राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
हमारे दौर की बड़ी समस्या है कि हम मूल ड्राफ्ट नहीं देखते। फिल्म समारोह निदेशालय की वेबसाइट से यह अभिलेख लिया गया है। खुद पढ़ लें।
राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
भारत सरकार द्वारा भारतीय सिनेमा के समूचे
राष्ट्रीय प्रतिबिंब को सम्मिलित करने, देश के उच्चतम संभव मानदण्ड
द्वारा योग्यता का निर्णय करने और सबसे लोलुप और प्रतिष्ठित पुरस्कार
बनने, कलात्मक, समर्थ और अर्थपूर्ण फिल्मों के निर्माण के लिए भारत सरकार
द्वारा वार्षिक प्रोत्साहन के रूप में फिल्मों के लिए राष्ट्रीय
पुरस्कार की शुरूआत की गई।
वर्ष 1954 में जब सबसे पहले वर्ष 1953 की फिल्मों हेतु पुरस्कार दिए
गए थे, तब से वर्तमान वर्ष 2016 तक की फिल्मों के लिए उच्च पुरस्कार हाल
ही में दिए गए, यहां इस पुरस्कार योजना की 64 वर्षों पुरानी एक कहानी
रही है, जो अपने आप में सबसे अनोखी है।
किसी भी अन्य देश में एक के बाद एक वर्ष में अच्छे सिनेमा को ऐसे
व्यापक और आर्थिक तौर पर पुरस्कृत रूप में बढ़ावा नहीं दिया जाता है।
बदले में इसने कईं वर्षों से सृजनात्मक, गंभीर, सिनेमाई और महत्वपूर्ण
फिल्मों के निर्माण को प्रेरित करने और बढ़ावा देने का कार्य किया।
हर साल सबको देखने हेतु बेहतरीन काम तथा व्यक्तिगत उपलब्धि को
उच्चतम राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता देते हैं। यह स्वयं पहचान और साथ
में पर्याप्त नकद पुरस्कार जीतने के आग्रह उत्पन्न करने के ज़रिए बेहतर
फिल्म निर्माण के लिए ज़बरदस्त प्रेरणा और नेतृत्व प्रदान करता है।
राष्ट्रीय पुरस्कार का दूसरा प्रशंसनीय पक्ष सभी भाषाओं की अच्छी
फिल्मों को बढ़ावा देना है जो भारत द्वारा लगभग बीस भाषाओं और उप-भाषाओं
में फिल्मों के निर्माण करने को ध्यान में रखते हुए बहुत लम्बा कार्य
है। वैसे ही वृत्तचित्रों को, यदि लघु हो या अत्यधिक दीर्घ विभिन्न
श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
यदि हम पीछे की ओर बीते दशकों पर सरसरी नज़र डालें तो पायेंगे कि जो
पुरस्कार, जिसे पहले ‘स्टेट अवार्ड्स’ कहा गया था, वह छोटे पैमाने पर
राष्ट्रपति के दो सोने के पदकों, योग्यता के दो प्रमाणपत्रों और दर्जनों
क्षेत्रीय फिल्मों के लिए रजत पदक के साथ शुरू किए गए थे। पहले के 6 वर्ष
राष्ट्रीय श्रेष्ठ फिल्म को ही क्षेत्रीय श्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार
दिये जाने की पद्धति थी। बाद में प्रत्येक भाषा की दो या तीन फिल्मों को
योग्यता का एक पदक या प्रमाणपत्र दिया गया।
वर्ष 1968 में 1967 की फिल्मों के अभिनेता और तकनीशियनों के लिए पृथक
पुरस्कार प्रदान करना प्रारंभ किया, नर्गिस दत्त और उत्तम कुमार उसे
प्राप्त करने वाली पहली अभिनेत्री और अभिनेता बने। कुछ समय के लिए इसे
उर्वशी और भारत पुरस्कार कहा गया था लेकिन बाद में पुरस्कारों के नाम बदल
गए।
राष्ट्रीय पुरस्कार उनके प्रारंभ से अपने लक्ष्य और उद्देश्य में
कईं परिवर्तन से गुज़रे। प्रारंभिक वर्षों में ‘पथेर पान्चाली’ जैसे
दुर्लभ मामलों के अलावा, रूप से ज्यादा महत्व सारांश को देते हुए प्रतीत
होता है। लेकिन समय के साथ-साथ फिल्म निर्माताओं द्वारा साधन के विभिन्न
पहलुओं के खोज और निर्णायक मंडली में सिनेस्टेस की नियुक्ति आदि ने
बृहद् परिवर्तन उपस्थित किया और अब रूप तथा तकनीक भी सारांश और
विषयवस्तुगत धारणा के समान महत्वपूर्ण माना जाने लगा।
और इस तरह 2017 के फिल्मों के लिए पुरस्कार देते हुए राष्ट्रीय
पुरस्कार उनके 65वें साल में कदम रख रहे हैं। हम आशा कर सकते हैं कि अपने
में पूर्ण प्रौढ़ आकार देने वाली यह योजना बेहतर फिल्म निर्माण को बढ़ावा
देगी और बेहतर फिल्म निर्माण के पूरे प्रयास पर प्रकाश डालेगा चाहे वे जिस
भी स्त्रोत से आते हैं और संभवत: जिस भी भाषा में हो।
राष्ट्रीय पुरस्कार देश के विभिन्न क्षेत्रों में चलचित्रात्मक रूप
में संस्कृति का मेल-मिलाप और सम्मान के लिए योगदान देने वाले कलात्मक
तथा तकनीकी उत्कर्ष और सामाजिक प्रासंगिकता से युक्त फिल्मों के निर्माण
को बढ़ावा देने पर लक्षित है और तद्वारा राष्ट्र की अखंडता और एकता को भी
बढ़ावा दे रही है। पुरस्कार सिनेमा का अध्ययन और एक कला के रूप में सम्मान
देने और सूचना का प्रसार और पुस्तक, लेख, समालोचना आदि के प्रकाशन के जरिये
इस कला रूप के आलोचनात्मक मूल्यांकन को भी बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं।
राष्ट्रीय पुरस्कार, सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ सम्मान, दादा साहब फालके
पुरस्कार के साथ महत्वपूर्ण समारोह में भारत के राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय
मंत्री, सूचना एवं प्रसारण, तीन निर्णायक मंडलियों के अध्यक्ष, भारत के
फिल्म महासंघ के प्रतिनिधि और अखिल भारतीय फिल्म कर्मचारी संघ और वरिष्ठ
कर्मचारियों की उपस्थिति में प्रदान किया जाता है ।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अब अपने 65वें वर्ष में अपने चलचित्रात्मक
उत्कर्ष को रेखांकित करना जारी रखता है। पुरस्कार ने वर्षों से भारतीय
सिनेमा में निहित श्रेष्ठ प्रतिभा को राष्ट्रीय लोक प्रसिद्धि में लाया।
उनके आधी शताब्दी के लम्बे इतिहास में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ने
बहुसंख्यक प्रतिभा को परिपोषित किया है जो अब राष्ट्रीय प्रतीक हैं और
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जाने जाते हैं।
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