परी चेहरा नसीम बानो
जन्मदिन विशेष
नसीम बानो(४ जुलाई १९१६- १८ जून २००२)
परी चेहरा नसीम बानो
-अजय ब्रह्मात्मज
104 वर्ष पहले पुरानी दिल्ली में गायिका
शमशाद बेगम के घर रोशन आरा बेगम का जन्म हुआ था. यह शमशाद बेगम फिल्मों की मशहूर
गायिका शमशाद बेगम नहीं थीं. शमशाद बेगम दिल्ली में नाच-गाना करती थीं. वह छमियाबाई
के नाम से मशहूर थीं. उनकी बेटी रोशन आरा बेगम फिल्मों में आने के बाद नसीम बानो
नाम से विख्यात हुई. नसीम बानो के वालिद हसनपुर के नवाब थे. उनका नाम वाहिद अली खान
था. मां चाहती थीं कि उनकी बेटी बड़ी होकर मेडिकल की पढ़ाई करे और डॉक्टर बने,
लेकिन बेटी को तो फिल्मों का चस्का लग गया था. सुलोचना(रुबी मेयर्स) की फिल्में
देखकर वह फिल्मों की दीवानी हो चुकी थी. स्कूल की छुट्टी के दिनों एक बार वह मां
के साथ मुंबई आई थी. रोज मां से मिन्नत करती कि मुझे शूटिंग दिखला दो. एक दिन मां
का दिल बेटी की जीत के आगे पसीज गया और वह उसे शूटिंग पर ले गईं.
‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग चल रही थी.
उसमें मोतीलाल और सबिता देवी काम कर रहे थे. किशोरी रोशन आरा एकटक उनकी अदाओं को
देखती रही. इसे संयोग कहें या नसीम बानो की खुशकिस्मत... उस दिन सोहराब मोदी
शूटिंग में आए हुए थे. निर्देशक चिमनलाल लुहार से उन्हें मिलना था. उनकी नजर
किशोरी रोशन आरा पर पड़ी. रोशन आरा की आंखों और चेहरे ने उन्हें आकर्षित किया.
उन्होंने झट से अपनी आगामी फिल्म ‘खून का खून’(हैमलेट) का ऑफर दे दिया. रोशन आरा
की खुशी का ठिकाना ना रहा, लेकिन माँ ने साफ मना कर दिया. कोई दूसरा उपाय न देख
रोशन आरा ने भूख हड़ताल कर दी. आखिर मां को अपना फैसला बदलना पड़ा. वह राजी हो
गईं. फिल्म बनी और रिलीज हो गई. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही सोहराब मोदी ने
रोशन आरा का नाम बदलकर नसीम बानो कर दिया था.
नसीम बानो लौटकर दिल्ली गई. स्कूल
पहुंची तो उनकी चर्चा प्रिंसिपल तक पहुंच चुकी थी. प्रिंसिपल ने उन्हें स्कूल में
रखने से मना कर दिया. उन्हें मंजूर नहीं था कि उनके स्कूल की कोई लड़की फिल्मों
में काम करें. उन दिनों फिल्मों में अभिनय करने को सभ्य परिवार के लड़के-लड़कियों
का काम नहीं माना जाता था. पढ़ाई छूट गई और नसीम बानो मुंबई लौट आयीं. सोहराब मोदी
ने उनके साथ लंबा करार किया, जिसके तहत नसीम बानो ने उनकी प्रोडक्शन कंपनी मिनर्वा मूवीटोन की अनेक फिल्में की. इस फिल्म को उनके इस सफर का शिखर ‘पुकार’ को
मान सकते हैं. इस फिल्म के पोस्टर पर नसीम बानो के लिए लिखा गया ‘परी चेहरा नसीम
बानो’. इसी फिल्म से उनके नाम के साथ जुड़ा संबोधन चलन में आया. ‘पुकार’ जबरदस्त
हिट फिल्म रही. इस फिल्म के नायक चंद्रमोहन थे, फिल्म में सोहराब मोदी ने भी एक अहम
किरदार निभाया था. फिल्म के हिट होने पर नसीम बानो को बाहरी फिल्मों के ऑफर आने
लगे, लेकिन मोदी ने उन्हें करार से बांध दिया था. नसीम बानो कुछ नहीं कर सकीं.
उनके मन में खटास आ गई. कुछ सालों के बाद वह सोहराब मोदी के करारनामे की गिरफ्त से
निकल सकीं. उन्होंने बाहरी निर्माता-निर्देशकों की फिल्मी करनी शुरू की.
