संडे नवजीवन : फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की
संडे नवजीवन फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की -अजय ब्रह्मात्मज भाग रहा है तू जैसे वक्त से आगे निकल जाएगा तू थम जा, ठहर जा मेरी परवाह किए बिना खुशियां खरीदने में लगा है तू याद रख लकीरे तेरे हाथों में है पर मुझ से जुड़ा एक धागा भी है कुदरत हूं मैं ग़र लड़खडाई तो यह धागा भी टूट जाएगा हवा पानी मिट्टी के बिना तू कैसे जिंदा रह पाएगा तो तू थम जा, ठहर जा. इन पंक्तियों में कृति सैनन प्रकृति का मानवीकरण कर सभी के साथ खुद को भी सचेत कर रही है. लॉकडाउन(पूर्णबंदी) के इस दौर में अपनी मां और छोटी बहन नूपुर के साथ वह घरेलू कामों से फुर्सत मिलने पर या यूं कहे कि स्वयं को अभिव्यक्त करने की इच्छा से प्रेरित होकर कवितानुमा पंक्तियां लिख रही हैं. कृति की बहन नूपुर भी कविताएं कर रही हैं. और भी फिल्म कलाकार लिख रहे होंगे. उनकी ये पंक्तियां भले ही ‘कविता के प्रतिमान’ पर खरी ना उतरे, लेकिन इन पंक्तियों के भाव को समझना जरूरी है. पूर्णबंदी हम सभी को आत्ममंथन, विश्लेषण और आपाधापी की जिंदगी का मूल्यांकन करने का मौका दे रही है. हमारी दबी प्रतिभाएं प्रस्फूटित हो रही ह