सिनेमालोक : आज़ादी पर्व पर देशभक्ति की फ़िल्में

 

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आज़ादी पर्व पर देशभक्ति की फ़िल्में

-अजय ब्रह्मात्मज

आगामी 15 अगस्त को देश 74 वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा. कोविड-19 की वजह से सार्वजानिक खुशी और समारोह का माहौल तो नहीं है, लेकिन देश के इतिहास के इस महत्वपूर्ण दिवस को हर नागरिक अपने स्तर पर अवश्य हर्षित रहेगा. परिवार में छुट्टी और खुशी का दिन होगा. ‘वर्क फ्रॉम होम से भी निजत मिलनी चाहिए. निश्चित ही उस दिन मनोरंजन चैनलों से हमेशा की तरह देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की फिल्में प्रसारित होंगी. इस हफ्ते ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’(12 अगस्त) और ‘खुदा हाफिज’(14 अगस्त) भी रिलीज हो रही .

इस बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी राष्ट्रप्रेम की चुनिंदा फिल्में अपने प्लेटफार्म www.cinemasofindia.com से मुफ्त प्रसारित कर रहा है. फिल्मप्रेमियों के लिए यह एक अच्छा अवसर है. फिल्म अधेताओं और शोधार्थियों के लिए भी यह ख़ास मौका है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने मराठी, हिंदी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, बंगाली, गुजराती और  मलयालम भाषाओं की फिल्में चुनी है. पहली बार रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ का विशेष प्रसारण हो रहा है, जिसका आनंद देखने-सुनने में असमर्थ दर्शक भी उठा सकेंगे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन पर बनी यह फिल्म हर पीढ़ी के दर्शकों को अवश्य देखनी चाहिए. यह फिल्म महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की झलक भी देती है. यह महात्मा गांधी के जीवन की घटनाओं के साथ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान के पूर्ण घटनाओं का चित्रण करती है. इसके साथ ही श्याम बेनेगल की ‘गांधी से महात्मा तक’ का प्रसारण हो रहा है. अगर आप ‘गांधी’ और ‘गांधी से महात्मा तक’ दोनों फिल्में क्रम से देख लें तो महात्मा गांधी के पूरे जीवन से परिचित हो सकते हैं’

सूचना और प्रसारण मंत्रालय के इस प्रसारण में हिंदी की ‘गांधी’ (रिचर्ड एटनबरो). ‘चिटगांव’ (वेदव्रत पाइन),’द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ (राजकुमार संतोषी), ‘टैंगो चार्ली’ (मणिशकर), ‘खाकी’, (राजकुमार संतोषी), ‘गांधी से महात्मा तक’ (श्याम बेनेगल), ‘कयामत- सिटी अंडर थ्रेट’ (हैरी बावेजा), ‘बटालियन 609 (ब्रजेश बटुकनाथ त्रिपाठी), ‘पहला आदमी’ (बिमल राय), ‘लाइफ ऑफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ (लाइव फुटेज), ‘बापू ने कहा था’ (विजय भट्ट), ‘अभी कल की ही बात है’ (क्लिमेंट बतिस्ता),’हेडा हुडा’(विनोद गणतारा), ‘छोटा सिपाही’ (जयश्री कनाल और  एएस कनाल) अंग्रेजी में ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’( श्याम बेनेगल), तमिल में ‘वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन’ (रामकृष्णय्या पंतुलु) ‘रोजा’ (मणि रत्नम), ‘आंध्र केसरी’ (विजयचंदर), मलयालम में ‘1971 बियोंड बॉर्डर्स’ (मेजर रवि), ‘वंदे मातरम’ (टी अरविंद), ‘उत्तरायण’ (जी अरविंदन), बंगाली में ‘उदयेर पाथे’ (विमल राय) ‘42’ (हेमेन गुप्ता), ‘सुभाष चंद्र बोस’ (पियूष बोस), कन्नड़ में ‘हगलु वेशा’ (बरागुरु रामचंद्रप्पा), गुजराती में ‘हारून अरुण’ (विनोद गणतारा’, मराठी में ‘सेनानी साने गुरुजी’ (रमेश देव) इनके अलावा ‘स्प्रेड लाइट ऑफ फ्रीडम’ (फिल्म्स डिवीज़न) ‘द फ्लैग’(फिल्म्स डिवीज़न) और ‘ऐ वतन तेरे लिए’ (फिल्म्स डिवीजन)...इन सभी फिल्मों को लगातार देखना राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत करेगा. देशभक्ति फिल्मों के नाम पर मनोरंजन चैनल कुछ पोपुलर फ़िल्में दिखा कर अपने दायित्व की इतिश्री मान लेती हैं.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को अपने इस आयोजन का वृहद् प्रचार करना चाहिए था. अब भी समय है. देश के अधिकांश लो कोविड-19 की वजह से घरों में बंद हैं. उनके लिए भी यह बड़ा मौका है. गौर करें तो पिछले कुछ सैलून से फिल्मों में ‘राष्ट्रवाद का नवाचार’ चल रहा है. यह हमेशा से होता आया है. सत्ता में मौजूद राजनितिक पार्टी की रूचि का ख्याल रखते हुए फिल्मकार पोपुलर नारों और संबोधनों पर फ़िल्में बनाते रहे हैं. नेहरु,शास्त्री और इंदिरा गाँधी के प्रभाव में बनी फ़िल्में हमें याद हैं. इन दिनों के चलन पर भी हम गौर कर सकते हैं.

देशभक्ति की फिल्मों एन अगर राष्ट्रीय भावना का सन्देश ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में हो तो उसका व्यापक प्रभाव होता है. अन्यथा कारगिल युद्ध के बाद बनी फिल्मों का हश्र हम ने देखा है. उनमें शायद ही कोई फिल्म यादगार बन सकी. सूचना एवं पसारन मंत्रालय के इस बार के चुनाव पर भी सवाल हो सकते हैं,लेकिन इस पहलकदमी की सराहना होनी चाह्हिये. और यह सिलसिला सभी राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर चलता रहे.

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