सिनेमालोक : दिखता नहीं है सच
सिनेमालोक
दिखता नहीं है सच
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों की राजधानी मुंबई से निकलने और देश के सुदूर शहरों
के दर्शकों पाठकों से मिलने के रोचक अनुभव होते हैं. उनके सवाल जिज्ञासाओं
अनुभवों को सुनना और समझना मजेदार होता है. जानकारी मिलती है कि वास्तव में
दर्शक क्या देख, सोच और समझ रहे हैं? हिंदी फिल्मों की जानकारियां मुंबई
में गढ़ी जाती हैं.मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए यह जानकारियां दर्शकों तक
पहुंचती हैं और देखी पढ़ी-जाती हैं. उनसे ही सितारों के बारे में दर्शकों के
धारणाएं बनती और बिगड़ती हैं.
पिछले दिनों गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट में जाने का मौका मिला..एक
छोटे से इंटरएक्टिव सेशन में फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली और उन धारणाओं पर
बातें हुईं. कुछ लोग मानते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और उसके सितारों के
बारे में कायम रहस्य सोशल मीडिया और मीडिया के विस्फोट के दौर में टूटा है.
फिल्मप्रेमी दर्शक और पाठक अपने सितारों के बारे में ज्यादा जानने लगे हैं. सच
कहूं तो यह भ्रम है कि हम मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए सितारों के जीवन में
झांकने लगे हैं. वास्तव में ऐसा नहीं है. एयरपोर्ट लुक से लेकर तमाम गतिविधियों
की आ रही स्थिर और चलती-फिरती तस्वीरें सुनियोजित होती हैं. भारत में 'पापाराजी' भी साध लिए गए
हैं. उन्हें पहले से बता दिया जाता है कि फलां समय पर फलां सितारा फलां जगह पर
होगा. और फिर हमें एक ही किस्म की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती मिलती
हैं.
हिंदी फिल्म सितारों की एक्सक्लूसिव और चौंकाने वाली तस्वीरें
अमूमन विदेशों से आती रही हैं. वह भी किसी फैन की तस्वीर होती है. रणबीर कपूर और
कट्री कैफ के समुद्र तट की तस्वीरें हों या रणबीर कपूर-माहिरा खान के धूम्रपान
करती तस्वीरें.. प्रियंका चोपड़ा की ड्रेस सेंस की तस्वीरें विदेशों से टपकती
रहती है. भारत में केवल वही तस्वीरें आती हैं, जो सितारों और उनके पीआर की रजामंदी
से जारी की जाती हैं. अगर किसी फोटोग्राफर ने अनचाही तस्वीरें उतारीं तो उसे
सावधान कर दिया जाता है. चेतावनी दी जाती है कि अगली बार से उसे किसी इवेंट और
दूसरों पर नहीं बुलाया जाएगा.
रही बात इंस्टाग्राम और ट्विटर के जरिए मिल रही जानकारी की तो आप
चंद सितारों को छोड़ के अलावा ज्यादातर एक पैटर्न में सक्रिय होते हैं. फिल्मों
की रिलीज के समय या ऐसे ही किसी खास अवसर पर वे एक्टिव हो जाते हैं. दरअसल वे
अपनी आगामी फिल्म के लिए दर्शक जुटा रहे होते हैं. शोर मचा रहे होते हैं. हां
कुछ सितारे सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं. इनकी दो श्रेणियां हैं. एक तो वे
हैं, जो सोशल और पॉलिटिकल कंसर्न के तहत विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय
जाहिर करते हैं. इनके अलावा कुछ सिर्फ अपने बारे में बता रहे होते हैं. उनका मूल
प्रयास इमेज बिल्डिंग ही रहता है. अब जैसे कि आलिया भट्ट ने यूट्यूब चैनल आरंभ
किया है. सितारे अपनी छुट्टियों और यात्राओं की तस्वीरें शेयर कर प्रशंसकों को
खुश करते हैं.
.फिल्म पत्रकारिता
का स्वरूप लगातार बदलता रहता है. अच्छे बुरे की बात ना करते हुए गौर करें तो अभी
फिल्मों से अधिक सितारों की जीवनशैली, अपीयरेंस और लुक पर बातें होती हैं.
केवल फिल्मों की रिलीज के समय फिल्मों पर रूटीन सवालों के जवाब देते समय वे
फिल्म से संबंधित जानकारी देते हैं. सच्ची बात है कि फिल्म पत्रकारिता खुद के ही
भंवरजाल में फंस चुकी है. सभी एक दूसरे की नकल कर रहे हैं और लगातार फिसल रहे
हैं. संपादकों और मालिकों की तरफ से पत्रकारों को कुछ नया करने की छूट नहीं
मिलती. अपवाद स्वरूप ही कभी-कभी किसी हिंदी अखबार में कुछ दिखता है. अंग्रेजी
अखबारों में नए प्रयोग दिखते रहते हैं. हिंदी मीडिया अपनी ही बनाई लकीर को
रौंदती रहती है. पारंपरिक मीडिया से इतर यूट्यूब और सोशल मीडिया के अन्य
प्लेटफार्म पर एक्टिव फिल्मप्रेमी अवश्य कुछ अलग और कभी-कभी बेहतरीन काम करते
नजर आते हैं.
मीडिया के डिजिटल होने के साथ अभी तेजी से बिखराव दिख रहा है.
इसी बिखराव से कुछ नया आकार लेगा और आने वाले सालों में फिल्म और सितारों के
कवरेज का स्वरूप बदलेगा..
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