‘पुकार’ के बारे में मंटो ने लिखा है ‘नसीम
की अदाकारी कमजोर थी, लेकिन उसकी कमजोरी को उसके खुदादाद हुस्न और नूरजहां के
लिबास ने, जो उस पर खूब फबता था, अपने अंदर छुपा लिया था.’ नसीम बानो ने ‘पुकार’
के लिए घुड़सवारी और गायकी सीखी थी. इस फिल्म के दो गाने उनकी आवाज में हैं. नसीम बानो की खूबसूरती का जिक्र हर महफिल
में होता था. उनके चाहने वालों में फिल्म अभिनेताओं से लेकर नवाब तक थे. मंटो ने
हवाला दिया है कि हैदराबाद के साहबजादे मुअज्जम जाह साहब नसीम बानो पर डोरे डाल
रहे थे. साहबजादे ने लाखों रुपए खर्च किए और उनकी मां के साथ नसीम बानो को
हैदराबाद ले गए. वहां मां को अहसास हुआ कि यह तो कैदखाना है. उनकी बेटी का दम घुट
रहा है. और फिर यह डर भी था कि किसी दिन साहबजादे की तबीयत बदल गई तो नसीम बानो ना
तो इधर की रहेगी और ना उधर की. बहुत मुश्किल से मां-बेटी वहां से निकल पाई. उन
दिनों यह भी अफवाह उड़ी थी कि सोहराब मोदी नसीम बानो से शादी करने वाले हैं.
इस बीच नसीम बानो को मियां अहसान उल हक
पसंद आ गए और दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद नसीम बानो ने तय कर लिया कि वह फिल्मों
में काम नहीं करेंगी. वह दिल्ली चली गईं. अहसान उल हक ने ताज महल पिक्चर्स नामक
कंपनी बनाई थी और ‘उजाला’ फिल्म का निर्माण कर रहे थे. इसी फिल्म के सेट पर दोनों
की मुलाकात धीरे-धीरे मोहब्बत में तब्दील हुई थी. नसीम बानो अपने बचपन के शहर
दिल्ली में मगन हो गयीं.
लेकिन,इधर ‘बॉम्बे टाकिज’ से अलग होकर
एस मुखर्जी ने फिल्मिस्तान कंपनी बनायीं. वह फिल्मिस्तान की धमाकेदार शुरुआत करना
चाहते थे. उन्होंने दिल्ली जाकर नसीम बानो को राजी किया. लौट कर मुंबई आने के बाद एस मुखर्जी ने
मुंबई के अखबारों में खबर दी कि फिल्मिस्तान की पहली फिल्म की हीरोइन नसीम बानो होगी. आज की भाषा में कहें तो ‘चल चल रे नौजवां’
से उनकी दूसरी पारी शुरू हुई. यह पारी काफी लंबी चली. उन्होंने अपने होम प्रोडक्शन
ताज पिक्चर्स की फिल्मों के साथ बहार की फिल्मों में भी अभिनय करना जारी रखा. तभी
देश का विभाजन हुआ और अहसान मियां ने पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया. नसीम दोनों
बेटे-बेटी के साथ भारत में रह गईं. अहसान अपने साथ होम प्रोडक्शन की सारी फिल्में
भी पाकिस्तान ले गए. उन्होंने उन फिल्मों को फिर से पाकिस्तान में रिलीज किया और
खूब पैसे कमाए. उन फिल्मों की वजह से ‘परी चेहरा नसीम बनो’ ने पाकिस्तानी दर्शकों
को भी सम्मोहित किया. पाकिस्तान नहीं जाने के बावजूद नसीम बानो वहां की मशहूर
अदाकारा में शुमार हुईं.
हम सभी जानते हैं कि उन्होंने अपनी
बेटी सायरा बानो को थोड़ी हील-हुज्जत के बाद फिल्मों में काम करने दिया. सायरा
बानो पहली फिल्म ‘जंगली’ से ही मशहूर हो गईं और नसीम बानो ने फिल्मों को अलविदा कह
दिया. कुछ समय तक उन्होंने बेटी सायरा बानो के कपड़े डिजाइन किए. उन्हें कपड़ों का
गजब शऊर था. मंटो लिखते हैं ‘वह कपड़े पहनती है. इस्तेमाल नहीं करती.’ वह आगे
लिखते हैं, ‘नसीम बानो खुशशक्ल थी,जवान थी, खासतौर पर आंखें बड़ी पुरकशिश थीं और
जब आंखें पुरकशिश हों तो पूरा चेहरा पुरकशिश हो जाता है.’ तभी तो उन्हें ‘ओरिजिनल
ब्यूटी क्वीन’ भी कहा जाता था. बाद में उनकी बेटी सायरा बानो को भी ‘ब्यूटी क्वीन’
का खिताब मिला.
Comments
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