सिनेमालोक : गांधी के विचारों पर बनेगी फिल्में
सिनेमालोक
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों आमिर खान, शाह रुख खान,राजकुमार हिरानी और एकता कपूर समेत फ़िल्म बिरादरी के 45-50 सदस्य प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. छन्नू लाल मिश्र और एक-दो शास्त्रीय गायक भी इस मुलाकात में शामिल थे. सेल्फी सक्रिय फ़िल्म बिरादरी ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री के पहल और सुझाव की तारीफ की झड़ी लगा दी. प्रधानमंत्री ने उनके ट्वीट के जवाब दिए और उनके प्रयासों की सराहना की. सभी ने अलग-अलग शब्दों और बयानों में मोदी जी की बात दोहराई और जुछ ने महात्मा गांधी की प्रासंगिकता की भी बात कही। इस साल 2 अक्टूबर से गांधी की 150वीं जयंती की शुरुआत हो चुकी है. सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने गंफ़ही जयंती पर कोई खास सक्रियता नहीं डिझायी है. खबर तो यह थी कि दो साल पहले ही एक समिति बनी थी,जिसे 150 वीं जयंती की रणनीति तय करनी थी। क्या रणनीति बनी?
बहरहाल, प्रधान मंत्री से फ़िल्म बिरादरी के सदस्यों की मुलाक़ात और विशेष बैठक उल्लेखनीय है. इसका महत्व तब और बढ़ जाता है,जब हम देखते हैं कि कुछ सालों पहले भक्तों के निशाने पर आएआमिर खान और शाह रुख खान इस बैठक में मौजूद रहे. उन्होंने मोदी जी के साथ सेल्फ़ी निकाली. उस सेल्फी में मोदी जी मुस्कुरा रहे थे. शायद भक्तों तक यह संदेश गया हो कि नाम से खान दोनों लोकप्रिय कलाकार गद्दार और देशद्रोही नहीं हैं. खान के अलावा फिल्म बिरादरी के महिला सदस्यों(कलाकार और निर्माता) ने अलग से प्रधान मंत्री के साथ तस्वीरें और सेल्फी लीं. एकता कपूर ने महिला सशक्तिकरण की पहचान की बात की,जिसे बाद में स्वयं प्रधान मंत्री ने रिट्वीट कर दोहराया. याद होगा कि फ़िल्म बिरादरी और प्रधान मंत्री की मुलाकातें लगातार खबरें बन रही हैं.हालांकि यह पता नहीं चल पा रहा है कि उनके प्रभाव और प्रेरणा से क्या नई गतिविधियां आरम्भ हुई हैं?
इस बार की मुलाक़ात से भगवा भक्तों और खान द्वय के प्रशंसकों को आश्चर्य भी हुआ. कहीँ कोई और कारण या दबाव तो काम नहीं कर रहा? यह भी हो सकता है कि भाजपा के दूसरी बार सत्ता में आने से विरोधी और आलोचनात्मक आवाज़ों को लग रहा हो कि सरकार और प्रधान मंत्री के साथ रहने में ही भलाई है. यह भी हो सकता है कि भाजपा की तरफसे ऐसी कोशिशें हो रही हों. गौर कर सकते हैं कि इस बार की मुलाक़ात में कोई घोर समर्थक कलाकार नहीं दिखा. एक कंगना रनोट ही थीं,जो पूरी तरह से समर्थन में बोलती नज़र आती है. किसी भी आशंका या स्किम से परे हम तो यही उम्मीद करेंगे कि फ़िल्म बिरादरी गांधीवाद की फिल्मी अभिव्यक्ति को लेकर मुखर हो.
पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक सत्ता और फ़िल्म बिरादरी की नज़दीकियों को ध्यान से देखा जा सकता है. फिल्मों में नेहरू युग का व्यापक प्रभाव रहा है. खास कर राज कपूर की लोकप्रिय गिल्मों में...उस दौर के बाकी फिल्मकारों ने भी देश के नव निर्माण की कहानियां दिखाईं. सामंती सामजिक सोच और सरंचना को प्रेम के बहाने तोड़ा. आज़ादी के बाद के रूढ़ियों में जकड़े समाज में प्रेम बाद प्रतिरोध था. शास्त्री जी के आह्वान पर मनोज कुमार ने 'जय जवान,जय किसान' की थीम पर फ़िल्म बनाई और भारत कुमार के नाम से मशहूर हुए.
गांधीवाद पर फिल्में बनाने बेहतर है. विश्व शांति और भाईचारे के लिए यह ज़रूरी है. अभी तो 'राष्ट्रवाद के नवाचार' के फैशन में जबरदस्ती फिल्मों में नारेबाजी चल रही है. संकीर्णता और असहिष्णुता के प्रकोप में गांधीवाद से प्रेरित फ़िल्में विकल्प बन सकती है. दो-चार भी बन जाएं तो काफी है. राजकुमार हिरानी ने नामाकन पेश किया,जिसमें गांधी के विचारों के बीज शब्दों की बात की. पर्दे पर उन्हें लोकप्रिय सितारों ने पेश किया।
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