हिन्दी फिल्म:महिलायें:आठवां दशक
आठवां दशक हर लिहाज से खास और अलग है.श्याम बेनेगल ने १९७४ में 'अंकुर' फ़िल्म में शबाना आज़मी को मौका दिया.उनकी इस कोशिश के पहले किसी ने सोचा नहीं था कि साधारण नैन-नक्श की लड़की हीरोइन बन सकती है.मशहूर शायर कैफी आज़मी की बेटी शबाना ने साबित किया कि वह असाधारण अभिनेत्री हैं.उनके ठीक पीछे आई स्मिता पाटिल ने भी दर्शकों का दिल जीता.हालांकि हेमा मालिनी को राज कपूर की फ़िल्म 'सपनों का सौदागर' १९६८ में ही मिल चुकी थी,लेकिन १९७० में देव आनंद के साथ'जॉनी मेरा नाम' से हेमा के हुस्न का ऐसा जादू चला कि आज तक उसका असर बरकरार है.एक और अभिनेत्री हैं इस दौर की,जो उम्र बढ़ने के साथ अपना रहस्य गहरा करती जा रही हैं.जी हाँ, रेखा के ग्लैमर की घटा 'सावन भादो' से छाई.अमिताभ और रेखा की जोड़ी ने इस दशक में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया.अपने अलग अंदाज और अभिनय के लिए सिम्मी गरेवाल जानी गयीं.सफ़ेद कपडों में वह आज भी टीवी पर अवतरित होती हैं तो दर्शक उनकी मृदुता के कायल होते हैं.१९७३ में राज कपूर की 'बॉबी' से आई डिंपल कपाडिया पहली फ़िल्म के बाद ही राजेश खन्ना के घर में गायब