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समय की क्रूरता से टकराती एन एच 10 - विनोद अनुपम

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http://singletheatre.blogspot.in/2015/04/10.html कहानी कोई नई नहीं,हिन्दी में अब तक सौ से ज्यादा फिल्में बन चुकी होंगी जिसमें नायिका अपने और अपने पति पर हुए अन्याय का हिंसक बदला लेती है। ‘ एन एच 10 ’ की कहानी भी वहीं से चलती वहीं खत्म होती है,लेकिन खत्म होने के पहले हरेक मोड और घुमाव पर यह जिन जिन सवालों से टकराती है,वह इस फिल्म को एक नई ऊंचाई पर खडी करती है।हाल के वर्षों में आयी फिल्मों में ‘ एन एच 10 ’ को ऐसी कुछेक फिल्म में शामिल किया जा सकता है जो फ्रेम दर फ्रेम उंची उठती चली जाती है,पूरी फिल्म में ऐसे मौके विरले ढूंढे जा सकते हैं,जहां लगे कि लेखक निर्देशक के पास कहने के लिए कुछ नहीं है।और वह अपनी शून्यता की भरपाई खूबसूरत दृश्यों या आइटम नंबर या भारी भरकम संवादों से करने की कोशिश कर रहा है।निर्देशक नवदीप सिंह की कुशलता इसी से समझी जा सकती है कि महिला सशक्तीकरण,ऑनर कीलिंग,उपभोक्तावाद,शहरीकरण,कानून व्यवस्था,पुलिस व्यवस्था,पंचायती राज और समस्याओं के प्रति समाजिक चुप्पी जैसे मुद्दों को उधेडती यह फिल्म दृश्यों के सहारे ही संवाद करती है,यहां शब्दों की अहमियत बस दृश्य को सपो...

बांध लिया एनएच 10 की स्क्रिप्‍ट ने - अनुष्‍का शर्मा

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-अजय ब्रह्मात्मज  ‘एनएच 10’ की घोषणा के समय एक ही सवाल गूंजा कि अनुष्का शर्मा को इतनी जल्दी निर्माता बनने की जरूरत क्यों महसूस हुई ? पहले हिंदी फिल्मों की हीरोइनें करिअर की ढलान पर स्वयं फिल्मों का निर्माण कर टेक लगाती थीं। या फिर रिटायरमेंट के बाद करिअर ऑप्शन के तौर पर प्रोडक्शन में इंवेस्ट करती थीं। फिल्मों सब्जेक्ट इत्यादि में उनकी राय नहीं चलती थी। अनुष्का शर्मा ने ‘एनएच 10’ के निर्माण के साथ नवदीप सिंह को निर्देशन का मौका भी दिया। नवदीप सिंह ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’ के बाद अगली फिल्म नहीं बना पा रहे थे। किस्सा है कि नवदीप सिंह ने पढऩे और सोचने के लिए अनुष्का के पास स्क्रिप्ट भेजी थी। अनुष्‍का को स्क्रिप्ट इतनी अच्छी लगी कि वह लीड रोल के साथ प्रोडक्शन के लिए भी तैयार हो गईं। अनुष्का से यह मुलाकात उनके घर में हुई। इन दिनों फिल्म स्टार इंटरव्यू के लिए भी किसी पंचतारा होटल के कमरे या स्टूडियो के फ्लोर का चुनाव करते हैं। घर पर बुलाना बंद सा हो गया। प्रसंगवश बता दें कि अनुष्का के घर की सजावट में सादगी है। लगता नहीं कि आप किसी फिल्म स्टार के घर में बैठे हों। फिल्मों की चमक से परे ...

