सिनेमालोक : मनाएं फॅमिली फिल्म फेस्टिवल


सिनेमालोक
मनाएं फॅमिली फिल्म फेस्टिवल
-अजय ब्रह्मात्मज
अनेक राज्यों में सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार की पहल पर राज्य सरकारों ने एहतियातन यह कदम उठाया है. कोशिश है कि भीड़ इकट्ठी ना हो और लोग एक=दूसरे के संपर्क में ना आएं. इसी के तहत सिनेमाघरों को बंद रखने के आदेश दिए गए हैं. आम नागरिकों(दर्शकों) की सेहत के मद्देनजर सरकारों के इस जरूरी कदम का स्वागत होना चाहिए.
फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के शौकीन दर्शकों के लिए यह मुश्किल घड़ी है. हम सभी जानते हैं कि फिल्में देश में मनोरंजन का सबसे सस्ता साधन हैं और सिनेमाघर इन फिल्मों के प्रदर्शन का माध्यम हैं. सिनेमाघरों के बंद होने से फिलहाल थिएटर में जाकर फिल्म देखना मुमकिन नहीं  होगा. सचमुच इस वक्त दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प खोजना होगा. कामकाज ठप है. बाहर निकलना बंद है. ऐसे में घर में बैठे-बैठे और भी बोरियत होगी. अभी तो पहला हफ्ता ही है. हालांकि अभी तक यह आदेश 31 मार्च तक ही है, लेकिन कोरोलाग्रस्त मरीजों की बढ़ती संख्या देखते हुए कहा जा सकता है कि अप्रैल महीने में भी सिनेमाघर बंद रह सकते हैं.
घर में कैद होने की स्थिति में बौखलाने से बेहतर है कि हम संभावित उपाय देखें. फिल्मप्रेमियों को इस समय का सदुपयोग करना चाहिए. कारण सही नहीं है. लेकिन यह वक्त है कि आप परिवार के साथ समय बिता रहे हैं. रोजमर्रा की आपाधापी में इतनी फुर्सत भी नहीं मिलती कि परिजन एक-दूसरे के बारे में जान-समझ सकें. सभी अपनी धुन में लगे रहते हैं. अभी परिवार की सामूहिक रूचि का ध्यान रखते हुए आप फिल्मों का चुनाव कर सकते हैं. पिछले सालों में छूट गई फिल्मों को आप इंटरनेट के जरिए खोज कर सिलसिलेवार देख सकते हैं. परिवार के साथ फिल्म देखने और उस पर बात-विमर्श करने का यह मौका है. इससे फिल्मों को लेकर पारिवारिक समझदारी बढ़ेगी. यह भी पता चलेगा की भाई,बहन, मां, बाप, बीवी और बच्चों की रुचि में क्या बदलाव आए हैं? यकीन माने इससे पारिवारिक लगाव मजबूत होगा.
फिल्मों के घोर शौकीन इस अवसर पर फिल्में देखने की व्यवस्थित  योजना बना सकते हैं. 107 सालों के भारतीय सिनेमा के इतिहास में हजारों फिल्में बनी हैं. दैनंदिन व्यस्तता में हम हर हफ्ते रिलीज हो रही फिल्मों को देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं. या टीवी पर चल रही फिल्मों को देखने लगते हैं. जबरन अवकाश के इन दिनों में हम हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के मास्टर फिल्मकार की फिल्में देख सकते हैं. उन्हें एक साथ क्रम से देखें तो उक्त फिल्मकार के बारे में अपनी धारणा बना सकेंगे. हिंदी फिल्मों की बात करें तो मिलेनियल ने अवश्य ही विमल राय, महबूब खान, गुरुदत्त, राज कपूर आदि दिग्गज फिल्मकारों का नाम सुना होगा, लेकिन ज़रूरी नहीं कि उनकी फिल्में भी देखी हों. अगर हर फिल्मकार की सूची बना लें और एक-एक कर उन्हें देखें तो हम अपने अतीत की श्रेष्ठ फिल्मों से परिचित होंगे. आजादी के बाद और पहले के दर्शकों की श्रेष्ठ और चर्चित फिल्मों की सूची बनाकर भी यह आयोजन किया जा सकता है. क्यों ना हम सभी पारिवारिक फिल्म फेस्टिवल क्यूरेट करें?
घरों में कैद फिल्मप्रेमी एक काम और कर सकते हैं कि वे यूट्यूब और दूसरे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के जरिए दुनिया की बेहतरीन फिल्में भी देख सकते हैं. भारत में ही हिंदी के साथ अन्य भाषाओं में सैकड़ों फिल्में बनती हैं. हम कहाँ उन्हें देख पाते हैं. इन दिनों तो विदेशी फिल्मों का जोर भी बढ़ा है. इंटरनेट की मदद से ईरानी, कोरियाई, चीनी और यूरोपीय फिल्मों का आनंद लिया जा सकता है.
अधिकांश दर्शकों के लिए विदेशी फिल्मों का मतलब सिर्फ हॉलीवुड की फिल्में होती हैं. हाल ही में दक्षिण कोरिया के निर्देशक बोंग जून हो की पैरासाइट को श्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर अवार्ड मिला तो अनेक दर्शक चानके. जी हां, कोरिया में कमाल की फिल्में बन रही हैं. देश-विदेश की फिल्में देखने के कई फायदे हैं. सामान्य तौर पर मनोरंजन तो होता ही है. इसके अलावा हम उस भाषा की संस्कृति और देश के परिवेश के बारे में भी जान पाते हैं. किताबों और समाचारों से मिली जानकारी को दृश्यों में देखने का असर गहरा और स्थायी होता है.
और हां, इस अवधि में सिनेमाघरों में ना जाने से बचे पैसों से हम अपनी पसंद के स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म का सब्सक्रिप्शन ले सकते हैं, जो अभी तक समय और पैसों की तंगी से टलता जा रहा था.


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