सिनेमालोक : छपाक बनाम तान्हाजी
सिनेमालोक
छपाक बनाम तान्हाजी
-अजय ब्रह्मात्मज
एक ही दिन रिलीज हुई फिल्मों की तुलना पहले भी होती रही है.
खासकर पहले उनकी टकराहट के असर की चर्चा होती है और उसके बाद बताया जाता है कि
किसे कितना नुकसान हुआ? उनके कलेक्शन के आधार पर ये चर्चाएं और तुलनाएं होती है.
देश में सिनेमाघरों और स्क्रीन की सीमित संख्या की वजह से साल के अनेक शुक्रवारों
को ऐसी हलचल और टकराहट हो जाती है. पिछले हफ्ते 10
जनवरी को रिलीज हुई ‘छपाक’ और ‘तान्हाजी’
को लेकर भी तुलना चल रही है. अनेक स्वयंभू विश्लेषक,पंडित और टीकाकार निकल आए हैं.
वे अपने हिसाब से समझा रहे हैं. व्याख्या कर रहे हैं.
इस बार की तुलना में सिर्फ कलेक्शन के प्रमुख मुद्दा नहीं है.
कुछ और भी बातें हो रही है. दो धड़े बन गए हैं. एक धड़ा ‘छपाक’ के विरोध में
सक्रिय है और दूसरा धड़ा ‘तान्हाजी’ के समर्थन में है. विरोध का धड़ा नए किस्म का
है. इस धड़े ने तय कर लिया है कि उन्हें न सिर्फ ‘छपाक’ का बहिष्कार करना है, बल्कि
तमाम तर्क जुटा कर उसे फ्लॉप भी साबित करना है. यह धड़ा वास्तव में दीपिका पादुकोण
को सबक सिखाना चाहता है और इसी बहाने तमाम फिल्म कलाकारों को संदेश भी देना चाहता
है कि आप ने हमें नाखुश किया तो भुगतना पड़ेगा. सभी जानते हैं कि 5 जनवरी को जेएनयू में
हुई हिंसा के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. जेएनयू के साथ ही
जामिया और एएमयू में भी छात्रों के साथ हुई झड़पों और हिंसा से समाज के अनेक समूह
आंदोलित हैं. वे सड़कों पर निकल आए हैं. इसी क्रम में 7 जनवरी को जवाहरलाल
नेहरू विद्यालय में जेएनयूएसयू की एक सभा चल रही थी. इस सभा में जेएनयूएसयू के
भूतपूर्व अध्यक्षों को भी बुलाया गया था. इस समर्थन सभा में दीपिका पादुकोण चली गयीं
और उन्होंने छात्रों के साथ सॉलिडेरिटी जाहिर की. वह वक्ताओं के पीछे खामोश खड़ी रहीं,लेकिन
उनकी खामोश मौजूदगी भी बहुत कुछ कह गई. वर्तमान सरकार के समर्थकों को जेएनयू में
दीपिका पादुकोण की मौजूदगी नागवार गुजरी है.
दीपिका पादुकोण के स्टैंड से बिफरे समूह ने ‘बायकॉट छपाक’ का
आह्वान किया. देखते-देखते यह आह्वान वायरल हुआ तो ‘आई स्टैंड विद दीपिका’ हैशटैग
भी चला. विरोध और समर्थन में ‘छपाक’ उलझ गई. निश्चित ही उसका असर कलेक्शन पर पड़ा.
एक असर यह भी हुआ कि इस विवाद और विरोध से ‘तान्हाजी’ के दर्शक बढ़ गए. बात यहीं
तक नहीं रुकी. शनिवार को दोनों फिल्मों के कलेक्शन प्रकाशित हुए. कलेक्शन के
आंकड़ों के साथ ट्रेड पंडितों ने चालाकी से जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, उनसे
परसेप्शन बना की ‘छपाक’ तो दर्शकों ने रिजेक्ट कर दी. ‘तान्हाजी’ के पहले दिन के
कलेक्शन के साथ पॉजिटिव शब्दों का इस्तेमाल किया गया तो ‘छपाक’ के कलेक्शन की
निगेटिव शब्दों में व्याख्या की गई.
फिल्मों के कारोबार के आंकड़ों और कलेक्शन के बारे में बताते
समय ट्रेड पंडित आमतौर पर लैंडिंग कॉस्ट(निर्माण,प्रचार,वितरण आदि) का उल्लेख नहीं
करते. सीधी कलेक्शन बताते हैं. आम दर्शकों को केवल 15.6
करोड़ और 4.75 करोड
दिखाई देता है. उन्हें नहीं मालूम रहता कि कितना निवेश करने के बाद इतना कलेक्शन
आया है. बगैर डिटेल में गए ही बताया जा सकता है कि ‘तान्हाजी’ की लागत ‘छपाक’ की
तुलना में बहुत ज्यादा होगी. उसमें अजय देवगन, काजोल और सैफ अली खान जैसे सितारे
हैं और वीएफएक्स की तकनीक है. एक्शन दृश्यों को फिल्माने में भारी खर्च हुआ होगा.
उसकी तुलना में ‘छपाक’ में स्टार के नाम पर केवल दीपिका पादुकोण हैं और यह सादे
तरीके से शूट हुई है. मैं यह बताना चाह रहा हूं कि लगत के अनुपात में ही दोनों
फिल्मों के कारोबार की तुलना होनी चाहिए.
सच कहे तो दो फिल्मों के कारोबार की तुलना गैरजरूरी है.
दर्शकों को इससे क्या मतलब? बाकी कंज्यूमर प्रोडक्ट से फिल्में अलग होती हैं.
उन्हें भी अगर साबुन और कार की तरह हम जांचने और परखने लगेंगे तो भारी भूल करेंगे.
फ़िल्में असेंबली लाइन प्रोडक्ट नहीं हैं. फिल्मकार की लगन, मेहनत और प्रतिभा का
परिणाम होती है कोई फिल्म. समीक्षक, ट्रेड विश्लेषक और टिप्पणीकार होने के नाते
हमें भी संवेदनशील होना चाहिए. फिल्मों की क्वालिटी के संदर्भ में भी फिल्मों पर
विचार होना चाहिए. सिर्फ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन और बिजनेस के आधार पर मूल्यांकन को
बढ़ावा देकर हम फिल्मों की सृजनात्मकता को खत्म कर देंगे.
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