सिनेमालोक : मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’
सिनेमालोक
मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’
-अजय ब्रह्मात्मज
हाल ही में मृणाल सेन का निधन हुआ
है.पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें याद करते हुए उनकी ‘भुवन शोम’ को बार-बार याद किया
गया.इसी फिल्म से भारत में पैरेलल सिनेमा की शुरुआत मानी जाती है.हिंदी अख़बारों
में इसकी अधिक चर्चा इसलिए भी होती है कि इसका वायसओवर अमिताभ बच्चन ने किया था. मृणाल
सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’ फिल्म को याद करते हुए तृषा गुप्ता ने प्यारा सा लेख
लिखा है. उन्होंने उल्लेख किया था कि यह फिल्म महादेवी वर्मा के रेखाचित्र पर
आधारित था. मेरी जिज्ञासा बढ़ी.मैंने पहले फिल्म देखी और फिर खोज कर मूल रचना
पढ़ी. महादेवी वर्मा के संस्मरण का शीर्षक है ‘वह चीनी भाई’.
सिनेमा और साहित्य के संबंधों पर संगोष्ठियाँ
होती रहती हैं. पर्चे लिखे जाते हैं.मैंने खुद कई बार ऐसी संगोष्ठियों को संबोधित
किया है. मैं इस कहानी और इस पर बनी फिल्म से परिचित नहीं था. धन्यवाद् तृषा गुप्ता
कि एक सुंदर और ज़रूरी फिल्म से परिचय हो गया. 1959 में बनी इस फिल्म में एक चीनी और
एक भारतीय के संबंध को मानवीय स्तर पर चित्रित किया गया है.महादेवी वर्मा के
संस्मरण में वह खुद भी हैं. उन्होंने इलाहाबद में मिले चीनी के बारे में लिखा है. फिल्म में कथा का विस्तार किया गया है. संस्मरण की बैक स्टोरी में बर्मा
है,लेकिन मृणाल सेन ने फिल्म बनाते समय इसमें चीन का उल्लेख किया है. फिल्म में दो-तीन
फ्लैशबैक में चीन की कहानी चलती है. फिल्म का नायक चीन के शानतुंग प्रान्त का वांग
लू है.
मृणाल सेन ने ‘नील आकाशेर नीचे’ में महादेवी
वर्मा के रेखाचित्र ‘वह चीनी भाई’ को चलचित्र में बदलते समय अनेक परिवर्तन किये
हैं.इलाहबाद की कहानी कोलकाता चली जाती है. चीनी भाई का नामकरण वांग लू हो जाता है. महादेवी वर्मा कांग्रेसी कार्यकर्ता में बदल जाती हैं. उनके पति,सास और नौकर भी
किरदार के तौर पर जुड़ जाते हैं. फिल्म की कहानी चीन के शानतुंग भी जाती है. वहां के
जमींदार और बहन के जरिये हम वांग लू की पीड़ा से परिचित होते हैं. फिल्म में
खूबसूरती के साथ चीन के तत्कालीन हालत को पिरोया गया है. तब जापान ने चीन के
नानचिंग शहर पर भयानक हमला किया था. इस हमले का रविंद्रनाथ टैगोर ने विरोध किया
था. उन्होंने जापान के नागुची को पत्र लिखा था. मृणाल सेन ने चीन के संघर्ष और भारत
की आज़ादी के संघर्ष को वांग लू और बसंती के साथ एक ज़मीं पर लाकर जोड़ा है.
रेखाचित्र के अनुसार फिल्म में भी चीनी भाई बताता
है कि वह फारेनर नहीं है,वह तो चीनी है. उसकी चमड़ी गोरी नहीं है. उसकी आँखें नीली
नहीं हैं. पिछली सदी के चौथे दशक में भारत और चीन लगभग एक जैसी स्थिति में थे और
अपनी आज़ादी के सपने बुन रहे थे.’नील आकाशेर नीचे’ में बगैर किसी भाईचारे के नारे के
ही एक रिश्ता बनता दिखाई देता है. यह फिल्म देखी जानी चाहिए. खासकर सिनेमा और साहित्य
तथा भारतीय फिल्मों में चीनी किरदारों के चित्रण के सन्दर्भ में यह ज़रूरी फिल्म
है. कुछ सालों पहले हांगकांग से एक पत्रकार भारत आये थे. वे भारतीय फिल्मों में चीनी
किरदारों की नेगेटिव छवि की वजह जानना चाहते थे. तब इस फिल्म की जानकारी रहती तो
मैंने ख़ुशी और गर्व से उन्हें बताया होता. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों
देशों के बीच आई खटास ने सदियों के सांस्कृतिक संबंध को खट्टा कर दिया. ’नील आकाशेर
नीचे’ पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. इधर चीन भारतीय फिल्मों के बाज़ार के तौर पर
उभरा है. फ़िल्मकार ध्यान दें तो चीन हिंदी और अन्य भाषाई फिल्मों के लिए उर्वर
कथाभूमि हो सकती है. वहां अनेक कहानिया बिखरी पड़ी हैं,जिनके सिरे भारत से जुड़े हैं.
इस फिल्म की रिलीज के बाद निर्माता हेमेंद्र
मुखर्जी(गायक हेमंत कुमार) ने प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु और राष्ट्रपति
राजेंद्र प्रसाद को यह फिल्म दिल्ली में दिखाई थी. मृणाल सेन की यह दूसरी फिल्म थी.
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