दरअसल : ‘धड़क’ में ‘सैराट’ की धड़कन



दरअसल
धड़कमेंसैराटकी धड़कन
- अजय ब्रह्मात्मज

दो साल पहले नागराज मंजुले की मराठी फिल्मसैराटआई थी.किसी आम मराठी फिल्म की तरह रिलीज हुई सैराट कुछ ही दिनों में खास फिल्म बन गई. विशेष कर मुंबई में  इसकी बेहद चर्चा हुई. फिल्म बिरादरी और फिल्म प्रेमी समाज में  उन दिनों एक ही जिज्ञासा थी किआपने सैराट देखी क्या?’ फिल्म की सराहना और कमाई से अभिभूत गैरमराठी दर्शकों ने भी यह फिल्म देखी. हर साल एक-दो ऐसी मराठी फिल्में आ ही जाती हैं,जिनकी राष्ट्रीय चर्चा होती है. सिनेमा के भारतीय  परिदृश्य में मराठी सिनेमा की कलात्मक धमक महसूस की जा रही है. सैराट कलात्मक होने के साथ व्यावसायिक सफलता हासिल कर सभी को चौंकाया. यह अधिकतम व्यवसाय करने वाली मराठी फिल्म है.
सैराटकी लोकप्रियता और स्वीकृति से प्रभावित निर्माताओं ने इसे अन्य भारतीय भाषाओं में रीमेक किया.यहा अभी तक कन्नड़,उड़िया, पंजाबी और बंगाली में बन चुकी है. हिंदी में यहधड़कनाम से रिलीज हो रही है.धड़कके निर्माता  करण जोंहर हैं. इसके निर्देशक शशांक खेतान हैं,जिन्होंने करण जौहर के लिए दुल्हनिया सीरीज  में दो सफल लव स्टोरी फिल्में निर्देशित की हैं. उन्हें लव स्टोरी रोमांटिक फिल्मों का नया उस्ताद माना जा रहा है.
शशांक की अपनी खूबियां हैं जो उन्हें पिछली संगतों और पढ़ाई से मिली है. आदित्य चोपड़ा कीदिलवाले  दुल्हनिया ले जाएंगेके मुरीद शशांक खेतान की सिनेमाई समझ मैं सुभाष घई, नसीरुद्दीन शाह और करण जौहर की सीख और शैली का स्पष्ट असर है. इस अवसर में उनकी फिल्में मेनस्ट्रीम ढांचे में रहते हुए रियलिस्ट फील देती हैं.निश्चित ही उनकी इस खूबी को ध्यान में रखकर ही करण जौहर ने उन्हेंसैराटको हिंदी में लिखने और बनाने की मंजूरी दी होगी.
करण जौहर खास किस्म के फिल्मकार हैं.कुछ कुछ होता हैसे लेकरऐ दिल है मुश्किलमें अपने विषयों के चुनाव और निर्वाह  उनकी अलग रूमानी छवि बनी है.  उनके व्यक्तित्व और व्यवहार में  रूमानियत झलकती है. ऐसा  लग सकता है और लगता  भी है  कि जिंदगी की कठोर सच्चाइयों से करण जौहर का कोई वास्ता नहीं है इसलिए उनकी फिल्मों में वास्तविकता की गुंजाइश नहीं बनती है.किन्तु गौर करें तो बतौर निर्माता  करण जौहर नई कथाभूमियों की तलाश में दिखते हैं. हिंदी में सरकार बनाने का फैसला इसी तलाश का सबूत है. वे भिन्न सोच के निर्देशकों को मौके देते रहे हैं.धड़ककी घोषणा के समय से ही या आशंका व्यक्त की जा रही है की क्या उसमें  सैराटकी धड़कन होगी?
इस फिल्म के ट्रेलर पर मिक्स रिएक्शन आए.सैराटखोज रहे प्रशंसकों को घोर निराशा हुई, लेकिन नई फिल्म के तौर परधड़क' को देख रहे दर्शकों ने तारीफ की. इसके ट्रेलर और गानों को उन्होंने खूब पसंद किया. दरअसल,हम भारतीय किसी भी प्रकार की तुलना में गहरी रुचि और आनंद लेते हैं. पहले और पुराने की तुलना में नए की निंदा और आलोचना करना हमारा प्रिय शगल है. धोने,गिराने और कूटने में हमें मज़ा आता है.हमें आशंका रहती है कि नई फिल्म में पुरानी फिल्म जैसी  बात हो ही नहीं सकती.और फिर सैराट ने तो सफलता और सराहना का कीर्तिमान रचा है. भलाधड़कउसे दोहरा पाएगी?
हिंदी फिल्मों के इतिहास में हर पांच-आठ सालों के बाद आई लव स्टोरी  ने नया ट्रेंड शुरू किया है.बॉबी'(1973),’लव स्टोरी'(1981),’एक दूजे के लिए'(1981),’क़यामत से कयामत तक'(1988) औरमैंने प्यार किया’(1989) का उदहारण हमारे सामने है.इधर लम्बे समय से कपि प्रेमकहानी नहीं आई है,खासकर टीनएज उम्र की लव स्टोरी.इस बार तो ईशान खट्टर और जान्हवी कपूर दो नए चेहरे इस फिल्म के साथ लांच हो रहे हैं.मुझे लगता है किधड़क' देखते समयसैराटका चश्मा नहीं लगाना होगा.फिर हमेंधड़क' की धड़कन सुनाई देगी.

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