फिल्म समीक्षा : हलाहल
फिल्म
समीक्षा
हलाहल
निर्देशक:
रणदीप झा
निर्माता
: इरोस
लेखक
: जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी
मुख्या
कलाकार : सचिन खेडेकर,बरुन सोबती
स्ट्रीमिंग
प्लेटफार्म : इरोस
अवधि
: 136 मिनट
प्रदर्शन
तिथि : 21 सितम्बर 2020
-अजय
ब्रह्मात्मज
इरोस
पर स्ट्रीम हो रही ‘हलाहल’ रणदीप झा की
पहली फिल्म है. रणदीप झा ने फिल्म करियर की शुरुआत दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘शांघाई’
से की थी. बाद में अनुराग कश्यप की टीम में वे शामिल हुए. अनुराग के साथ वे ‘अग्ली’,
‘रमन राघव’ और ‘मुक्काबाज’ फिल्म में एसोसिएट डायरेक्टर रहे.
इस फिल्म को जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी ने लिखा है. फिल्म
शिक्षा जगत मैं व्याप्त भ्रष्टाचार को छूती है. माना जा रहा है इस फिल्म की
प्रेरणा मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से ली गई है. ‘हलाहल’ की घटनाएं और प्रसंग
में व्यापम की व्यापकता तो नहीं है, लेकिन इस भ्रष्टाचार में लिप्त संस्थान,पोलिस,
नेता और शहर के रसूखदार व्यक्तियों की मिलीभगत सामने आती है. यूँ लगता है देश का
पूरा तंत्र भ्रष्टाचार में लिप्त है और सभी के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
‘हलाहल’ रात की नीम रोशनी में भागते दो किरदारों के साथ शुरू
होती है. एक लड़का आगे भगा जा रहा है और लड़की उसे पीछे से आवाज दे रही है. पार्श्व
का रहस्यमय संगीत इस भागमभाग को थोड़ा रहस्य प्रदान करता है. तभी एक सड़क दुर्घटना
होती है और लड़की की मौत हो जाती है. पता चलता है कि इन दोनों के पीछे भी कोई लगा
हुआ है. तीन गुंडे परदे पर उभरते हैं. वे लड़की की लाश को जला देते हैं. लड़की का
नाम अर्चना है और उसके पिता डॉ. शिव शर्मा हैं. वे रोहतक में मेडिकल प्रैक्टिस कर
रहे हैं. डॉ. शिव शर्मा को बेटी अर्चना की मौत की खबर शोक और हैरत में डाल देती है.
उन्हें बताया जाता है कि अर्चना ने आत्महत्या कर ली है. उन्हें यकीन नहीं होता और
वह इसकी दरियाफ्त और तहकीकात में जुट जाते हैं. पुलिस उनकी मदद नहीं कर रही है.
बेटी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उनका शक गहरा जाता है, क्योंकि उसका ब्लड ग्रुप
रिपोर्ट में बदला हुआ है. डॉ. शिव शर्मा की मुलाकात युसूफ नाम के पुलिस अधिकारी से
होती है. भावनात्मक रूप से टूटे डॉ. शिव शर्मा को पुलिस अधिकारी यूसुफ पैसे कमाने
के शिकार के रूप में देखता है. वह मदद के लिए आगे बढ़ता है और दोनों पक्षों से
पैसे वसूलते रहता. उसका प्रिय वाक्य है
‘हर चीज की कीमत होती है’.
जीशान और जिब्रान ने यूसुफ का रोचक किरदार रचा है. कहानी आगे
बढ़ने के साथ युसूफ अपनी हरकतों से इंटरेस्ट को जागृत रखता है. रहस्य खुलने के साथ
उलझते जाते हैं. पता चलता है कि इस मामले में अनेक किरदार जुड़े हुए हैं और एक-एक
कर उनकी हत्याएं भी होती जा रही हैं. मामला गहराता है. एक स्थिति के बाद युसूफ का
जमीर जागता है. वह डॉक्टर शर्मा की वाजिब मदद करने लगता है. उसका मकसद भी अपराधी
को खोजना हो जाता है.
रणदीप झा की फिल्म ‘हलाहल’ का माहौल और कहन की शैली पर अनुराग
कश्यप असर साफ दिखता है. जीशान कादरी और अनुराग कश्यप की शैली और शिल्प की पारम्परा रणदीप झा के निर्देशन में देखी जा
सकटी है. उन्हीं के स्टाइल की यह एक शाखा है, जिसमें रणदीप ने अपनी तरफ से कुछ
चीजें जोड़ी हैं, जो अभी थोड़ी अनगढ़ लगती हैं. फिल्म के संवाद, दृश्यों में निहित
हास्य और रोमांच फिल्म की गति को बनाए रखता है. र
णदीप झा ने सचिन खेडेकर और बरुण सोबती की क्षमताओं का सदुपयोग
किया है. दोनों कलाकारों ने उनकी जरूरतों को अच्छी तरह पूरा किया है. फिल्म के
सहयोगी कलाकार अपनी छोटी भूमिकाओं में ही कुछ ना कुछ जोड़ते हैं. अपनी पहली फिल्म
में रणदीप झा आश्वस्त करते हैं कि वह अनुराग कश्यप की शैली और शिल्प के संवाहक
हैं. उन्हें अगली फिल्मों में अपनी विशेषताएं जोड़नी पड़ेंगी.
इस फिल्म का क्लाइमैक्स यह जाहिर करता है की ईमानदारी और बेईमानी
बहुत ही सापेक्ष स्वभाव हैं,. जो मनुष्य की अंतर्भावना के साथ बाहरी स्थितियों पर
निर्भर करते हैं. इस फिल्म का क्लाइमैक्स यह जाहिर करता है की आंखों से दिख रही
सच्चाई के पीछे के समीकरण बदल जाते हैं और हम अपेक्षित परिणाम नहीं पाने से बतौर
दर्शक निराश होते हैं.
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