सिनेमालोक :आयुष्मान खुराना
सिनेमालोक
आयुष्मान खुराना
-अजय ब्रह्मात्मज
इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को
यह कॉलम समर्पित होगा,जो हिंदी फिल्मों
में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में
आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया.
2018 में दो हफ़्तों के अन्दर आयुष्मान खुराना की
दो फ़िल्में कामयाब रहीं.श्रीराम राघवन निर्देशित ‘अंधाधुन’ और अमित शर्मा
निर्देशित ‘बधाई हो’. दोनों फिल्मों का फलक अलग था.दोनों के नायक हिंदी फिल्मों के
पारंपरिक नायक से अलग थे.आयुष्मान की ताहि खासियत उन्हें विशिष्ट बनाती है.शूजित
सरकार की ‘विकी डोनर’ से लेकर ‘बधाई हो’ तक के उनके चुनाव पर गौर करें तो सभी
फिल्मों में उनके किरदार अलहदा रहे हैं.धीरे-धीरे स्थापित होने के साथ ही नयी
धारणा बन चुकी है की अगर आयुष्मान खुराना की कोई फिल्म आ रही है तो उसका नायक
मध्यवर्गीय ज़िन्दगी के किसी अनछुए पहलू को उजागर करेगा.हाल ही में उनकी ताज़ा फिल्म
‘ड्रीम गर्ल’ का फर्स्ट लुक सामने आया है.यहाँ भी वह चौंका रहे हैं.उम्मीद करते
हैं कि इस बार वह किसी शारीरिक या पारिवारिक उलझन में नहीं फंसे होंगे.
इन दिनों लोकप्रिय और बड़े स्टार भी दर्शक नहीं
जुटा पाते.दर्शक निर्मम हो चुके हैं.उन्हें फिल्म पसंद नहीं आई तो वे परवाह नहीं
करते कि इसमें आमिर खान हैं या अमिताभ बच्चन हैं,या फिर दोनों हैं.इस माहौल में
‘बधाई हो’ ने सिनेमाघरों में 50 दिन पूरे कर लिए.दर्शक अभी तक इसे देख रहे हैं.यह
बड़ी बात है,क्योंकि आजकल कुछ फिल्मों के लिए कई बार 50 शो खींचना भी मुश्किल हो
जाता है.क्या आप को याद है कि ‘बधाई हो’ के साथ ‘नमस्ते लंदन’ रिलीज हुई
थी.फेसवैल्यू के लिहाज से उसमें बड़े नाम थे.चालू फार्मुले की पंजाब की चाशनी में
लिपटी उस फिल्म को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था.दरअसल,दर्शक इन दिनों स्टार और
बैनर के झांसे में पहले दिन सिनेमाघरों में चले भी जायें.अगले शो और अगले दिन तक
उन्हें सही रिपोर्ट मिल चुकी होती है.
आयुष्मान के करियर को देखें तो स्टेज और टीवी शो
के जरिये वह फिल्मों तक पहुंचे.चंडीगढ़ में मामूली परिवार एन पले-बढे आयुष्मान
खुराना के सपने बड़े थे.चंडीगढ़ शहर भी उन सपनों के लिए छोटा पड़ गया था.पढाई के
दिनों में ही उन्होंने मंडली बनायीं और सपनों को परवाज़ दिया.वक़्त रहले लोगों ने
पहचाना और उन्हें उड़ने के लिए आकाश दिया.उन पारखी नज़रों को भी धन्यवाद् देना
चाहिए,जिन्होंने साधारण चेहरे और कद-काठी के इस युवक को मौके दिए.आयुष्मान ने खुद
की मेहनत और प्रतिभा से सभी अवसरों का भरपूर लाभ उठाया और निरंतर कामयाबी की
सीढियां चढ़ते गए.आयुष्मान की कामयाबी नयी युवा प्रतिभाओं के लिए नयी मिसाल बन गयी
है.
आयुष्मान खुराना की फिल्मों,किरदार और अभिनय शैली
पर नज़र डालें तो उनमें हिंदी फिल्मों के हीरो के लक्षण नहीं दिखते.सभी किरदार
मामूली परिवारों और परिवेश से आते हैं.ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार और परिवेश ही
होते हैं.फिल्म शुरू होने के साथ नायक की साधारण उलझन उभर आती है.लगभग सभी फिल्मों
में वे अपनी प्रेमिकाओं को रिझाने और उलझनों से निकलने की कोशिश में एक साथ लगे
रहते हैं.उनकी नायिकाएं कामकाजी होती हैं.उनका अपना परिवार भी होता है.यानि आम
फिल्मों की नायिकाओं की तरह उन्हें परदे पर सिर्फ प्रेम नहीं करना होता
है.आयुष्मान खुराना आम हीरो जैसी मुश्किलों में नहीं फंसते,इसलिए उन्हें हीरोगिरी
दिखाने का भी मौका नहीं मिलता.फिर भी यह मामूली नायक दर्शकों को पसंद आता है.कुछ
आलोचक इस नए नायक को नहीं पहचान पाने की वजह से सुविधा के लिए आयुष्मान खुराना को
अमोल पालेकर से जोड़ देते हैं.वास्तव में दोनों बहुत अलग कलाकार हैं.कह सकते हैं कि
दोनों के निभाए किरदार समय और परिस्थिति की वजह से भी अलग मिजाज रखते हैं.
आयुष्मान खुराना की एक और खासियत है.वह गायक
हैं.उनकी फिल्मों में उनकी आवाज़ का इस्तेमाल होता है.उन गीतों को परदे पर निभाते
और गुनगुनाते समय आयुष्मान खुराना की
तल्लीनता देखते ही बनती है.ठीक है कि उन्हें अभि किशोर कुमार या सुरैया जैसी ऊंचाई
नहीं मिली है,लेकिन यह एहसास ही कितना सुखद है कि 21वीं सदी में कोई कलाकार अभिनय
के साथ गायन भी करता है.हिंदी फिल्मों की यह परमपरा विलुप्त ही हो गयी है. सुना है
कि फुर्सत मिलते ही आयुष्मान खुराना जिम के बजे जैमिंग(गाने का अभ्यास) में समय
बिताते हैं.
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