सिनेजीवन : लता मंगेशकर की अपील
सिनेजीवन
लता मंगेशकर की अपील
-अजय ब्रह्मात्मज
लता मंगेशकर दुखी हैं। हाल ही में उन्होंने ट्वीटर पर अपना दुःख
जाहिर किया। जावेद अख्तर से हुई बातचीत के बाद उन्हें लगा कि अपने दुःख के विषय में
लिखना चाहिए। उन्हें इसे साझा करना चाहिए। अच्छी बात है कि लता जी हमेशा अपनी बात
और राय हिंदी में रखती हैं। उनकी भाषा सीढ़ी और सरल होती है। उन्होंने ट्वीट लॉन्गर
के जरिए अपनी बात 1015 शब्दों में रखी है।
जावेद अख्तर के हवाले से वह नमस्कार के साथ अपनी बात शुरू करती हैं।
वह लिखती हैं’जावेद अख़्तर साहब से मेरी टेलिफ़ोन पे बात हुई उसके बाद मुझे महसूस
हुआ कि मुझे उसपर कुछ लिखना चाहिए,तो वो बात आप सबके साथ साँझा कर रही
हूँ।’ स्पष्ट है कि फिल्म इंडस्ट्री के क्रिएटिव दिमाग आपस में बतियाते
रहते हैं। वे उन मसलों पर भी बातें करते हैं जो उन्हें मथती होंगी। पिछले दिनों
जावेद अख्तर के ही लिखे गीत ‘एक दो तीन …’ को लेकर अच्छा-खासा विवाद हुआ था। हालाँकि विवाद इस बात पर था कि
माधुरी के लटकों-झटकों को तमाम कोशिशों के बावजूद जैक्लीन फर्नांडिस रिपीट नहीं कर
पायीं। विवाद में यह भी बात उठी की ऐसे गानों को रीमिक्स करना कितना उचित-अनुचित
है। उस गाने का रीमिक्स भद्दा था,इसलिए समर्थकों की संख्या कम रही। हम देख रहे हैं की रीमिक्स का चलन
बढ़ रहा है।
इन दिनों पुराने गानों के अधिकार लेकर उन्हें नयी आवाज़,अंदाज और नाज़ के साथ
रीमिक्स किया जा रहा है। लता जी बताती हैं, ‘कुछ समय से मैं देख रही हूं कि स्वर्णिम
युग से जुड़े गीतों को नए ढंग से--re-mix के माध्यम से--पुन: पेश किया जा रहा है।
कहते हैं कि यह गीत युवा श्रोताओं में लोकप्रिय हो रहें हैं।’ ऐसे गानों पर आपत्ति करने पर
सम्बंधित म्यूजिक कंपनी और निर्माता-निर्देशक के साथ उस रीमिक्स से जुड़े गीतकार,संगीतकार और गायक इस
बात की दुहाई देने लगते हैं कि हम आज की पीढ़ी को क्लासिक गाने से परिचित करा रहे
हैं। सच्चाई यह है कि क्लासिक गाने पहले से ही लोकप्रिय हैं और हर पीढ़ी उन्हें
सुनती आ रही है। ज़्यादातर यही देखा गया है कि तेज़ धुन,अंग्रेजी बोल और आज
की आवाज़ शामिल कर पुराने गानों को नया रंग दिया जाता है। फिर उनकी लोकप्रियता के
डंके बजाये जाते हैं। इन कोशिशों के बाद भी रीमिक्स गाने थिएटर से फिल्म के उतरते
ही दिमाग से उतर जाते हैं।
लता मंगेशकर ने इस अपील में फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर हस्तियों का
हवाला देकर बताया है की सभी की मेहनत और प्रतिभा की वजह से हम आज इस मुकाम तक आये हैं।
उन्होंने उनके नाम गिनाये हैं। वह गुहार करती हैं, ‘अनगिनत गुणीजनों की प्रतिभा, तपस्या एवं मेहनत के
फलस्वरूप हिंदी सिनेमा के गीत बने और बन रहे हैं। लोकप्रियता के शैलशिखर पर
विराजमान हुए हैं, हो रहें हैं। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। मेरी प्रार्थना है इसके
साथ खिलवाड़ न करें।संगीत यह समाज एवं संस्कृति का प्रथम उद्गार है। उस के साथ
विद्रोह न करें।ये समस्त संगीतकार ,गीतकार और गायकों ने ये तय करना चाहिए
कि केवल लोकप्रियता पाने के लिए वो इस संगीत के खजानें का दुरुपयोग ना करें।’
लता जी स्वीकार करती हैं कि कुछ पुराने गीतों को सुन कर यह इच्छा
जागती है कि काश मैं भी इसे गा पाती? ‘सच पूछिए तो इस में आपत्ति की कोई बात
नहीं है। गीत का मूल स्वरूप कायम रख उसे नये परिवेश में पेश करना अच्छी बात है। एक
कलाकार के नाते मैं भी ये मानती हूँ की कई गीत कई धुनें ऐसी होती है कि हर कलाकार
को लगता है कि काश इसे गाने का मौक़ा हमें मिलता,ऐसा लगना भी स्वाभाविक है,परंतु, गीत को तोड़-मरोड़ कर
प्रस्तुत करना यह सरासर गलत बात है। और सुना है कि ऐसा ही आज हो रहा है और मूल
रचयिता के बदले और किसी का नाम दिया जाता है जो अत्यंत अयोग्य है।’ सचमुच मूल गायक,गीतकार और संगीतकार
नेपथ्य में चले जाते हैं और रीमिक्स कर रहे कलाकारों का नाम रोशन किया जाता है। यह ‘सरासर गलत ‘ और ‘अयोग्य ‘ बात है।
लता मंगेशकर म्यूजिक और रिकॉर्डिंग कंपनियों के दायित्व की याद दिलाती है और सपष्ट शब्दों
में कहती हैं,’हिंदी सिनेमा-गीतों की पवित्रता कायम रखने का और यह मसला योग्य तरह
से हल करने का दायित्व रेकार्डिंग कंपनियों का है ऐसा मैं मानती हूं लेकिन दुःख इस
बात का है कि कंपनियां ये भूल गयी हैं।यह कंपनियां अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह
करें ,संगीत को केवल व्यावसायिक तौर पे देखने के बजाय देश की सांस्कृतिक
धरोहर समझ के क़दम उठाए ऐसा मेरा उनसे नम्र निवेदन है।’
लता मंगेशकर के निवेदन को हलके शब्दों और अर्थों में नहीं लेना
चाहिए। वक़्त आ गया है कि सभी सम्बंधित व्यक्ति और प्रतिभाएं साथ बैठें और संगी की
धरोहर को नष्ट कर रही प्रवृति पर रोक लगाएं। हमें लता जी के सम्मान पर उनके निवेदन
को तरजीह देनी चाहिए।
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