सिनेमालोक : श्री देवी की याद में
सिनेमालोक
श्री देवी की याद में
-अजय ब्रह्मात्मज
हम हिंदी भाषी और हिंदी दर्शक् अपनी
भाषा और समाज के दायरे में इस तरह लिप्त रहते हैं कि दूसरी भाषाओं के साहित्य और
सिनेमा की कद्र नहीं करते। हमें अपनी हिंदी की दुनिया ही संपूर्ण लगती है। रविवार
की सुबह आई श्री देवी के आकस्मिक निधन की मनहूस खबर के बाद वेब,इंटरनेट,अखबार और सोशल मीडिया पर उनसे संबंधित सामग्रियों और जानकारियों की अति
पोस्टिंग हो रही है। इनमें से अधिकांश में उनकी हिंदी फिल्मों
और मुंबई के जीवन की ही बातें हो रही हैं। हिंदी फिल्मों में तो उनकी पहली फिल्म
‘सालवां सावन’ 1979 में आई थी। उसके पहले वह अनेक तमिल और तेलुगू फिल्मों में काम कर
चुकी थीं। हिंदी के दर्शक और पाठक उन फिल्मों के बारे में बातें नहीं करते,क्योंकि वे उनके बारे में नहीं जानते। और जानना भी नहीं चाहते।
सिर्फगूगल कर लें तो भी मालूम हो जागा
कि उन्होंने 1967 से 1979 के बीच लगभग एक दर्जन फिल्मों के औसत से 100 से अधिक
फिल्मों में काम किया। कमल हासन के साथ ही उनकी 27 फिल्में हैं। अगर दक्षिण की
भाषाओं की उनकी फिल्मों पर गौर करें तो उनकी विविधता और क्रिएटिविटी का अंदाजा
लगता है। उन्हांने हर विधा और शैली की फिल्में कीं। दक्षिण के निर्देशकों ने बाल
कलाकार के तौर पर भी उन्हें बेहतरीन मौके दिए। किशोरउम्र में ही उन्हें हीरोइन
की भूमिकाएं मिलने लगी थीं। मजेदार तथ्य है कि चार साल की उम्र से फिल्मों में
एक्टिव श्री देवी की परवरिश स्टूडियो और लोकेशन पर कैमरे के सामने हुई। सामान्य
जीवन के अनुभवों से वह वंचित रहीं। फिर भी उन्होंने अपने हर तबके और आयाम के
किरदारों को पर्दे पर जीवंत किया। वह अपनी भूमिकाओं में जंचीं और पसंद की गईं। एक
तरह से वह डायरेक्टर की अभिनेत्री रहीं। उन्होंने अपने निर्देशकों से सीखा और
अभिनय व एक्सप्रेशन के लिए उनके निर्देशों का पालन किया। फिल्मों का सेट ही उनका
विद्यालय बना और निर्देशक शिक्षक।
परसों से उन्हें फिल्म बिरादरी के
सदस्य श्रद्धांजलि देर रहे हैं। सोशल मीडिया के शोक संदेशों में उनकी कमी दोहराई
जा रही है। सभी की एक ही शिकायत है कि यह उनके जाने की उम्र नहीं थी। उनके संदेशों
का मर्म सही है,लेकिन
कोई भी उनकी व्यक्तित्व और अभिनय की विशिष्टता नहीं जाहिर कर रहा है। मैं यहां
दो व्यक्तियें का उल्लेख करूंगा। कमल हासन और आदिल हुसैन...अगर आप श्री देवी के
प्रशंसक हैं और उनकी खसियत जानना चाहते हैं तो इंटरनेट
से इन दोनों की श्रद्धांजलि खोज कर जरूर देखें। कमल हासन ने उनके नायक और मेंटोर
रहे। री देवी के तरह वे भी बाल कलाकार रहे। कुछ फिल्मों में उन्हें श्री देवी को
अभिनय और नृत्य सीखने की जिम्मेवारी मिली। उन्होंने पाया कि श्री देवी हर दिन खुद को सुधारती हैं। कुछ नया सिखने की ललक उनमें हमेशा
रही। उनकी इस आदत की तारीफ हिंदी फिल्म के निर्देशक भी करते हैं। श्री देवी ने
फिल्मों से सीखा और फिल्मों को दिया। आदिल हुसैन ने किरदारों के स्वाभाव की उनकी
बारीक़ समझ की दाद दी। उन्होंने 'इंग्लिश विंग्लिश' के कुछ दृढयों के हवाले से यह सब बताया।
इन दिनों हिंदी फिल्मों में सहज,स्वाभाविक और रियल
अभिनय पर जोर दिया जा रहा है। श्री देवी उन अभिनेत्रियों में से आखिरी हैं,जिन्होंने अभिनय में भारतीय फिल्मों की नैसर्गिक परंपरा और नाट्यशास्त्र
के नवरस डीके निर्वाह किया। वह 'स्विच ऑन,स्विच ऑफ' अभिनेत्री थीं। उनके सहयोगी कलाकार बताते
हैं कि कैमरा ऑन होते ही उन पर जादू तारी होता था और निर्देशक को मनमाफिक शॉट मिल
जाते थे। सहयोगी कलाकारों को चिट करने या उन पर हावी
होने की कोई कोशिश उनकी नहीं होती थी। हिंदी और भारतीय फिल्मों में ऐसी नैचुरल
अभिनेत्री की कमी महसूस होगी। उन्हें याद करते हुए हमें उनकी अभिनय शैली की इन
बारीकियों को नहीं भूलना चाहिए।
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