सिनेमालोक : 50 के हुए अजय देवगन


सिनेमालोक
50 के हुए अजय देवगन
-अजय ब्रह्मात्मज
वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन आज 50 के हो गए.वे काजोल के पति हैं.उनकी पहली फिल्म ‘फूल और कांटे’ है. इसे कुक्कू कोहली ने निर्देशित किया था. इसी साल यश चोप्रा निर्देशित अनिल कपूर और श्रीदेवी की फिल्म ‘लम्हे’ भी रिलीज हुई थी. तब किसी को अनुमान नहीं था कि सामान्य चेहरे के अजय देवगन की फिल्म 1991 की बड़ी हिट साबित होगी. हिंदी सिनेमा का यह वैसा दौर था,जब मेलोड्रामा और गिमिक का खूब सहारा लिया जाता था. एक गिमिक हीरो की एंट्री हुआ करती थी.’फूल और कांटे’ में अजय देवगन दो मोटरसाइकिल पर खड़े होकर आते हैं. इस सीन पर तालियाँ बजी थीं और अजय देवगन एक्शन स्टार मान लिए गए थे. एक्शन डायरेक्टर के बेटे को एक्शन स्टार बताने के साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने अजय देवगन के लिए एक अलग केटेगरी तय कर दी थी.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लॉबी और ग्रुप के समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं. बहार से देखने पर लग सकता है कि अजय देवगन तो इनसाइडर हैं. उनके पिता स्थापित एक्शन डायरेक्टर रहे हैं तो अजय की लौन्चिंग में कोई दिक्कत नहीं हुई होगी. सच्छायी कुछ और है. इनसाइडर की अपनी व्यवस्था और अनुक्रम है...आप किसी स्टार की संतान हैं,या डिरेक्टर की या किसी तकनीशियन की....परिवार की इस लिगेसी के आधार पर आपका स्थान तय किया जाता है. अजय देवगन एक्शन डायरेक्टर के बेटे थे,इसलिए उन्हें दूसरे स्टारकिड जैसी स्वीकृति नहीं मिली और न ही पहले से कोई हलचल मची. अजय ने अपनी प्रतिभा से लोहा मनवाया और पहली फिल्म से ही स्टार की कतार में खडे हो गए. उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट डेब्यू अवार्ड मिला. बाद में तो उन्हें ‘ज़ख्म’ और ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले.
अजय देवगन अपनी पीढ़ी के लहदा अभिनेता हैं. कहते हैं उनकी आँखें बोलती हैं. निश्चित ही वे अपनी आँखों का सार्थक उपयोग करते हैं. उनकी अदाकारी की खास बात है कि वे समकालीन अभिनेताओं से अलग किसी भी किरदार को अंडरप्ले करते हैं. उनके निर्देशक उनकी चाल का भी इस्तेमाल करते हैं. उनकी ज्यादातर फिल्मों में उन्हें एक खास वाक के साथ कुछ दूरी तय करनी होती है और फिर दृश्य आरम्भ होता है. एक बार मैंने अपने इस निरिक्षण के बारे में उनसे पूछा था तो वे हंस पड़े थे. उन्होंने स्वीकार करते हर जवाब दिया था कि आपने सही गौर किया है. ऐसा लगभग सभी फिल्मों में मेरे साथ होता है. शायद उन्हें सीन ज़माने में इससे मदद मिलती हो. उनकी चाल और आँख के साथ ही दृश्यों और शॉट में उनक किफायती होना निर्देशकों और निर्माता के लिए फायदेमंद होता है.
किफायती अभिनय से तात्पर्य कम से कम रिटेक में अपना शॉट पूरा करना. सीन की ज़रुरत के मुताबिक एक्सप्रेशन रखना. ज्यादा फुटेज नहीं खाना और अपने शॉट में पर्याप्त स्फूर्ति रखना. फिल्म ढीली और कमज़ोर हो तो भी अजय देवगन के शॉट डल नहीं होते. उनकी कोशिश रहती है कि स्क्रिप्ट के अभिप्राय को अच्छी तरह व्यक्त करें, ज्यादातर निर्देशक उन्हें दोहराना पसंद करते हैं. गौर करें तो निर्देशकों ने उनकी अलग-अलग खासियत को पकड़ लिया है और वे उनके उसी आयाम को अपनी फिल्मों में दिखाते हैं. जैसे कि रोहित शेट्टी उनके व्यक्तित्व में मौजूद कॉमिक स्ट्रीक का ‘गोलमाल सीरीज में इस्तेमाल करते हैं तो सिंघम सीरीज में उनका रौद्र रूप दिखाई पड़ता है.
अजय देवगन को लगता नहीं है कि वे किसी विचलन के शिकार हैं या कमर्शियल सिनेमा उनका बेजा इस्तेमाल भी करता है. वे ‘टोटल धमाल’ जैसी फ़िल्में भी उसी संलग्नता से करते दिखाई पड़ते हैं,जबकि लगता है कि उनके जैसा होनहार एक्टर ऊल्जल्लो दृश्यों को कैसे हैंडल करता होगा? कोई कचोट तो उठती होगी? अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें बताना चाहिए कि इसे उन्होंने कैसे साधा है?
उन्हें जन्मदिन की बधाई!


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