फिल्म समीक्षा : डिपार्टमेंट
-अजय ब्रह्मात्मज राम गोपाल वर्मा को अपनी फिल्म डिपार्टमेंट के संवाद चमत्कार को नमस्कार पर अमल करना चाहिए। इस फिल्म को देखते हुए उनके पुराने प्रशंसक एक बार फिर इस चमत्कारी निर्देशक की वर्तमान सोच पर अफसोस कर सकते हैं। रामू ने जब से यह मानना और कहना शुरू किया है कि सिनेमा कंटेंट से ज्यादा तकनीक का मीडियम है, तब से उनकी फिल्म में कहानियां नहीं मिलतीं। डिपार्टमेंट में विचित्र कैमरावर्क है। नए डिजीटल कैमरों से यह सुविधा बढ़ गई है कि आप एक्सट्रीम क्लोजअप में जाकर चलती-फिरती तस्वीरें उतार सकते हैं। यही कारण है कि मुंबई की गलियों में भीड़ में चेहरे ही दिखाई देते हैं। कभी अंगूठे से शॉट आरंभ होता है तो कभी चाय के सॉसपैन से ़ ़ ़ रामू किसी बच्चे की तरह कैमरे का बेतरतीब इस्तेमाल करते हैं। डिपार्टमेंट रामू की देखी-सुनी-कही फिल्मों का नया विस्तार है। पुलिस महकमे में अंडरवर्ल्ड से निबटने के लिए एक नया डिपार्टमेंट बनता है। संजय दत्त इस डिपार्टमेंट के हेड हैं। वे राणा डग्गुबाती को अपनी टीम में चुनते हैं। दोनों कानून की हद से निकल कर अंडरवर्ल्ड के खात्मे का हर पैंतरा इस्तेम