सिनेमालोक : बनारस के बैकड्रॉप में ‘नक्काश’
सिनेमालोक
बनारस के बैकड्रॉप में ‘नक्काश’
-अजय ब्रह्मात्मज
कान फिल्म फेस्टिवल में हिंदी फिल्मों की हेरोइनों की धूम-झूम और कुछ
फिल्मों के बड़े स्टार की कवरेज में मीडिया में ‘नक्काश’ को नज़रअंदाज किया। ज़ैग़म इमाम निर्देशित
यह फिल्म बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब के दरकते पहलुओं को छूती हुई कुछ वाजिब सवाल
उठाती है। ‘ज़ैग़म बनारस की पृष्ठभूमि में हिन्दू-मुसलमान किरदारों को लेकर मौजूं
मसलों पर बातें करते हैं। उनकी यह खास खूबी है। ‘दोजख’ और ‘अलिफ़’ के बाद इसी परंपरा में ‘नक्काश’ उनकी तीसरी फिम है।
इसमें फिल्मिस्तान’ और ‘एयरलिफ्ट’ फेम इनामुल हक़ इसमें मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के अपने अनुभवों को इनामुल ने शेयर
किया था। उनके अनुसार,’बनारस में शूटिंग का पहला दिन था...छोटे शहरों की 'सिनेमाई जिज्ञासा' भीड़ में बदलने लगी थी, उसी भीड़ से कुछ नौजवान
ये कहते हुए नज़दीक आ रहे थे कि चलो देखते हैं 'हीरो' कौन है"?...जैसे ही उनकी ये बात मेरे कानों तक पड़ी 'ब-ख़ुदा' मैं छुप गया था...
वजह बहुत सीधी सी है..उनकी उत्सुकता को 'निराशा' में नही बदलना चाहता था । मुझे पता है 'हीरो' क्या होता है...रोज़
आईना देखता हूँ इसलिए किसी ग़लतफ़हमी में नहीं हूँ । लेकिन सपनों की कोई 'बाउंडरी वाल' नही होती...इसलिए
अपने आपको कभी भी ये सोचने से नही रोक पाया कि किसी फ़िल्म में 'लीड रोल' हो । नियति पूर्व
निर्धारित है हमें बस मदद करनी होती, उसकी राहों की रुकावटें हटानी होती है, उसे 'घट जाने देने' के लिए...घट जाना
दरअसल बढ़ जाना ही होता है । पिछले छह महीने में बहुत कुछ 'घटा' इसलिए कुछ बढ़ पा रहा
हूँ । ‘ इनामुल और उन जैसे दर्जनों कलाकारों के लिए कान पहुंचना किसी मुश्किल
सफर की मंज़िल से कम नहीं है। पिछले कुछ सालों में इनामुल सरीखे अनेक ‘आउटसाइडर’ कलाकार हिंदी फिल्म
इंडस्ट्री में अपने अभिनय के डैम पर पहचान बना कर आगे बढ़ रहे हैं।
‘नक्काश’ के मूल विचार के बारे
में ज़ैग़म कहते हैं,’यह एक ऐसे मुसलमान कारीगर की कहानी है जो मंदिरों में नक्काशी का काम
करता है। मंदिरों के गर्भ गृह में ऐसी नक्काशियां होती हैं। फिल्म में इस कला के
जानकारी के साथ यह भी बताया गया है कि कैसे कारीगर अल्लारखा सिद्दीक़ी समाज में हो
रहे बदलावों की वजह से अब दबाव में है। उसे अपने समुदाय और हिन्दुओं से भी विरोध
झेलने पड़ रहे हैं। मुश्किल में भगवान दास वेदांती भी हैं कि वे नए दौर में कैसे इस
परंपरा का निर्वाह करें? अल्ला मियां दशकों से भगवान दास के निर्देश पर मंदिरों में नक्काशी
करते रहे हैं,लेकिन नए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से दोनों सांसत में हैं।' अपने समुदायों के
दोनों प्रतिनिधि के आत्मसंघर्ष को बनारस के बदले राजनीतिक परिदृश्य में हम देखेंगे।
बनारस की सदियों पुरानी सामासिक संस्कृति खतरे में है।
ज़ैग़म इमाम ने पहले दोनों फिल्मों की तरह ‘नक्काश’ की भी शूटिंग बनारस
में की है। इस फिल्म के लिए उन्होंने सेट तैयार किया और वास्तविक कारीगरों से
खूबसूरत नक्काशी करवाई। उन्होंने कुछ स्थानीय कलाकारों के साथ मुंबई से गए कुमुद
मिश्रा और शारिब हाशमी को उन्होंने प्रमुख भूमिकाएं सौंपी हैं। फिल्म के फर्स्ट लुक
को जारी करने के लिए कान जाने की ज़रुरत पर वे कहते हैं,’इस से थोड़ी चर्चा हो
जाती है और फिल्म ट्रेड के साथ दर्शकों के बीच भी जिज्ञासा बढ़ जाती है। हमें लाभ हुआ
है। अस फिल्म में लोग रूचि दिखा रहे हैं।’ क्या फिल्म के विषय और चित्रण को लेकर
विवाद नहीं होगा?’मुझे तो नहीं लगता। मैंने विवादस्पद विषय नहीं चुना है। अगर कोई सवाल
करेगा तो मेरे पास जवाब है। मैं खुद बनारस की पैदाइश हूँ। वही मेरी परवरिश हुई
है। मैं हो रहे बदलावों को करीब से देख रहा हूँ,’दोटूक जवाब देते हैं ज़ैगम इमाम।
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