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Showing posts from April, 2020

संडे नवजीवन : फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की

संडे नवजीवन फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की     -अजय ब्रह्मात्मज भाग रहा है तू जैसे वक्त से आगे निकल जाएगा तू थम जा, ठहर जा मेरी परवाह किए बिना खुशियां खरीदने में लगा है तू याद रख लकीरे तेरे हाथों में है पर मुझ से जुड़ा एक धागा भी है कुदरत हूं मैं ग़र लड़खडाई तो यह धागा भी टूट जाएगा हवा पानी मिट्टी के बिना तू कैसे जिंदा रह पाएगा तो तू थम जा, ठहर जा. इन पंक्तियों में कृति सैनन प्रकृति का मानवीकरण कर सभी के साथ खुद को भी सचेत कर रही है. लॉकडाउन(पूर्णबंदी) के इस दौर में अपनी मां और छोटी बहन नूपुर के साथ वह घरेलू कामों से फुर्सत मिलने पर या यूं कहे कि स्वयं को अभिव्यक्त करने की इच्छा से प्रेरित होकर कवितानुमा पंक्तियां लिख रही हैं. कृति की बहन नूपुर भी कविताएं कर रही हैं. और भी फिल्म कलाकार लिख रहे होंगे. उनकी ये पंक्तियां भले ही ‘कविता के प्रतिमान’ पर खरी ना उतरे, लेकिन इन पंक्तियों के भाव को समझना जरूरी है. पूर्णबंदी हम सभी को आत्ममंथन, विश्लेषण और आपाधापी की जिंदगी का मूल्यांकन करने का मौका दे रही है. हमारी दबी प्रतिभाएं प्रस्फूटित...

सिनेमालोक : एक थीं रेणुका देवी

सिनेमालोक एक थीं रेणुका देवी -अजय ब्रह्मात्मज   अलीगढ़ के पापा मियां(शेख अब्दुल्ला) की बेटी खुर्शीद की तमन्ना थी कि वह फिल्मों में काम करें. संयोग कुछ ऐसा बना कि उनकी तमन्ना पूरी हो गई, दरअसल, हुआ यूं कि दसवीं की पढ़ाई के बाद जब खुर्शीद ने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया तो तालीम के पैरोकार पापा मियां को बहुत कोफ़्त हुई. उन्होंने खुर्शीद की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं देखी तो फिर जल्दी में शादी कर दी. खुर्शीद के शौहर अकबर मिर्जा यूपी में पुलिस की नौकरी में थे. इस बीच खुर्शीद के बड़े भाई मोहसिन बॉम्बे टॉकीज में हिमांशु राय के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने बहन से हिमांशु राय और उनकी अभिनेत्री पत्नी देविका रानी की तारीफ की. खुर्शीद ने हिम्मत कर उन्हें अपनी ख्वाहिश लिखी और साथ में तस्वीर भी डाल दी. कुछ दिनों में जवाब आ गया, लेकिन खत शौहर के हाथ लगा. खुर्शीद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके शौहर उनके ख़त खोल लिया करते थे. हिमांशु राय के यहां से आई चिट्ठी भी उन्होंने खोलकर पढ़ ली थी. उन्होंने बीवी से पूछा, तुमने हिमांशु राय को चिट्ठी लिखी थी? इस सवाल में उलाहना नहीं थी. खुर्शीद ने हाँ कह...

