सिनेमालोक : कुछ फिल्में गांधी की
सिनेमालोक
कुछ फिल्में गांधी की
-अजय ब्रह्मात्मज
भक्त विदुर (1921) - निर्देशक कांजीलाल राठौड़ ने कोहिनूर फिल्म कंपनी के लिए 'भक्त विदुर' का निर्देशन किया था.
फिल्म के निर्माता द्वारकादास संपत और माणिक लाल पटेल थे. दोनों ने फिल्म में
क्रमशः विदुर और कृष्ण की भूमिकाएं निभाई थीं. इस फिल्म में विदुर ने गांधी टोपी
और खद्दर धारण किया था. यह मूक फ़िल्म दर्शकों को भा गई थी. इतनी भीड़ उमड़ी थी कि
पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा. इस फिल्म को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर
दिया था. आदेश में लिखा था, 'हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं? यह विदुर नहीं है, यह गांधी है और हम
इसकी अनुमति नहीं देंगे.' 'भक्त विदुर' भारत की पहली प्रतिबंधित फ़िल्म थी.
महात्मा गांधी टॉक्स(1931) – अमेरिका की फॉक्स मूवीटोन कंपनी
ने गांधी जी से बातचीत रिकॉर्ड की थी. इसके लिए वे बोरसाद गांव गए थे. गांधी जी की
आधुनिक तकनीकी चीजों में कम रूचि थी, फिर भी उन्होंने इसे रिकॉर्ड की अनुमति दी. वैसे
उन्होंने कहा भी कि ‘मैं ऐसी चीजें पसंद नहीं करता, लेकिन मैंने खुद को समझा लिया
है.
महात्मा गांधी 20
वीं सदी का मसीहा(1937) - एक के चेट्टियार ने
गांधी जी पर डॉक्यूमेंट्री का निर्माण किया था. इस डॉक्यूमेंट्री में तमिलनाडु के
तिरुपुर में सूत कातती 200 महिलाएं नजर आती हैं. पीछे से कर्नाटक के गायक डीके पटेल की
आवाज में आडू राति(चरखे को चलने दो) गीत सुनाई पड़ता है. तमिल में बनी इस फिल्म को
बाद में तेलुगू और हिंदी में भी डब किया गया. कुल 50000
फीट के फुटेज को एडिट कर 12000 फीट
की फिल्म बनी थी.
महात्मा/धर्मात्मा(1935)
- वी शांताराम निर्देशित यह फिर मराठी और हिंदी में प्रदर्शित
हुई थी. इसमें बालगंधर्व ने अभिनय किया था. संत तुकाराम के जीवन पर आधारित इस
फिल्म का शीर्षक अधिकारियों को गांधीजी के संबोधन से मिलता-जुलता लगा था.इसलिए
विशेष आदेश देकर फिल्म का शीर्षक बदला गया. वी. शांताराम ने फिर ‘धर्मात्मा’
शीर्षक से इसे रिलीज किया.
गांधी(1982)
- रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ महात्मा गांधी के जीवन पर सर्वाधिक
चर्चित और देखि गयी फिल्म है. भारत सरकार के सहयोग से निर्मित इस फिल्म को देश-विदेश
में प्रशंसा मिली. महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के प्रयोगों को समेटती यह
फिल्म स्वतात्न्त्रता आन्दोलन की भी झलक
देती है. शीर्षक चरित्र महात्मा गांधी इस आंदोलन के प्रभावी नेता के रूप में दिखते
हैं. गांधी के व्यक्तित्व-कृतित्व को समझने के लिए यह बेहतरीन फिल्म है. इसमें गांधी की भूमिका गुजराती मूल के बेन किंग्सले ने निभाई थी.
इसे ऑस्कर के कई पुरस्कार मिले थे.
द मेकिंग ऑफ महात्मा(1996) - निर्देशक श्याम बेनेगल की ‘द
मेकिंग ऑफ महात्मा’ गांधी के महात्मा बनने की कहानी है. दक्षिण अफ्रीका में गांधी
के 20 वर्षों के प्रवास और अनुभवों को समेटती यह फिल्म बताती है कि
कैसे एक महत्वाकांक्षी बैरिस्टर ने ज़ुल्म और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई और महसूस
किया कि उन्हें भारत में आकर देश के आजादी के लिए काम करना चाहिए. दक्षिण अफ्रीका
में ही गांधीवादी मूल्यों और सिद्धांतों के बीज पड़े थे. युवा गांधी की भूमिका राजित
कपूर ने निभाई थी.
गांधी माय फादर(2017) - फिरोज फिरोज खान निर्देशित ‘गांधी माय
फादर’ गांधी और उनके बेटे हरिलाल के तनावपूर्ण संबंध की कहानी है. इस फिल्म में हम
देखते हैं कि देश की आजादी के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा शखस अपने सिद्धांतों और मूल्यों की वजह से गलतफहमी
का शिकार होता है. ऐसा लगता है कि गांधी हरिलाल के लिए आदर्श पिता नहीं थे.. पारिवारिक द्वंद्व में फंसे गांधी का मानवीय
पहलू नज़र आता है. जहाँ वे एक कमज़ोर,विवश और लाचार पिता के रूप में दिखते हैं.
इन सभी फिल्मों के अलावा कुछ ऐसी भी फिल्में हैं, जिनमें फोकस
गांधी पर नहीं है, वे इन फिल्मों में सहयोगी और खास चरित्र के रूप में दिखते हैं. ‘द
लीजेंड ऑफ भगत सिंह’, ‘डॉ बाबासाहेब आंबेडकर’, ‘सरदार’, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस –
द फॉरगोटन हीरो’ और वीर सावरकर जैसी फिल्मों में हम उन्हें एक अलग छवि में देखते
हैं. इन फिल्मों के लेखको और निर्देशकों ने गांधी से संबंधित पॉपुलर शिकायतों का
इस्तेमाल किया है. ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘रोड टू
संगम’ और ‘गांधी टू हिटलर’ में गांधी के आदर्शों और प्रयोगों का प्रासंगिक उपयोग
हुआ है.
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर आप इन फिल्मों को खोज कर देख सके तो
फिल्मों के माध्यम से उन्हें अच्छी तरह समझ सकेंगे.
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