फिल्म समीक्षा : सूरमा
फिल्म समीक्षा
सूरमा
प्रेरक ज़िन्दगी और
फिल्म
-अजय ब्रह्मात्मज
‘सूरमा’ अर्जुन अवार्ड से सम्मानित हॉकी खिलाडी संदीप सिंह के जीवन पर आधारित
शाद अली निर्देशित फिल्म है. इसमें दिलजीत सिंह ने संदीप सिंह की भावपूर्ण और
ओजपूर्ण भूमिका निभाई है. संदीप सिंह हॉकी के नामी खिलाड़ी रहे हैं.यह फिल्म उनकी
जिंदगी और खेत न्याय उतार चढ़ाव को पूरी संजीदगी के साथ दिखाती हैं खिलाड़ियों पर
बन रहे बायोपिक का भी धीरे-धीरे एक फार्मूला बनता जा रहा है. यह फिल्म भी उस
फार्मूले से अंशतः प्रभावित है.
हरियाणा के
कुरुक्षेत्र जिले के शाहाबाद गांव के गुरुचरण सिंह औरदलजीत कौर के छोटे बेटे संदीप
सिंह स्थानीय कोच से आतंकित होकर हॉकी खेलना छोड़ देता है. उसका भाई बिक्रमजीत
हॉकी का अभ्यास जारी रखता है और राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बनता है.इस बीच संदीप
सिंह अपने ताऊ के खेतों में चिड़िया भगाने के लिए हॉकी स्टिक और गेंद का इस्तेमाल
करता है अनजाने में वह बहुत साधा हुआ फ्लिकर बन जाता है. पड़ोस की हरप्रीत उसे
बहुत पसंद है. वह भी हॉकी खेलती है. संदीप उसके खेल से प्रभावित होकर और उसे
लुभाने के लिए हॉकी खेलना शुरू करता है.
शुरू में हॉकी की तरफ
आकर्षित होने के संदीप सिंह के पास दो कार है एक तो वह प्रीत की नजरों में आना
चाहता है और दूसरे इंडिया टीम में भाई के ना चुने जाने पर वह हॉकी टीम में शामिल
होने की कोशिश करता है.कठिन अभ्यास से वह अपनी टीम का अच्छा डिफेंडर और ड्रैग
फ्लिकर बन जाता है. राष्ट्रीय टीम में उसका चुनाव होता है. अपनी टीम के साथ जर्मनी
से आने के लिए वह ट्रेन से दिल्ली जा रहा होता है कि अचानक एक गोली चलती है हंसता
खेलता संदीप सिंह जख्मी हो जाता है.अस्पताल पहुंचने पर मालूम होता है कि वह कमर के
नीचे लाचार हो चुका है वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता हॉकी खेलना तो दूर की
बात है.
चलो यहां से नाटकीय
मोड़ लेती है सूखे संदीप सिंह की कहानी सबको मालूम है और सभी जानते हैं कि वह अपनी
दृढ़ इच्छा शक्ति से ना केवल पैरों पर खड़े हुए,बल्कि फिर से नेशनल टीम में चुने गए
उन्होंने टीम का नेतृत्व किया वर्ल्ड कप जीत कर भारत लौटे. ‘सूरमा’ इसी जीवट के खिलाड़ी संदीप सिंह
के जोश और इरादे का खूबसूरत चित्रण करती है. फिल्म में अति भावुकता कहीं-कहीं
खटकती है,लेकिन भारतीय दर्शकों को प्रेम और परिवार की ऐसी भावुकता पसंद आती
है. फिल्म बहुत अच्छे तरीके से दिखाती है कि किसी एक के ऊपर मुसीबत आने पर कैसे
पूरा परिवार उसकी मदद में खड़ा होता है. ‘सूरमा' टिपिकल इंडियन फैमिली
फिल्म भी है.
संदीप सिंह का किरदार
दिलजीत दोसांझ ने निभाया है. उनकी प्रेरणा और प्रेमिका हरप्रीत की भूमिका में
तापसी पन्नू है. पंजाबी परिवेश के दोनों कलाकार पंजाबी चरित्रों में आसानी से घुल
गए हैं. दिलजीत की मासूमियत संदीप के किरदार को मजबूत करती है. इस फिल्म के लिए
उन्होंने हॉकी का भी अभ्यास किया है इसलिए कभी किरदार से बाहर जाते नहीं दिखाई
पड़ते हैं. फिल्म के नाटकीय और घटनापूर्ण दृश्यों में और एकाग्रता देखते ही बनती
है. दिलजीत दोसांझ को अभी तक फिल्मी भूमिकाओं के लिए न तो पगड़ी खोलनी पड़ी है और
ना बाल-दाढ़ी छोटे करने पड़े हैं.
तापसी पन्नू सरदार है
इस परिवेश के लड़कियों को वह विश्वसनीय तरीके से निभाती हैं. हरप्रीत के किरदार
में उन्होंने आज साज-संवार का मोहनी किया है. हॉकी
खेलने के दृश्यों में वह जंची हैं.बड़े भाई विक्रमजीत की भूमिका में अंगद बेदी दिल
जीत लेते हैं. उन्होंने पूरी संजीदगी से इसे निभाया है. लेखक-निर्देशक की तरफ से
उन्हें कुछ अच्छे दृश्य भी मिले हैं. छोटी भूमिका में सतीश कौशिक एक साथ भावुक और
दृढ दिखे हैं.तारों में आए कलाकार भी फिल्में जरूरत के मुताबिक उसने को जोड़ते
हैं. ‘सूरमा' में दो कोच हैं.दोनों का किरदार प्रहसनकारी.है.उनके संवाद व्यवहार
फिल्में छिटपुट हंसी बिखेरते हैं.
‘सूरमा’ प्रेरक फिल्म है यह देखी जानी चाहिए.एक नई तरह की कहानी कहने में शाद
अली सफल रहे हैं.
अवधि - 131 मिनट
.****
चार स्टार
Comments