सिनेमालोक : संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं
सिनेमालोक
संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं
(कोरोना काल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री)
-अजय ब्रह्मात्मज
संभावना और आशंका दोनों सच हो गयीं..
लॉकडाउन की सरकारी घोषणा से पहले ही देश के सिनेमाघर बंद होने
लगे थे. सबसे पहले केरल, उसके बाद जम्मू और फिर दिल्ली के सिनेमाघरों के बंद होने
के बाद तय हो गया था कि पूरे देश के सिनेमाघर देर-सवेर बंद होंगे. सिनेमाघर
दर्शकों और फिल्मों के बीच का वह प्लेटफार्म है, जहां दोनों मिलते हैं. दर्शकों का
मनोरंजन होता है. मल्टीप्लेक्स और फिल्म निर्माता मुनाफा कमाते हैं. मल्टीप्लेक्स
का पूरा कारोबार सिर्फ और सिर्फ मुनाफे पर टिका होता है. मल्टीप्लेक्स के मालिक
कस्बों और शहरों के पुराने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर चित्रा, मिलन, एंपायर आदि जैसे
सिनेमाघरों के मालिक नहीं हैं. याद करें तो बीसवीं सदी के सिनेमाघरों के मालिकों
के लिए फिल्म का प्रदर्शन कारोबार के साथ-साथ उनका पैशन भी हुआ करता था. फ़िल्में
देखने-दिखने में उनकी व्यक्तिगत रूचि होती थी. 21वीं सदी में सब कुछ बदल चुका है. 20 सालों के विस्तार और
विकास के बाद ‘कोरोना काल’ में मल्टीप्लेक्स के मुनाफे का मार्ग ऐसा अवरुद्ध हुआ है
कि वे घबरा चुके हैं. उनके श्रे भाव में भयंकर गिरावट आई है. घबराहट में वे कभी
गुहार लगा रहे हैं तो कभी धौंस दिखा रहे हैं.
13 मई को निर्देशक सुजीत
सरकार और अमेजॉन प्राइम ने सोशल मीडिया से यह जानकारी दी कि 12 जून को उनकी आगामी
फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ का प्रीमियर होगा. जूही चतुर्वेदी की लिखी इस फिल्म में
अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना ]मुख्य भूमिकाओं में हैं. इस घोषणा के साथ हडकंप
मचा.हर तरफ अफरा-तफरी सी दिखी. कयास तो लगाए ही जा रहे थे. खबर थी कि ओटीटी
प्लेटफॉर्म और फिल्म निर्माताओं के बीच बातें चल रही हैं. इन बातों की भनक लगते ही
मल्टीप्लेक्स के मालिक सक्रीय हो गए थे. पहले तो उन्होंने सरकार से कुछ रियायतों और सुविधाओं
की गुहार लगाई. इस बार उन्होंने निर्माताओं से गुहार लगाई कि वे जल्दबाजी में
फैसला ना लें. थोड़ा धैर्य से काम लें. लॉकडाउन खत्म होने और सिनेमाघरों के खुलने
का इंतजार करें. इस गुहार में ठोस आश्वासन नहीं था, क्योंकि तमाम सावधानियां और
एहतियात की अपनी घोषणाओं के बावजूद वे दर्शकों का सिनेमाघरों में आना सुनिश्चित
नहीं कर सकते थे. जाहिर सी बात है कि फिल्मों के निर्माण में मोटी रकम खर्च कर
चुके निर्माता 60 दिनों के लॉकडाउन के बाद बेसब्र हो चुके थे. खुद प्रधानमंत्री
ने 18 मई से लॉकडाउन-4 में जाने की घोषणा करने के साथ उन सभी को हरकत
में ला दिया, जो उम्मीद की किरण में आस लगाए बैठे थे कि 17 मई के बाद धीरे-धीरे
स्थितियां सामान्य हो जाएंगी. पूर्णबंदी से निजात मिलेगी. फिलहाल ऐसी कोई उम्मीद
नहीं दिख रही है.
पहले ‘गुलाबो सिताबो’ और फिर ‘शकुंतला देवी’ के ओटीटी
प्लेटफॉर्म पर आने की घोषणा के साथ ही जानकारी मिली है कि तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और
बांग्ला की भी कुछ फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म पर आएंगी. उनके प्रीमियर की तारीखों
की फिलहाल घोषणा नहीं हुई है. लॉकडाउन में यह बड़ी और निर्णायक खबर इसलिए बन गई है
कि मल्टीप्लेक्स बंद हैं. याद करें तो पिछले साल से ही ओटीटी पर फिल्में प्रदर्शित
करने का सिलसिला आरंभ हो चुका था. विकी कौशल की फिल्म ‘लव पर स्क्वायर फीट’ आई थी.
