आयुष्मान खुराना : रुपहले परदे के राहुल द्रविड़
आयुष्मान खुराना : रुपहले परदे के राहुल द्रविड़
-अजय ब्रह्मात्मज
क्रिकेट और फिल्म में अनायास रिकॉर्ड बनते हैं.अचानक कोई खिलाडी या
एक्टर उभरता है और अपने नियमित प्रदर्शन से ही नया रिकॉर्ड बना जाता है.अक्टूबर का
महीना हमें चौंका गया है.आयुष्मान खुराना की दो फ़िल्में 15 दिनों के अंतराल पर रिलीज
हुईं और दोनों फिल्मों ने अच्छा प्रदर्शन किया.दोनों ने बॉक्स ऑफिस पर बेहतर
परफॉर्म किया और आयुष्मान खुराना को एक्टर से स्टार की कतार में ला खडा किया.पिछले
शनिवार को उनकी ताज़ा फिल्म ‘बधाई हो’ ने
8.15 करोड़ का कलेक्शन किया.यह आंकड़ा ‘बधाई हो’ के
पहले दिन के कलेक्शन से भी ज्यादा है,जबकि
यह दूसरा शनिवार था.लोकप्रिय स्टार की फ़िल्में भी दूसरे हफ्ते के वीकेंड तक आते-आते
दम तोड़ देती हैं.इस लिहाज से आयुष्मान खुराना ‘अंधाधुन’ और ‘बधाई हो’ की कामयाबी से भरोसेमंद एक्टर-स्टार की श्रेणी में आ गए हैं.
गौर करने वाली बात है कि ‘बधाई हो’ अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा की ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के साथ रिलीज हुई थी.विपुल शाह निर्देशित यह
फिल्म ‘नमस्ते लंदन’ की कड़ी में पंजाब की पृष्ठभूमि की
कहानी थी.स्वाभाविक तौर पर माना जा रहा था कि यह फिल्म अच्छा कारोबार करेगी.आजमाए
हुए सफल फार्मुले की ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के
सामने ‘बधाई हो’ जैसी ‘आउटऑफ़ बॉक्स’ फिल्म थी.’बधाई हो’ के कलाकारों की स्टार वैल्यू ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के कलाकारों से कम और कमज़ोर थी.फिर भी दर्शकों
के रुझान से पहले ही दिन जाहिर हो गया कि पंजाब की देखी-सुनी कहानी से वे विरक्त
हैं.उन्होंने ‘बधाई हो’ को पसंद किया और उमड़ कर सिनेमाघरों
में पहुंचे.और अभी तक जा रहे हैं.
आज बासु चटर्जी,हृषीकेश मुखर्जी,सई परांजपे आदि डायरेक्टर एक्टिव होते
तो अमोल पालेकर और फारुख शेख की तरह आयुष्मान खुराना उनके पसंदीदा एक्टर-स्टार
होते.यह भी हो सकता था कि कुछ अनोखी कहानियां लिखी जातीं.आयुष्मान खुराना ने फिल्मों
के चुनाव से यह स्पष्ट संकेत दिया है कि वे अपारंपरिक हीरो की भूमिका निभाने के
लिए तैयार और सक्षम हैं.उनकी पहली फिल्म ‘विकी डोनर’ स्पर्म डोनेशन के अनोखे विषय
पर बनी रोचक फिल्म थी.शूजित सरकार की इस फिल्म को दूसरे अभिनेताओं ने ठुकरा दिया
था.फिल्म इंडस्ट्री के रिवाज से किसी भी नए एक्टर के लिए ऐसा विषय चुनना पूरी तरह
से जोखिम का काम था,लेकिन शूजित सरकार के सधे हाथों और
पैनी नज़र से यह फिल्म मानवीय संवेदना के अनछुए पहलू को लेकर आई.आयुष्मान खुराना,अन्नू कपूर और अन्य सहयोगी कलाकारों ने इसे
फूहड़ और साधारण होने से बचा लिया.दर्शक फिल्म देखते हुए आनंदित हुए.
हाल ही में राष्टीय पुरस्कारों से सम्मानित और प्रशंसित एक्टर मनोज
बाजपेयी से इधर तेज़ी से उभरे तीन अभिनेताओं राजकुमार राव,विकी कौशल और आयुष्मान खुराना की मौजूदगी पर
बात हो रही थी.उन्होंने आयुष्मान खुराना के बारे में मार्के की बात कही.उनके
मुताबिक,’ आयुष्मान खुराना का दिल और दिमाग सही
जगह पर है.वह इंटेलीजेंट एक्टर हैं.उन्होंने अपना स्ट्रेंग्थ जान लिया है.वह
फिल्मों के राहुल द्रविड़ हैं.वह खेलते रहेंगे.’
