सिनेमालोक : तापसी पन्नू


सिनेमालोक
तापसी पन्नू
दिसंबर आरभ हो चुका है.इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा,जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया.
हम शुरुआत कर रहे हैं तापसी पन्नू से.2012 की बात है.तापसी पन्नू की पहली हिंदी फिल्म ‘चश्मेबद्दूर रिलीज होने वाली थी. चलन के मुताबिक तापसी के निजी पीआर ने उनके साथ एक बैठक तय की.पता चला था कि दक्षिण की फिल्मों से करियर आरम्भ कर दिल्ली की यह पंजाबी लड़की हिंदी में आ रही है.पहली फिल्म के समय अभनेता/अभिनेत्री थोड़े सहमे और डरे रहते हैं.तब उनकी चिंता रहती है कि कोई उनके बारे में बुरा न लिखे और उनका ज़रदार स्वागत हो.तापसी भी यही चाहती रही होंगी या यह भी हो सकता है कि पीआर कंपनी ने उन्हें भांप लिया हो.बहरहाल अंधेरी के एक रेस्तरां में हुई मुलाक़ात यादगार रही थी.यादगार इसलिए कह रहा हूँ की,उसके बाद तापसी ने हर मुलाक़ात में पहली भेंट का ज़िक्र किया.हमेशा अच्छी बातचीत की.अपनी तैरियों और चिंताओं को शेयर किया.अपना हमदर्द समझा.कामयाबी के साथ आसपास हमदर्दों और सलाहकारों की भीड़ लग जाती है.ऐसे में संबंध टूटते हैं,लेकिन तापसी ने इसे संभाल रखा है.
बहरहाल,तापसी ने ‘चश्मेबद्दूर से शुरुआत कर ‘बेबी से बड़ी धमक दी.’बेबी में तापसी की भूमिका छोटी लेकिन महत्वपूर्ण थी.शबाना खान इ भूमिका ने तापसी ने अपनी फूर्ती और मेधा से चकित किया था.अक्षय कुमार के होने के बावजूद वह दर्शकों और समीक्षकों को याद रह गयी थीं.यह उस भूमिका का ही कमाल था कि बाद में नीरज पाण्डेय ने ‘नाम शबाना फिल्म बनायीं और उस किरदार को नायिका बना दिया.’नाम शबाना का निर्देशन शिवम नायर ने किया था.इसके पहले अनिरुद्ध राय चौधरी के निर्देशन में ‘पिंक आ चुकी थी.’पिंक में तापसी ने मीनल अरोड़ा की दमदार भूमिका में ज़रुरत के मुताबिक एक आधुनिक लड़की की हिम्मत का परिचय दिया था.’पिंक अपने विषय की वजह से शहरी दर्शकों के बीच खूब पसंद की गयी थी.इं दोनों फिल्मों के बाद जब तापसी ने ‘जुड़वां 2 चुनी तो उनके खास प्रशंसकों को परेशानी हुई.तब तापसी ने कहा था की वह मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा और हाई कांसेप्ट सिनेमा के बीच तालमेल रखना चाहती हैं.वह अपने दर्शकों का विस्तार चाहती हैं.
2018 में तापसी पन्नू की ‘सूरमा,’मुल्क और ‘मनमर्जियाँ’ फ़िल्में आयीं हैं.तीनों ही फ़िल्में अलग मिजाज की हैं.’सूरमा में वह हाकी प्लेयर हैं,जो अपने प्रेमी संदीप सिंह से दूर जाने का मुश्किल फैसला लेती है ताकि वह अपने खेल और रिकवरी पर ध्यान दे सके.अनुभव सिन्हा निर्देशित ’मुल्क में वह वकील आरती मल्होत्रा की भूमिका में है.आरती ने मुस्लिम लड़के से शादी की है.वह अपने ससुराल के पक्ष में कोर्ट में कड़ी होती है और मुसलमानों के प्रति बनी धारणाओं को तर्कों से तोडती है.अनुराग कश्यप की ‘मनमर्जियाँ’ में वह आजाद ख्याल रूमी बग्गा के किरदार में खूब जंची हैं.यह तो स्पष्ट है कि तापसी पन्नू अभि तक किसी एक इमेज में नहीं बंधी हैं.वह प्रयोग कर रही हैं.
तापसी पन्नू हिंदी फिल्मों की टिपिकल हीरोइन बन्ने से बची हुई हैं.यह एक अभिनेत्री के लिए तो सही है,लेकिन एक स्टार अभिनेत्री को मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्मों की ज़रुरत होती है.किसी लोकप्रिय स्टार के साथ रोमांटिक भूमिका में आने से उनके दर्शक बढ़ते हैं,तापसी भी यह चाहती हैं.अभि तक लोकप्रिय स्टार उनसे दूर-दूर हैं.अगर बात नहीं बिगड़ी होती तो वह आमिर खान की बेटी की भूमिका में ‘दंगल में दिखी होतीं. हो सकता है उसके बाद उनके करियर की दिशा अलग हो जाती. ‘दंगल न हो पाने का एक फायदा हुआ कि तापसी नए निर्देशकों की पसंद बनी हुई हैं,उन्हें लगता है कि अलग किस्म की भूमिकाओं में तापसी को चुना जा सकता है.’तड़का और ‘बदला उनकी अगली फ़िल्में हैं.
हिंदी फिल्मों में बाहर से आई अभिनेत्रियों के लिए टिक पाना ही मुश्किल होता है.ताप पन्नू ने तो अपनी पहचान और प्रतिष्ठा हासिल कर ली है.फिर भी हिंदी फिल्मों के केंद्र में अभि वह नहीं पहुंची हैं.म्हणत के साथ ही उन्हें फिल्मों के चुनाव के प्रति भी सजग रहना होगा.उन्हें बड़े बैनर और बड़े निर्देशकों के साथ फ़िल्में करनी होंगी.लोकप्रियता और स्टारडम का यही रिवाज़ है.


Comments

तापसी एक बेतरीन अदाकारा है। उम्मीद है वो ऐसा ही बढ़िया काम करती रहेंगी। अगर स्टारडम के चक्कर में पढ़कर वो भी टाइपकास्ट हो गयी तो शायद फिल्मो के लिए ही यह बुरा होगा।

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