फिल्म समीक्षा : वेटिंग
सुकून के दो पल -अजय ब्रह्मात्मज अवधि- 107 मिनट स्टार – साढ़े तीन स्टार दो उम्दा कलाकारों को पर्दे पर देखना आनंददायक होता है। अगर उनके बीच केमिस्ट्री बन जाए तो दर्शकों का आनंद दोगुना हो जाता है। अनु मेनन की ‘ वेटिंग ’ देखते हुए हमें नसीरूद्दीन शाह और कल्कि कोइचलिन की अभिनय जुगलबंदी दिखाई पड़ती है। दोनों मिल कर हमारी रोजमर्रा जिंदगी के उन लमहों को चुनत और छेड़ते हैं,जिनसे हर दर्शक अपनी जिंदगी में कभी न कभी गुजरता है। अस्पताल में कोई मरणासन्न अवस्था में पड़ा हो तो नजदीकी रिश्तेदारों और मित्रों को असह्य वेदना सं गुजरना पड़ता है। अस्पताल में भर्ती मरीज अपनी बीमारी से जूझ रहा होता है और बाहर उसके करीबी अस्पताल और नार्मल जिंदगी में तालमेल बिठा रहे होते हैं। अनु मेनन ने ‘ वेटिंग ’ में शिव और तारा के रूप में दो ऐसे व्यक्तियों को चुना है। शिव(नसीरूद्दीन शाह) की पत्नी पिछले छह महीने से कोमा में है। डॉक्टर उम्मीद छोड़ चुके हैं,लेकिन शिव की उम्मीद बंधी हुई है। वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम नहीं हटाने देता। वह डॉक्टर को दूसरे मरीजों की केस स्टडी बताता ह...