किसी सीनियर अभिनेता का यह ऑब्जरवेशन गौरतलब है.आयुष्मान खुराना मामूली विफलताओं
के बावजूद समय बीतने के साथ लोकप्रियता और स्वीकृति की सीढियां चढ़ते गए हैं.’विकी
डोनर’ के बाद उनसे भी ‘बेवकूफियां’ हुई हैं.’बेवकूफियां’,’नौटंकी साला’ और ‘हवाईजादा’ उनकी कमज़ोर फ़िल्में रहीं.उन्होंने 2016 में आई ‘दम
लगा के हईसा’ से बताया कि अपनी असफलता से वह बेदम
नहीं हुए हैं.इस फिल्म में प्रेम प्रकाश तिवारी जैसे फेलियर और ग्रंथिपूर्ण किरदार
को वह पूरी संजीदगी और प्रभाव के साथ जीते हैं.इस फिल्म के बाद उनके चढ़ते कदम अभी
तक नहीं लड़खड़ायें हैं.2017 में ‘बरेली की बर्फी’ और ‘शुभ मंगल सावधान’ की
कामयाबी से ‘मेरी प्यारी बिंदु’ को
गौण कर दिया.उनके प्रशंसकों को उस फिल्म का नाम याद भी नहीं होगा.
हिंदी फिल्मों के इतिहास में हर अभिनेता को कुछ साल ऐसे मिलते हैं,जब उसकी जबरदस्त स्वीकृति रहती है.इस दौर में
उसके उन्नीस-बीस परफॉरमेंस को दर्शक-प्रशंसक नज़रअंदाज कर देते हैं.वे किसी
प्रेमी/प्रेमिका की तरह अपने प्रिय स्टार की मामूली चूकों पर ध्यान नहीं देते.
आयुष्मान खुराना का अभी ऐसा ही वक़्त चल रहा है. अगर उनकी फिल्मों के विषय देखें तो
हम पाते हैं कि अपनी अधिकांश फिल्मों में आयुष्मान खुराना पारंपरिक नायक नहीं
होते.वे मध्यवर्गीय परिवारों के औसत युवक होते हैं,जो कभी शारीरिक तो कभी पारिवारिक उलझनों में फंसा है.वह उनसे निबटने
का कोई ‘ओवर द टॉप’ या अतिरंजित युक्ति नहीं अपनाता.उसमें हिंदी फिल्मों के नियमित
नायकों की अविश्वसनीय शक्तियां नहीं रहतीं.अपनी नायिकाओं के साथ उसकी गलतफहमियां
चलती रहती हैं.आयुष्मान खुराना की फिल्मों की नायिकाएं दमदार और स्वतंत्र
व्यक्तित्व की होती हैं.वे शरमाती या सिफोन की साड़ियाँ लहराती उसके पास नहीं
आतीं.वे कामकाजी भी होती हैं.ऐसी नायिकाओं के साथ नायक के प्रेम संबंध दिखाने के लिए
लेखकों और निर्देशकों को भी मशक्कत करनी पड़ती है.और फिर आयुष्मान खुराना अपनी
सामान्य कद-काठी से उन नायकों को सहज भाव-भंगिमा देते हैं.आयुष्मान अपनी फिल्मों
में अधिक नाटकीय या हाइपर नहीं दिखते.’बरेली की बर्फी’ में उनका किरदार आक्रामक और चालाक था,लेकिन अपनी मासूमियत से वह ठगा भी जाता है.उस
फिल्म में तो राजकुमार राव अपने दोरंगी किरदार से दर्शकों के चहेते बन गए थे और
आयुष्मान खुराना से लाइमलाइट छीन ली थी.
आयुष्मान खुराना ने पिछले छह सालों में खुद की मेहनत और दर्शकों के
प्रेम से यह ऊंचाई हासिल की है.शादीशुदा आयुष्मान खुराना एक समझदार और सहयोगी पति
की छवि पेश करते हैं और पारिवारिक गरिमा का पालन करते हैं.वे गायक,कवि और लेखक भी हैं.कहीं न कहीं माँ से उन्हें
सारी सृजनात्मकता मिली है.अभिनय कौशल पर उनकी किताब आ चुकी है.और खबर है कि वे
जल्दी ही अपनी कविताओं का संग्रह प्रकाशित करना चाहते हैं.सफलता के साथ हर
एक्टर-स्टार के आसपास एक हुजूम खड़ा हो जाता है.शुभचिंतक बना यह हुजूम स्टार को खास
दिशा में ले जाना चाहता है और शीर्ष पर ले जाने का भुलावा देकर ग्लैमर की गलियों
में भटका भी देता है.बस,आयुष्मान खुराना सावधान रहें और बहके नहीं
तो उनकी पारी राहुल द्रविड़ की तरह मजबूत और यादगार होगी.
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