दरअसल : भारत में ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी
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भारत में ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी
-अजय ब्रह्मात्मज
माजिद मजीदी की फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’
रिलीज हो रही है। इस फिल्म में करण जौहर की शशांक खेतान निर्देशित ‘धड़क’ के नायक
ईशान खट्टर हैं। ईशान खट्टर शाहिद कपूर के सहोदर भाई हैं। दोनों की मां एक हैं
नीलिमा अजीम। अभी माजिद मजीदी की फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’ में ईशान खटटर की
वजह से मीडिया और दर्शकों की रुचि बढ़ गई है,क्योंकि करण जौहर उन्हें जान्हवी
कपूर के साथ नए सिरे से लांच कर रहे हैं। पिछले साल गोवा के इंटरनेशनल फिल्म
फेस्टिवल में यह आपनिंग फिल्म थी,लेकिन तब इसकी कोई चर्चा नहीं हो पाई थी। माजिद
मजीदी ईरान के सुप्रसिद्ध निर्देशक हैं। उनकी फिल्में अनेक इंटरनेशनल पुरस्कारों
से नवाजी जा चुकी हैं। लगभ बीस साल पहले आई ‘चिल्ड्रेन ऑफ हेवन’(1997) और ‘द कलर
ऑफ पैराडाइज’(1999) उनकी बहुचर्चित और पुरस्कृत फिल्में हैं। ईरान में रहते हुए
उन्होंने इंटरनेशनल ख्याति हासिल की। उन्हें विदेशों से निर्देशन के ऑफर आते
रहे। 15 साल पहले सन् 2003 के इंटरव्यू में उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि
वे देश के बाहर जाकर दूसरी भाषा में फिल्म बनाने की कल्पना नहीं कर सकते। आज सच्चाई
यह है कि उन्होंने भारत आकर हिंदी में फिल्म निर्देशित की। इसके पहले वे चीन
सरकार के आमंत्रण में पेइचिंग ओलिंपिक के समय वहां भी फिल्म बना चुके हैं। भारत
में उनकी दूसरी फिल्म की भी योजना बन रही है।
किसी भी फिल्मकार के लिए दूसरे देश में जाकर
अपरिचित भाषा में फिल्म बनाना बड़ी चुनौती होती है। पूरी दुनिया में ऐसे कम फिल्मकार
हैं। अधिकांश फिल्मकारों ने अपनी भाषा में नाम और प्रतिष्ठा हासिल करने के बाद
अंग्रेजी में फिल्में जरूर बनाई हैं। कुछ ने हालीवुड जाकर भी हाथ आजमाया है।
अंग्रेजी का अपवाद चल जाता है,क्योंकि वह इंटरनेशनल भाषा है। सभी देशों में वह
बोली और समझी जाती है। इस लिहाज से माजिद मजीदी के प्रयास की तारीफ करनी होगी। उन्होंने
भारत आकर हिंदी में मुंबई की पृष्ठभूमि की फिल्म निर्देशित की। उनकी ‘बियांड द
क्लाउड्स’ हिंदी की मेनस्ट्रीम फिल्म से अलग है। उन्होंने पैरेलल सिनमा के दौर
की शैली में 2017 में फिल्म बनाई है। यही कारण है कि फिल्म की गति और प्रस्तुति
से आज के दर्शक माजिद मजीदी के नाम के प्रभाव के बावजूद मुग्ध नहीं हुए। इस फिल्म
के संवाद विशाल भारद्वाज ने लिखे हैं और संगीत ए आर रहमान का है। इन महारथियों के
सहयोग के बाद भी ‘बियांड द क्लाउड्स’ कमजोर फिल्म है। वास्तव में यह संस्क्ृति
और पृष्ठभूमि की भिन्नता का परिणाम है। अगर फिल्म की भाषा पर आप का अधिकार नहीं
है तो किसी और पर निर्भरता बढ़ती है। ऐसे में बेहतरीन निर्देशकों की भी मौलिकता का
क्षरण होता है।
यों भारत और ईरान के सांस्कृतिक और फिल्मी
संबंध बहुत पुराने हैं। भारत में ईरान की फिल्में खूब पसंद की जाती हैं। ईरान में
भारत की मेनस्ट्रीम फिल्मों के दर्शक हैं। ईरान की फिल्म इंडस्ट्री भारत की
हमेश ऋणी रहेगी। भारत के सहयोग से ही वहीं की इंडस्ट्री की नींव पड़ी। ईरान की
पहली फिल्म का निर्माण भारत के निर्माता आर्देशिर ईरानी ने किया था। उन्होंने
1933 में ईरान की पहली फिल्म ‘दोखतर ए लोर’ का निर्देशन किया था। भारत में जन्मे
ईरानी मूल के आर्देशिर ईरानी अनेक ‘फर्स्ट‘ के नियंता रहे। उन्होंने 1931 में
भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण और निर्देशन किया। उन्होंने 1934
में पहली अंग्रेजी फिल्म ‘नूरजहां’ का निर्माण किया। इसके साथ ही वे भारत की पहली
कलर फिल्म ‘किशन कन्हैया’ के भी निर्माता रहे। उनकी इस फिल्म के लेखक सआदत हसन
मंटो थे।
आर्देशिर ईरानी से माजिद मजीदी तक भारत-ईरान के
फिल्मी संबंधों को रेखांकित करने की जरूरत है। सत्यजित राय से प्रभावित माजिद
मजीदी भारतीय प्रतिभाओं के साथ अगर अपनी चर्चित फिल्मों के स्तर का काम करें तो
सही मायने में उनके योगदान और प्रयोगां का महत्व होगा। ‘बियांड द क्लाउड्स’ जैसी
साधारण फिल्मों में अवसर विलीन हो जाते हैं। निराशा होती है।
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