रोनी स्क्रूवाला जैसे समर्थ निर्माता की फिल्म को थिएटर नहीं मिल पाई थी. ऐसे ही लीना
यादव की ‘राजमा चावल’ और सुशांत सिंह राजपूत ‘ड्राइव’ आई थी. अभी हाल में परेश
रावल के बेटे आदित्य रावल की रंजन चंदेल निर्देशित ‘बम्फाड़’ आई. मई के महीने में
ही नवाजुद्दीन सिद्दीकी की ‘घूमकेतु’ आ रही है. इन छोटी फिल्मों के प्रदर्शन से
बदलती लहर का अनुमान नहीं लगा था. मई के मध्य में ‘गुलाबो सिताबो’ और ‘शकुंतला
देवी’ के ओटीटी प्रदर्शन की घोषणा ने मल्टीप्लेक्स मालिकों इस कदर चौकन्ना किया कि
वे आगत के डर से बौखला गए. उन्होंने बेखयाली में अनाप-शनाप जब तक जारी कर दीं.
पहले आयनॉक्स और फिर पीवीआर ने नाखुशी और निराशा जाहिर की. प्रतिकार तक की बात की.
निर्माता और मल्टीप्लेक्स आमने-सामने आ चुके हैं. कुछ बड़े और ढुलमुल निर्माता अपना
पक्ष अभी स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने मजबूती से मल्टीप्लेक्स का पक्ष
नहीं लिया है. वे ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चल रहे हैं. जब उनके सामने भी स्पष्ट
हो जाएगा कि सिनेमाघर के इंतजार में नहीं बैठा रहा जा सकता तो वर भी ओटीटी
प्लेटफॉर्म की तरफ रुख करेंगे.
लॉकडाउन की घोषणा के पहले ही फिल्म इंडस्ट्री पॉज में चली गई
थी. सब कुछ जस का तस ठहर गया था. मुंबई में हर प्रकार की गतिविधियां रुक गई थीं. कोविद-19
के संभावित खतरे को भांपते हुए फिल्मइंडस्ट्री के संगठनों ने निर्देश जारी कर दिए
थे. उनका पालन करते हुए सारे इवेंट, शूटिंग और मूवमेंट स्थगित कर दिए गए. फिल्मों
की रिलीज अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई. शूटिंग के सिलसिले में बाहर गई फिल्म
यूनिट ताबड़तोड़ सब कुछ समेट कर मुंबई लौट आयीं. सब कुछ इतनी तेजी और हड़बड़ी में
बंद और ठप किया गया कि फिल्म बिरादरी के सदस्य ‘आइसोलेशन’ और ‘स्टे होम’ में खुद
को व्यस्त रखने का इंतजाम नहीं कर सके. पूर्णबंदी होते ही कोरोना से बचाव के लिए
बरते जाने वाली हिदायत संबंधित वीडियो संदेश जारी किए गए. अधिकांश पॉपुलर कलाकारों
ने 20 सेकेंड हाथ धोने और घरेलू काम करने की वीडियो लगाए. ‘आत्मनिर्भरता’
की विजूअल मुहिम वहीं से शुरु हो गई थी. धीरे-धीरे पता चला कि वह सब ज्यादातर दिखावटी
था. वीडियो संदेश देने में शाह रुख खान, अक्षय कुमार और कार्तिक आर्यन सटीक
संक्षिप्त और स्पष्ट रहे. उनके प्रभावशाली संदेशों का प्रशंसकों ने भी अनुपालन
किया. फिर पीएम केयर्स फण्ड में दान देने का अभियान चला. दान,अनुदान और कल्याण का
यह सिलसिला चल ही रहा है. इस बीच ‘ आई फॉर इंडिया’ जैसा एक बड़ा वर्चुअल इवेंट भी
हुआ,जिसे कारन जौहर और जोया अख्तर ने संगठित किया था.
फिल्मों की शूटिंग और पब्लिक इवेंट पर पाबंदी लग गई है, लेकिन
घरबंदी के दिनों में लेखकों और सितारों की गतिविधियां जारी रहीं. इस लिहाज से
तकनीशियन व्यस्तता के अभाव में कुछ दिनों के लिए थोड़े शिथिल पड़ गए. अपनी हद और
पहुंच के मुताबिक बाद में वे भी सक्रिय हुए और सीमित स्पेस में प्री और पोस्ट
प्रोडक्शन का थोड़ा-थोड़ा काम करते रहे. जबरन अवकाश की अवधि कहानी सुनने-सुनाने के
लिए मुफीद रही. फिल्म स्टारों ने घर और गाड़ी में जमा स्क्रिप्ट की गर्द झाडी.
