फिल्म समीक्षा : रब्बा मैं क्या करूं
-अजय ब्रह्मात्मज अमृत सागर चोपड़ा ने '1971' से शुरुआत की थी। इस फिल्म के न चल पाने के अनेक कारण थे, लेकिन अमृत सागर चोपड़ा की क्रिएटिव कोशिश की सभी ने सराहना की थी। 'रब्बा मैं क्या करूं' कामेडी केतड़केके साथ पेश मैरिज ड्रामा है। इसकी सराहना नहीं की जा सकती। फिल्म में सराहने योग्य केवल सागर परिवार के अभिनेता आकाश चोपड़ा हैं। उनकी प्रेजेंस आकर्षक है। वे सही स्क्रिप्ट चुनें तो संभावनाएं बढ़ेंगी। आकाश की शादी है। उसकी शादी में तीनों मामा और अन्य रिश्तेदार आए हैं। सभी अपने-अपने हिसाब से खुशी शादीशुदा जिंदगी के टिप्स देते हैं। संयोग से तीनों मामा के विवाहेतर संबंध हैं और वे अपनी बीवियों को धोखा देने में यकीन रखते हैं। अगर यह पारिवारिक दोष है तो नायक की मां कैसे बची रह गई? बहरहाल नायक को उसके एक भाई 'भाईचारा' सिखाते हैं। इस सबक में फिर से बीवी को धोखा देने की शिक्षा है। नायक के विवाह की पृष्ठभूमि में पूरी कहानी चलती है। इस परिवार के सारे सदस्य भोंडे और अस्थिर हैं। यहां तक कि खड़ूस से दिख रहे ताऊ भी अपनी जवानी में 'भाईचारा' निभा चुके हैं। अमृत सागर चो...