दरअसल : एनएफडीसी का फिल्म बाजार
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-अजय ब्रह्मात्मज सन् 1975 में एनएफडीसी की स्थापना हुई थी। उद्देश्य था कि सार्थक सिनेमा को बढ़ावा दिया जाए। हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में बन रही कमर्शियल फिल्मों के बीच से राह निकाली जाए। युवा निर्देशकों की सोच को समर्थन मिले और उनके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था की जाए। एनएफडीसी के समर्थन से सत्यजित राय से लेकर रितेश बत्रा तक ने उम्दा फिल्में निर्देशित कीं। उन्होंने भारतीय सिनेमा में वास्तविकता के रंग भरे। सिनेमा को कलात्मक गहराई देने के साथ भारतीय समाज के विविध रूपों को उन्होंने अपनी फिल्मों का विषय बनाया। देश में पैरलल सिनेमा की लहर चली। इस अभियान से अनेक प्रतिभाएं सामने आईं। उन्होंने अपने क्षेत्र विशेष की कहानियों से सिनेमा में भारी योगदान किया। कमी एक ही रही कि ये फिल्में सही वितरण और प्रदर्शन के अभाव में दर्शकों तक नहीं पहुंच सकीं। ये फिल्में मुख्य रूप से फेस्टिवल और दूरदर्शन पर ही देखी गईं। समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण पैरेलल सिनेमा काल कवलित हो गया। धीरे-धीरे एनएफडीसी के बारे में यह धारणा विकसित हो गई थी कि उसके समर्थन से बन...