फुर्सत में पढ़ना शुरू किया. लेखकों को भी जिम्मेदारी मिली कि वे अपनी पुरानी
स्क्रिप्ट को मांजे और नई कहानियों पर काम करें. एक लेखक का निजी अनुभव रहा कि स्टारों
को कहानी सुनाने के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल गया. स्टारों के पास अभी कोई ठोस
बहाना नहीं बचा था. हां, एक बात जरूर हुई कि कोरोना काल में स्क्रिप्ट के ‘वीडियो
पाठ’ की नई शैली विकसित हुई. कुछ लेखकों को इसे अपनाने में दिक्कत हुई. वीडियो
संचार और संपर्क के नए स्रोतों का जबरदस्त इस्तेमाल बढ़ा है. सोशल डिस्टेंसिंग के
दौर में इंटरनेट ने बखूबी सभी को करीब लाने का काम किया. फिल्म स्टार और
सेलिब्रिटीज इंस्टा चैट, जूम चैट और दूसरे माध्यमों से दर्शकों और प्रशंसकों के
संपर्क में रहे. मीडिया कवरेज में भी बिल्कुल नयी किस्म की प्रविधि उभरी.
अभी किसी को नहीं मालूम कि फिल्मी गतिविधियां कब से आरंभ होंगी?
कयास लगाया जा रहा है कि जुलाई के अंत या अगस्त में शूटिंग आरंभ हो सकती है. फिल्म
इंडस्ट्री के जिम्मेदार संगठन ने शूटिंग होने की स्थिति के लिए दिशानिर्देश जारी
किए हैं. कोविड-19 के प्रसार और संक्रमण से बचने के तमाम उपाय बरतते हुए यह
सुनिश्चित किया जा रहा है कि बगैर तामझाम के शूटिंग हो सके. इन दिशानिर्देशों के
आधार पर भारत और राज्य सरकारों से मंजूरी मिली तभी शूटिंग आरंभ हो सकेगी. सभी
जानते हैं कि टीवी शो के ताजा एपिसोड शूट नहीं हो पाने के कारण मनोरंजन चैनलों पर
पुराने शो दिखाए जा रहे हैं. दूरदर्शन ने तो इस संकट काल का सोउद्देश्य लाभ उठाया.
केंद्रीय सरकार की राजनीति और पसंद के तहत रामायण, महाभारत, चाणक्य आदि पुराने
धारावाहिकों का प्रसारण आरंभ हुआ, दूरदर्शन ने दावा किया कि इन धारावाहिकों को
रिकॉर्डतोड़ प्रचुर दर्शक मिले.
कोरोना काल में इरफ़ान और ऋषि कापोर्र के
अस्वाभाविक निधन ने शोक की लहर ला दी. शोक में एकत्रित होने वाली फिल्म इंडस्ट्री
जमा नहीं हो सकी. दोनों के निधन का कारन कैंसर रहा. फिल्म इंडस्ट्री गहरे अवसाद से
गुजर रही. संपन्न फिल्म स्टारों और निर्माता-निर्देशकों को आजीविका की चिंता नहीं
है.लेकिन सिनेवर्कर की आमदनी रुक गयी. छोटे-मझोले कलाकार भी सहमे और डरे हुए हैं.
एक कलाकार ने दोस्तों से मदद नहीं मान सकने की वजह से आत्महत्या कर ली. हालाँकि
पोपुलर कलाकारों और मजबूत निर्माताओं ने आरती और राशन की मदद की है,लेकिन तंगी
मुंह बाए खड़ी है. संकट के इस अँधेरे में कुछ भी नहीं सूझ रहा है. सर्कार की रहतें
फिल्म इंडस्ट्री के मजदूरों और कलाकारों के लिए नहीं हैं. फ़िलहाल शूटिंग और अन्य
गतिविधियों के आरम्भ होने की कोई सम्भावना नहीं है. फिल्म कलाकार भी मान कर चल रहे
हैं कि उनके पारश्रमिक और भुगतान में भरी कटौती होगी. मंदी की तलवार सभी के ऊपर
लटकी हुई है. फिल्म इंडस्ट्री को हो रहे गतिशील आर्थिक नुक्सान का भी आकलन नहीं
किया जा सकता. एक बार इंडस्ट्री चालू हो तो पता चले कि इस बीच क्या टूटा और क्या बचा?
फिल्म इंडस्ट्री चरमरा गयी है.
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