फिल्‍म समीक्षा : एनएच 10

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'अजय ब्रह्मात्‍मज  स्टार: 4 नवदीप सिंह और अनुष्का शर्मा की 'एनएच 10' पर सेंसर की कैंची चली है। कई गालियां, अपशब्द कट गए हैं और कुछ प्रभावपूर्ण दृश्यों को छोटा कर दिया गया है। इस कटाव से अवश्य ही 'एनएच 10' के प्रभाव में कमी आई होगी। 'एनएच 10' हिंदी फिल्मों की मनोरंजन परंपरा की फिल्म नहीं है। यह सीधी चोट करती है। दर्शक सिहर और सहम जाते हैं। फिल्म में हिंसा है, लेकिन वह फिल्म की थीम के मुताबिक अनगढ़, जरूरी और हिंसक है। चूंकि इस घात-प्रतिघात में खल चरित्रों के साथ नायिका भी शामिल हो जाती है तो अनेक दर्शकों को वह अनावश्यक और अजीब लग सकता है। नायिका के नियंत्रण और आक्रमण को आम दर्शक स्वीकार नहीं कर पाता है। दरअसल, प्रतिशोध और प्रतिघात के दृश्यों के केंद्र में नायक(पुरुष) हो तो पुरुष दर्शक अनजाने ही खुश और संतुष्ट होते हैं। 'एनएच 10' में इंटरवल से ठीक पहले अपने पति की रक्षा-सुरक्षा के लिए बेतहाशा भागती मीरा के बाल सरपट भागते घोड़़ों के अयाल की हल में उछलते है। वह अपने तन-बदन से बेसुध और मदद की उम्मीद में दौड़ी जा रही है। नवदीप सिंह ने क...

एनएच 10 : खास सिचुएशन में पावरफुल हुई औरत- नवदीप सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’ के सात सालों के बाद नवदीप सिंह की फिल्म ‘एनएच 10’ आ रही है। इस फिल्म में अनुष्का शर्मा मेन लीड में हैं। दूसरी फिल्म में इतनी देरी की वजह पूछने पर नवदीप सिंह स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, ‘बीच में मेरी दो फिल्मों की घोषणाएं हुईं। ‘बसरा’ और ‘रॉक पर शादी’। ‘रॉक पर शादी’ की तो शूटिंग शुरू भी हो गई थी। बीस दिनों की शूटिंग के बाद वह अटक गई। इनमें काफी समय निकल गया।’ दरअसल,नवदीप अलग सोच के निर्देशक हैं। उन्हें जिदी भी कहा जाता है। नवदीप इससे इंकार नहीं करते। वे जोड़ते हैं,‘मेरी जिद से ज्यादा निर्माताओं की अपनी दिक्कतें रहती हैं। उन्हें मेरी स्क्रिप्ट पसंद आती है,लेकिन वे यह कहना नहीं भूलते कि यह टिपिकल हिंदी फिल्म नहीं है। उन्हें डर रहता है कि नई किस्म की फिल्म है। चलेगी,नहीं चलेगी। यही समय अगर साउथ की फिल्म की रीमेक में लगाया जाए तो रिटर्न पक्का है। ज्यादातर निर्माता स्क्रिप्ट पढ़ कर फिल्म की कल्पना नहीं कर पाते। वे स्टार,सेटअप और नाम देखते हैं। वे किसी भी दूसरी भाषा की फिल्म देख कर आश्वस्त हो जाते हैं कि उसक कुछ प्रतिशत भी रीमेक ह...

क्यों नहीं केयरफ्री हो सकती मैं-अनुष्का शर्मा

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प्रस्तुति-अजय ब्रह्मात्मज मैं आर्मी बैकग्राउंड से आई हूं। अलग-अलग शहरों में रही। परिवार और आर्मी के माहौल में कभी लड़के और लड़की का भेद नहीं फील किया। मेरे पेरेंट्स ने कभी मुझे अपने भाई से अलग तरजीह नहीं दी। मैं लड़को और लड़कियों के साथ एक ही जोश से खेलती थी। मेरे दिमाग में कभी यह बात नहीं डाली गई कि यह लड़का है,यह लड़की है। गलती वहीं से आरंभ होती है,जब हम डिफाइन करने लगते हैं। उनकी तुलना करने लगते हैं। लड़कियां लड़कियों जैसी ही रहें और आगे बढ़ें। लड़कियों पर यह नहीं थोपा जाना चाहिए कि उन्हें कैसा होना चाहिए? लड़किया होने की वजह से उन पर पाबंदियां न लगें। अगर कोई आदर्श और स्टैंडर्ड है तो वह दोनों के लिए होना चाहिए। अब जैसे कि हीरोइन सेंट्रिक फिल्म ¸ ¸ ¸यह क्या है? क्या हीरो सेंट्रिक फिल्में होती हैं?     बचपन से मैंने जिंदगी जी है,उसकी वजह से लड़के और लड़की के प्रति दोहरे रवैए से मुझे दिक्कत होती है। मैं नहीं झेल पाती। अपने देश में ऐसे ही अनेक समस्याएं हैं। हमारी एक समस्या महिलाओं की सुरक्षा है। लिंग भेद की वजह से असुरक्षा बढ़ती है। औरतें असुरक्षित रहेंगी तो विकास का नारा बेमानी हो...