सिनेमालोक : फाल्के पुरस्कार और अमिताभ बच्चन


सिनेमालोक
फाल्के पुरस्कार और अमिताभ बच्चन
-अजय ब्रह्मात्मज
कल दिल्ली में 2018 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरित किए गए. विभिन्न श्रेणियों में देश की सभी भाषाओं की प्रतिभाओं को सम्मानित करने का यह समारोह पुरस्कार प्रतिष्ठा और प्रभाव के लिहाज से देश में सर्वश्रेष्ठ है. इन दिनों अनेक मीडिया घरानों और संस्थानों द्वारा हिंदी समेत तमाम भाषाओं में फिल्म पुरस्कार दिए जा रहे हैं. इन पुरस्कारों की भीड़ में यह अकेला अखिल भारतीय फिल्म पुरस्कार है, जिसमें देश की सभी भाषाओं के बीच से प्रतिभाएं चुनी जाती हैं. निश्चित ही इस पुरस्कार का विशेष महत्व है. फीचरफिल्म, गैरफीचर फिल्म और फिल्म लेखन की तीन मुख्य श्रेणियों में ये पुरस्कार दिए जाते हैं. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के साथ ही दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी दिया जाता है. यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के विकास और संवर्धन में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्मी व्यक्तित्व को सौंपा जाता है. इस साल यह पुरस्कार अमिताभ बच्चन को दिया गया है
पुरस्कार की पूर्व संध्या को अमिताभ बच्चन ने ट्वीट कर अपने प्रशंसकों को सूचना दी... वह बुखार में हैं. उन्हें यात्रा करने से मना किया गया है, इसलिए दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय पुरस्कार में वे शामिल नहीं हो सकेंगे... दुर्भाग्य है मेरा... अफसोस.’ अमिताभ बच्चन इस खास अवसर पर समारोह में उपस्थित नहीं हो सके. उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने उनके सम्मान में कहा कि अमिताभ बच्चन स्वयं में एक संस्थान हैं. पिछले पांच दशकों से वे देश-विदेश के दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं. उन्होंने एंग्री यंग मैन से लेकर वृद्ध पिता तक की अपनी भूमिकाओं से पूरे देश की फिल्म इंडस्ट्री को प्रेरित किया है. उन्होंने पूरे मिशन और पैशन के साथ यह सब किया है.
66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अंतर्गत 50वें दादा साहब फाल्के पुसे सम्मानित अमिताभ बच्चन की फ़िल्मी सक्रियता का भी यह पचासवां साल है. अमिताभ बच्चन ने 1969 में ‘सात हिंदुस्तानी’ से फिल्मी कैरियर की शुरुआत की थी. मशहूर  निर्देशक ख्वाजा मतलब अब्बास ने उन्हें पहला मौका दिया था. उनकी आखिरी रिलीज फिल्म ‘बदला’ है, जिसे सुजॉय घोष ने निर्देशित किया है. अभिनय के साथ अमिताभ बच्चन ने कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया है. टीवी पर जारी उनका शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ भारतीय परिदृश्य में एक अनोखा और लोकप्रिय शो है. 77 साल के हो चुके अमिताभ बच्चन की निरंतर सक्रियता चकित करती है. अच्छी बात है कि उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से भूमिकाएं मिल रही हैं. लेखक उनके व्यक्तित्व को ध्यान में रखते हुए स्क्रिप्ट लिखते हैं और निर्देशक हर फिल्म में उनकी प्रतिभा के नए आयाम उद्घाटित करते हैं. वे देश के अनोखे और अलहदा अभिनेता हैं, जो इस उम्र में भी सार्थक रूप से सक्रिय हैं.
दैनंदिन जीवन में उनकी सक्रियता का अंदाजा उनकी गतिविधियों से लगाया जा सकता है. जरूरत पड़ने पर वह सुबह सवेरे स्टूडियो में हाजिर मिलते हैं. शूटिंग और जिम्मेदारियों से फ्री होने के बाद सोशल मीडिया पर उनकी एक्टिविटी चालू होती है. सोशल मीडिया पर उनकी नियमित मौजूदगी भी हैरान करती है. ट्विटर और ब्लॉग पर अमिताभ बच्चन का एक विस्तारित परिवार भी है. अपने फ़ॉलोअर को वे इसी नाम से बुलाते हैं. वे उनसे बातें करते हैं. उन्हें पूरा सम्मान देते हैं. उनकी कोशिश रहती है कि वे विस्तारित परिवार की खुशी में वे शामिल रहें. अपने हर ट्विट और ब्लॉग को वह क्रमिक संख्या देते हैं. उनके ट्विट और ब्लॉग लेखन का अध्ययन और शोध होना चाहिए. उन्होंने अपने जीवन, कैरियर और जिंदगी की बाकी चीजों पर जमकर लिखा है.
इधर वे थोड़े अस्वस्थ चल रहे हैं. उनकी बीमारियों और अस्पताल में भर्ती होने की खबरें आती रहती हैं. अमिताभ बच्चन अपनी बीमारियों को धत्ता देकर पहली फुर्सत में सेट और स्टूडियो में आ जाते हैं. सेट पर लंबे डग भरते हुए उनका आना ही सभी में स्फूर्ति का संचार कर देता है. उनके सहयोगी कलाकारों ने बार-बार बताया है कि वह दो शॉट के बीच में कभी भी वैनिटी में नहीं जाते, वे सेट पर रहना चाहते हैं. सहयोगी कलाकारों की मदद करते हैं. उनसे बातें करते हैं. इस बातचीत में उनकी वरिष्ठता कभी आड़े नहीं आती. सेट पर निर्देशक का आदेश ही उनके लिए सर्वोपरि होता है. अमिताभ बच्चन को कभी किसी ने नखरे दिखाते हुए नहीं देखा या भड़कते हुए भी नहीं देखा. काम के प्रति उनका लगाव और अनुशासन अनुकरणीय है. समय की उनकी पाबंदी के तो आने किस्से हैं. अभिनय में प्रखर अमिताभ बच्चन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर मुखर नहीं रहते. उनकी चुप्पी खलती है, लेकिन यही उनका स्वभाव है. वे शायद ही कभी किसी के विरोध में नजर आए हों. उनके व्यक्तित्व का यह पहलू रहस्यपूर्ण है. क्या यह लोकप्रिय होने की मजबूरी है या कुछ और?


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