सिनेमालोक : लागत और कमाई की बातें
सिनेमालोक
लागत और कमाई की बातें
-अजय ब्रह्मात्मज
निश्चित ही हम जिस उपभोक्ता समाज में रह रहे हैं,
उसमें कमाई, आमदनी, वेतन आदि का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है, काम से पहले दाम की
बात होती है, सालाना पैकेज पर चर्चा होती है, जी हां, पहले हर नौकरी का मासिक वेतन
हुआ करता था. अब यह वार्षिक वेतन हो चुका है. समाज के इस ट्रेंड का असर फिल्म
इंडस्ट्री पर भी पड़ा है. आये दिन फिल्मों के 100 करोड़ी
होने की खबर इसका नमूना है. अब तो मामला कमाई से आगे बढ़कर लागत तक आ गया है.
निर्माता बताने लगे हैं कि फलां सीन, फला गाने और फला फिल्म में कितना खर्च किया
गया?
कुछ महीने पहले खबर आई थी कि साजिद नाडियाडवाला की नितेश तिवारी
निर्देशित ‘छिछोरे’ के एक गाने के लिए 9 करोड़ का सेट तैयार किया गया था. फिल्म
देखने के बाद ही पता चलेगा कि सेट की वजह से उक्त गाना कितना मनोरंजक या
प्रभावशाली बन पाया? फिलहाल 9
करोड़ की लागत अखबार की सुर्खियों के
काम आ गई. सोशल मीडिया. ऑनलाइन और दैनिक अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा.
मीडिया के व्यापक कवरेज से फिल्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ ही गई होगी. जाहिर सी बात
है कि सामान्य से अधिक लागत का जिक्र करने से निर्माताओं को फायदा ही होता है,इसलिए
वे इस पर जोर देने लगे हैं.
दशकों पहले के आसिफ ने ‘मुगलेआज़म’ में एक गीत के लिए 1
करोड़ रुपए खर्च किए थे. ‘मुगलेआज़म’’ 1960 में आई थी. उन
दिनों तो एक करोड़ में फ़िल्में बन जाती थीं. फिर भी के आसिफ ने अपनी क्रिएटिव सनक
में ‘प्यार किया तो डरना क्या’ गाने के लिए शीशमहल तैयार किया था. कहा जाता है कि
मुगलों के महल में ऐसा एक कक्ष था. इस गाने की शूटिंग के अनेक किस्से हैं. यहां
इतना ही बता दूं कि नौशाद ने फाइनल करने के पहले शकील बदायूनी से इस गाने को 105 बार लिखवाया. खास
प्रभाव लाने के लिए नौशाद ने लता मंगेशकर से यह गाना स्टूडियो के बाथरूम में गवाया
था.
लागत और कमाई पर अब दर्शक भी गौर करने लगे हैं. हाल ही में अमृता
प्रीतम की स्वर्ण जयंती के मौके पर मैंने उनके उपन्यास ‘पिंजर’ पर इसी नाम से बनी
फिल्म का उल्लेख किया तो मेरे एक मित्र ने फौरन टिप्पणी की, ‘फिल्म अच्छी थी,
लेकिन कमाई नहीं कर सकी.’ मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कमाई ही फिल्में की
क्वालिटी की गारंटी होगी या लागत से फिल्म की गुणवत्ता तय होगी? है ना हैरत की बात?
इन दिनों हर शुक्रवार को रिलीज होने के साथ ही फिल्मों के कलेक्शन की बातें होने
लगती हैं. शुक्रवार से रविवार तक के कलेक्शन के आधार पर फिल्मों के हिट या फ्लॉप
होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है.
पिछले हफ्ते सुजीत निर्देशित ‘साहो’ रिलीज हुई है. इस फिल्म में ‘बाहुबली’
से विख्यात हुए अभिनेता प्रभास हैं. फिल्म के प्रमोशन के दौरान हर इंटरव्यू में
प्रभास फिल्म की लागत की बात करते रहे. वे यही बताते रहे कि ‘साहो’ के निर्माण में
350 करोड़
रुपये खर्च हुए हैं. इतना ही नहीं ‘साहो’ के एक्शन दृश्यों पर ही 150 करोड़ की लागत आई
है. यह फिल्म एक्शन की छौंक और प्रभास की लोकप्रियता की वजह से हिंदी में ठीक-ठाक
बिजनेस कर रही है, लेकिन फिल्म के बारे में ठीक-ठाक होने की बात नहीं कही जा सकती.
फिर भी जल्दी ही आंकड़े आने लगेंगे कि ‘साहो’ की कुल कमाई क्या रही? आप भी जानते
हैं कि यह फिल्म तेलुगू, तमिल, हिंदी और मलयालम में एक साथ रिलीज हुई है. वास्तव
में 350 करोड़ की लगत चार भाषाओँ की फिल्मों के लिए है.
वास्तव में लागत और कमाई की सोच उपभोक्ता समाज की देन है. जब
कामयाबी के साथ क्वालिटी पैसों से आंकी जाने लगे तो यही होता है. दर्शकों का ध्यान
खींचने, जिज्ञासा बढ़ाने और थिएटर में लाने के लिए इन युक्तियों का इस्तेमाल होने
लगा है.
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