सिनेमालोक : हिंदी सिनेमा की हिंदी
सिनेमालोक
हिंदी सिनेमा की हिंदी
-अजय ब्रह्मात्मज
कल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस था. पूरे देश में अनेक समारोह और जलसे
हुए. सोशल मीडिया पर हिंदीप्रेमियों ने एक-दूसरे को बधाइयां दीं. हिंदी के समर्थन
में ढेर सारी बातें लिखी गयीं. अगर हम सोशल मीडिया की पोस्ट और टिप्पणियों का
अध्ययन करें तो पाएंगे कि मुख्य स्वर कातर और दुखी था. उन्हें कहीं न कहीं यह
शिकायत थी कि हिंदी को जो महत्व मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल पा रहा है. आजादी के
72 सालों के बाद भी इस देश की राजभाषा होने के बावजूद हिंदी
प्रशासन, शिक्षा और अनेक संस्थानों से बाहर है. कुछ टिप्पणियों में हिंदी फिल्म
इंडस्ट्री को भी निशाना बनाया गया. यह आपत्ति रही है कि हिंदी फिल्मों के स्टार और
कलाकार सार्वजनिक मंचों से सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी का ही इस्तेमाल करते हैं. चंद
कलाकार जरूर ऐसे हैं, जो हिंदी में भी संवाद करते हैं या कर सकते हैं. अधिकांश की
मजबूरी है कि हिंदी बोलने में उनका प्रवाह टूट जाता .
पिछले 10 सालों में पूरे देश में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हुआ है.
मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के बच्चे भी अब अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करते हैं.
नतीजा यह होता है कि हाई स्कूल पास करते-करते हिंदी लिखने और बोलने में उनकी
अंग्रेजी से हदबंदी हो जाती है. अगर उच्च शिक्षा में गए तो हिंदी बिल्कुल छूट जाती
है. चार-पांच सालों के बाद उन्होंने फिल्मों का रुख किया तो मुंबई आने पर उन्हें
हिंदी भाषा और उसके उच्चारण का क्रैश कोर्स करना पड़ता है. अहिंदीभाषी क्षेत्रों
से आए कलाकारों के साथ यह समस्या थोड़ी जटिल और गंभीर है, लेकिन हिंदी प्रदेश से
आए कलाकारों को भी मानक हिंदी के लिए अपने लहजे व् उच्चारण को दुरुस्त करना पड़ता
है. हिंदी फिल्मों के चर्चित चेहरे पर गौर करें तो पाएंगे उनमें से बड़ी संख्या
वैसे कलाकारों की है, जिनकी शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी माध्यम से हुई है. कुछ तो
विदेशों से भी पढ़ कर आए हैं. पढ़ाई के दौरान माहौल और मजबूरी से हिंदी से उनका संपर्क
छूटता जाता है. अगर वे उत्तर भारत के मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे हैं तो जरूर
मां-बाप और भाई-बहन से अपनी मातृभाषा या हिंदी में बातें करते हैं. उनकी व्यवहारिक
और संपर्क की भाषा अंग्रेजी हो चुकी होती है. आप शहरों में कार्यरत किसी भी उत्तर
भारतीय परिवारों में जाएं तो आप वहां हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं, किताबें और अन्य
पाठ्य सामग्री नहीं पाएंगे .वे सिर्फ वेब सीरीज सिनेमा और टीवी शो हिंदी में देखते
हैं. पार्लियामेंट में चल रही बहसें हिंदी में सुनते हैं. हां, हिंदी के कुछ समाचार
चैनल भी इधर बेवजह पॉपुलर हो गए हैं.
इस माहौल और पृष्ठभूमि में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से हिंदी न
बरतने की शिकायत बहुत वाजिब नहीं लगती. हिंदी फिल्मों में आई नई पीढ़ी हिंदी के
प्रति लापरवाह है. तकनीकी सुविधाएं बढ़ने से भी हिंदी के प्रति जरूरी मेहनत और लगन
खत्म हो रही है. बाहर के लोग शायद नहीं जानते होंगे कि अधिकांश कलाकार खासकर
लोकप्रिय स्टार डबिंग में अपने संवाद दुरुस्त करते हैं. नाम बताने की जरूरत नहीं
है, अनेक पोपुलर स्टार अपने संवाद याद नहीं कर पाते. वे एक समय में कई उलझनों में
फंसे रहते हैं. उन्हें फिल्म के अलावा एंडोर्समेंट, प्रॉपर्टी, रिलेशनशिप और
परिवार की समस्याएं भी घेरे रहती हैं. गया वह समय जब फिल्म सेट पर आया कलाकार का पूरा
ध्यान अपनी फिल्म के दृश्य और संवादों पर रहता था. अब अधिकांश कलाकार सेट पर आने
के बाद अपना दफ्तर चालू कर देते हैं. बीच-बीच में वे दूसरे फौरी और जरूरी काम भी
निपटाते रहते हैं. उनका ध्यान दूसरे कामों में लगा रहता है. सेट पर आने के साथ
ज्यादातर दिनों में वे निर्देशक से आग्रह करते हैं कि मेरा जल्दी कर दीजिएगा..
कहीं जाना है. अब आप ही बताएं कि आप अपने मुख्य पेशे के प्रति गंभीर नहीं है तो
उसकी झलक आपके प्रदर्शन और अभिनय में भी जाहिर होगी कि नहीं? पिछले दिनों एक निर्देशक से बात हो रही थी वे अपनी समस्याएं
बता रहे थे कि मैं अपनी स्क्रिप्ट कलाकारों को नहीं भेजता हूं. मुझे मालूम है कि
वे उन्हें नहीं पढ़ सकेंगे. मैं उनसे समय लेता हूं और जाकर पूरी स्क्रिप्ट सुना
देता हूं. इसे कलाकार पसंद भी करते हैं.
इधर तो हिंदी फिल्मों के विवरण और निर्देश भी अंग्रेजी में दिए
जाते हैं. यहां तक की फिल्मों के पोस्टर, बैनर और पब्लिसिटी मैटेरियल सब अंग्रेजी
में छपते हैं. कलाकार अंग्रेजी में बोलना पसंद करते हैं. कितनी बड़ी विडंबना है कि
फिल्म हिंदी की और उसके प्रचार की सारी गतिविधियां अंग्रेजी में. वास्तव में यह
विसंगति सिर्फ हिंदी फिल्मों की नहीं है...पूरे समाज और देश की यही स्थिति है
Comments