इश्किया : सोनाली सिंह
इश्किया............सोचा था की कोई character होगा लेकिन......पूरी फिल्म में इश्क ही इश्क और अपने-अपने तरीके का इश्क। जैसे भगवान् तो एक है पर उसे अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग रूप में उतार दिया है । जहाँ खालुजान के लिए इश्क पुरानी शराब है जितना टाइम लेती है उतनी मज़ेदार होती है । इसका सुरूर धीरे - धीरे चढ़ता है । वह अपनी प्रेमिका की तस्वीर तभी चाय की मेज़ पर छोड़ पाता है जब उसके अन्दर वही भाव कृष्णा के लिए जन्मतेहै । वहीँ उसके भांजे के लिए इश्क की शुरुआत बदन मापने से होती है उसके बाद ही कुछ निकलकर आ सकता है। कहे तो तन मिले बिना मन मिलना संभव नहीं है। व्यापारी सुधीर कक्कड़ के लिए इश्क केवल मानसिक और शारीरिक जरूरतों का तालमेल है । वह बस घरवाली और बाहरवाली के लिए समर्पित है और किसी की चाह नहीं रखता। मुश्ताक के लिए उसकी प्रेमिका ही सबकुछ है । वह प्रेम की क़द्र करता है । उसे अहसास है " मोहब्बत क्या होती है '। इसी वजह से वह विलेन होने के बाबजूद, मौका मिलने के बाद भी अंत में कृष्ण, खालुजान या फिर बब्बन किसी पर भी गोली नहीं चला पता। विद्याधर वर्मा के लिए प्रेम है पर कर्त्तव्य से ऊपर नहीं...