सिनेमालोक : फिल्म प्रभाग का खज़ाना

सिनेमालोक फिल्म प्रभाग का  खज़ाना -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों कुछ नया देखने की कोशिश में ‘फिल्म प्रभाग’ के साइट पर जाने का मौका मिला. हिंदी नाम से अधिक पाठक वाकिफ नहीं होंगे. हम सभी इसे ’फिल्म्स डिवीज़न’ के नाम से ज्यादा जानते हैं. किसी जमाने में यह अत्यंत सक्रिय संस्था थी. अब यह हर दूसरे साल शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का फेस्टिवल करती है. इसके अलावा इसके प्रांगण में ‘भारतीय फिल्मों का राष्ट्रीय संग्रहालय’ भी मौजूद है, जिसका उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस साइट के मुताबिक... ‘भारत के फिल्म्स डिवीजन की स्थापना 1948 में एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की ऊर्जा को स्पष्ट रूप से क्रियाशील करने के लिए की गई थी. छह दशकों से अधिक समय से संगठन ने फिल्म पर देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कल्पना और वास्तविकताओं का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है. इसने भारत में फिल्म निर्माण की संस्कृति को प्रोत्साहित करने, बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम किया है जो व्यक्तिगत दृष्टि और सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करता है.’ .देश के आम नागरिक और फिल्म नि...

पैरासाइट : क्या ऑस्कर विजेता’ होना किसी फ़िल्म के सर्वश्रेष्ठ होने की सबसे बड़ी सनद है?

क्या ऑस्कर विजेता’ होना किसी फ़िल्म के सर्वश्रेष्ठ होने की सबसे बड़ी सनद है? प्रतिमा सिन्हा इतिहास के बनने का क्षण निश्चित होता है, जिस क्षण से पहले हम सब अनजान होते हैं, लेकिन उस क्षण के बीत जाने के बाद हम सिर्फ और सिर्फ चमत्कृत होते हैं. देर तक एक सम्मोहन में बंधे हुए रहते हैं. ऐसे ही एक सम्मोहन को मैंने भी छूकर देखने और महसूसने की कोशिश की. फिर मैंने उस नवनिर्मित इतिहास को कैसे देखा, समझा और ख़ुद उस विषय पर क्या सोचा, आज यही बात   आपसे साझा करना चाहती हूँ. हम अक्सर पश्चिम की मोहर लगने के बाद किसी भी चीज़ की महत्ता और मूल्य को ज़्यादा समझने लगते हैं. ऐसी ही मोहर से प्रामाणिक रूप में सर्वश्रेष्ठ बन गयी फ़िल्म ‘पैरासाइट’ इन दिनों चर्चा में है. निर्देशक बोंग जून हो निर्देशित ‘पैरासाइट’ पहली ऐसी एशियन फिल्म बन गई है, जिसे ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया है. कोरियाई भाषा की इस फिल्म को ऑस्कर 2020 की छह अलग-अलग श्रेणियों में नामांकित किया गया था, जिनमें से चार श्रेणियों का पुरस्कार ‘पैरासाइट’ ने अपने नाम कर लिया है. ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म’, ‘सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म’, ...

सिनेमालोक : वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’

सिनेमालोक वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’ -अजय ब्रह्मात्मज   पिछले दिनों दूरदर्शन ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के साथ अनेक पुराने धारावाहिकों का प्रसारण आरंभ किया. ये धारावाहिक नौवें दशक के उत्तरार्ध और पिछली सदी के अंतिम दशक में दूरदर्शन से पहली बार प्रसारित हुए थे. इनमें ही ‘चाणक्य’ का भी प्रसारण आरंभ हुआ है. ‘चाणक्य’ के लेखक, निर्देशक और अभिनेता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं. प्रसारण के समय यह धारावाहिक अत्यंत चर्चित और फिर विवादित भी हुआ था. विवाद बढ़ा और ऐसा बढ़ा कि इसे जल्दी से जल्दी समेटना पड़ा. 47 एपिसोड ही आ पाए. इस धारावाहिक को देख चुके और देख रहे दर्शक महसूस करेंगे कि कहानी अचानक समाप्त हो जाती है. यूं लगता है कि लेखक अपनी पूरी बात नहीं कर पाया. बहरहाल, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी मूलतः राजस्थान के सिरोही के निवासी हैं. उनके पिता संस्कृत के अध्यापक थे. अनेक भाई-बहनों के साथ डॉ. द्विवेदी का परिवार मुंबई में रहता था. निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अध्यापक पिता ने सभी बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया. डॉ. द्विवेदी की रुचि विज्ञान के साथ-साथ ...