सिनेमालोक : हिंदी फिल्मों में पंजाबी गाने
सिनेमालोक
हिंदी फिल्मों में पंजाबी गाने
-अजय ब्रह्मात्मज
फिल्मों की कहानियां हिंदी प्रदेशों में जा रही हैं. उत्तर
प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार के साथ ही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की
कहानियां हिंदी फिल्मों में आने लगी हैं. हिंदी फिल्मों का यह शिफ्ट नया और
सराहनीय है. लंबे समय तक हिंदी फिल्मों ने पंजाब की सैर की. पंजाब आज भी हिंदी
फिल्मों में आ रहा है, लेकिन अब वह यश चोपड़ा वाला पंजाब नहीं रह गया है. युवा
फिल्मकार किसी फिल्म में उनसे आगे तो किसी फिल्म में उनसे पीछे दिखाई पड़ते हैं. सच्ची
और सामाजिक कहानियां भी बीच-बीच में आ जाती हैं.
गौर करें तो हिंदी फिल्मों में पंजाब का प्रभाव रच-बस गया है.
फिल्म कलाकार पंजाब से आते हैं. फिल्मों के किरदारों के सरनेम पंजाबी होते हैं.
पंजाबी रीति-रिवाज और संगीत भी हिंदी फिल्मों में पसर चुका है. किसी समय यह नवीनता
बड़ा आकर्षण थी. अब इसकी अधिकता विकर्षण पैदा कर रही है. हिंदी प्रदेशों की
कहानियों में जब अचानक पंजाबी बोल के गाने सुनाई पड़ते हैं तो खटका लगता है. कई
फिल्मों में खांटी पटना, लखनऊ, कानपुर, भोपाल और इलाहाबाद के किरदार पंजाबी गीत
गाते सुनाई पड़ते हैं, किसी शोधार्थी को इस विषय पर शोध करना चाहिए कि क्यों और
कैसे हिंदी फिल्मों में पंजाबी गानों का चलन बढ़ा? यह शोध का रोचक विषय हो सकता है.
देश विभाजन के पूर्व हिंदी फिल्मों के आरंभिक काल में मुंबई के
साथ कोलकाता और लाहौर में भी हिंदी फिल्में बन रही थीं.मुंबई के समकक्ष तो नहीं,
लेकिन लेकिन उल्लेखनीय संख्या में बंगाल पंजाब की प्रतिभाएं हिंदी फिल्मों में
योगदान कर रही थीं. आकार ले रही हिंदी फिल्मों के संवाद की भाषा में स्थानीय
भाषाओं का प्रभाव था, लेकिन वह मुख्य रूप से हिंदी-उर्दू की मिश्रित हिंदुस्तानी
का रूप ले रही थी. कोलकाता की हिंदी फिल्मों में बांग्ला भाषा और संस्कृति का ठोस
प्रभाव दिखाई पड़ता था. वैसे ही लाहौर में बन रही हिंदी फिल्मों में पंजाबी भाषा
और संस्कृति का पुट रहता था. खास कर संगीत में यह पुट और स्पष्ट तरीके से
परिलक्षित होता था. गीत-संगीत में इस प्रभाव से विविधता भी आ रही थी. इधर मुंबई की
हिंदी फिल्में स्थानीय मराठी संगीत और संस्कृति के प्रभाव से निकलकर अखिल भारतीय
स्वरूप ले रही थीं. आजादी के पहले और उसके बाद के दशकों में पंजाबी संगीत का
प्रभाव हिंदी फिल्मों में मजबूत हुआ. संगीतकार और गीतकार भी पंजाब से आए. नतीजा
हुआ कि हिंदी फिल्मों के संगीत और धुनों पर पंजाब का रंग रहा. पंजाब के रंग के साथ
ही पुरबिया संगीत के साथ बोली भी हिंदी फिल्मों में सुनाई पड़ती रही.भोजपुरी और
अवधी के शब्द सुनाई पड़ते रहे.
इधर दो दशकों से हिंदी फिल्मों में पंजाबी संगीत का असर तेजी
से बढ़ा है. धीरे-धीरे पंजाबी गीत-संगीत ने राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया है. ना सिर्फ
फिल्म... हिंदी समाज के दैनंदिन जीवन (शादी और दूसरे पारिवारिक समारोह) में पंजाबी
गीतों का चलन बढ़ा है. बारात में डीजे पंजाबी गीत बजाते हैं और हिंदी समाज के युवा
बाराती उन धुनों पर खूब नाचते हैं. अनायास और अप्रत्यक्ष रूप से पंजाबी गीत-संगीत
की लोकप्रियता इस कदर फैली है कि उनके बिना हर समारोह अधूरा और उदास लगता है.
पंजाबी गीत-संगीत के साथ पांव उछलने और शरीर मचलने लगता है. क्या पंजाबी गीतों की
धुन में ऐसी जबरदस्त थिरकन है या हमने बाकी गीत-संगीत को नजरअंदाज करना शुरू कर
दिया है.
ट्रेड के लोग बताते हैं कि अभी टी
सीरीज म्यूजिक कंपनी के तौर पर सबसे ज्यादा सक्रिय है. इन दिनों वे
फिल्म निर्माण में भी आ गए हैं. उनके पास पंजाबी गीतों का खजाना है. उस खजाने में
से एक-दो लोकप्रिय धुनों को वे नई फिल्म के हिसाब से चुनते हैं और जरूरत
नहीं होने पर भी फिल्मों में डाल देते हैं. कई बार फिल्म की थीम से उन गानों की
संगति नहीं होती, लेकिन जबरदस्त प्रचार और प्रमोशन से वे गाने पॉपुलर हो जाते हैं.
दावा तो यह भी किया जाता है कि फिल्म की सफलता में इन पंजाबी गीतों का योगदान होता
है. कमाई और लाभ के हिसाब से यह ठीक हो सकता है, लेकिन हिंदी फिल्मों में पंजाबी
गीत-संगीत की मौजूदगी स्थानीयता को खत्म करती है. परोक्ष रूप से ही यह फिल्म के
प्रभाव को भी कमजोर करती है.
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