया। आज अक्षय कुमार की रोजी-रोटी ही कॉ...