ओम शांति ओम: यथार्थ से कोसों दूर
-अजय ब्रह्मात्मज फराह खान और शाहरुख खान की ओम शांति ओम का भी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। इंटरवल तक की फिल्म फिर भी मनोरंजक और रोचक लगती है। उसके बाद पुनर्जन्म, आत्मा, न्याय और बदले का जो वितान बुना गया है, वह उबाऊ है। फराह ने अगर इंटरवल तक की कहानी पर ही पूरी फिल्म बना दी होती तो अधिक प्रभावशाली निर्मित होती। फिल्म में दो ओम हैं, एक शांति है। एक सैंडी है, जो बाद में शांति का रूप लेती है। और एक शांति की अतृप्त आत्मा है, जो निर्माता मुकेश मेहरा से बदला लेने के बाद ही शांत होती है। चलिए थोड़ा विस्तार में चलें। ओमप्रकाश मखीजा (शाहरुख) जूनियर फिल्म आर्टिस्ट है। वह स्टार बनने के ख्वाब देखता है। उसे शांतिप्रिया से प्रेम हो गया है। वह सेट पर लगी आग से शांति को जान पर खेल कर बचाता है। शांति उसके जोखिम से प्रभावित होती है। ओम को लगता है कि शांति उसे चाहने लगी हैं। ओम का प्यार पींगें मारने लगता है। अगली बार जब मुकेश मेहरा शांति को सचमुच आग में झोंक देता है तो उसे बचाने के चक्कर में ओम जान भी गवां बैठता है। यहीं इंटरवल होता है। हमें पता चलता है कि ओम का पुनर्जन्म हो गया है। नए ओम को पिछले...