सिनेमालोक : घट रहे हैं सिनेमाघर
सिनेमालोक
घट रहे हैं सिनेमाघर
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों अद्वैत
चंदन निर्देशित ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ चीन में रिलीज हुई और इसने 750 करोड़ रुपए से
ज्यादा का कारोबार किया। इसे पहले ‘बाहुबली’ और ‘दंगल’ के चीनी कारोबार ने भी
चौंका दिया था। इस साल किसी हिंदी फिल्म ने इतना कारोबार नहीं किया है। ‘पद्मावत’
अभी तक 300 करोड़ का भी कारोबार नहीं कर पाई है। एक बड़ा कारण अधिक से अधिक स्क्रीन
में फिल्मों का रिलीज होना है। ताजा आंकड़ो के मुताबिक भारत में सिनेमाघरों की
संख्या घट कर 9000 से भी कम रह गई है। सिंगल स्क्रीन लगातार टूट रहे हैं। मल्टीप्लेक्स
3 से 4 प्रतिशत की रु्तार से बढ़ रहे हैं। नतीजा यह है कि हिंदी या अन्य भारतीय
फिल्मों को अपेक्षित रिलीज नहीं मिल पा रही है। एक ‘पद्मावत’ आती है तो बाकी फिल्मों
को आगे खिसकना पड़ता है। पता करं तो चीन में ‘बाहुबली’ 6000 स्क्रीन और ‘दंगल’ 9000
स्क्रीन में रिलीज हुई थी। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं भारत में कोई भी
फिल्म सर्वाधिक करोबार भी करे तो कुल कलेक्शन क्या होगा? इसके अलावा टिकट दर
भी एक कारण है। भारत में मल्टीप्लेक्स में कहीं-कहीं टिकटों का दर 1000 रुपए भी
है। बाकी 6000 सिंगल स्क्रीन में औसतन टिकट दा 100 रुपए के करीब है।
आप अपने कस्बों और
शहरों को याद करें और पता करें तो मालूम होगा कि हर कस्बे और शहर में सिनेमाघरों
की संख्या उत्तरोत्तर कम हो रही है। 2009 में देश में सिंगल स्क्रीन की संख्या
9017 थी। 2015 तक में यह घट कर 6000 हो गई। उसके बाद के दो सालों में और कुछ सौ
सिनेमाघर बंद हो गए होंगे। गौर करें तो पिछले एक दशक में दर्शकों की संख्या बढ़ी
है। फिल्मों के मुख्य दर्शक युवक होते हैं। देश में युवकों की जनसंख्या उफान पर
है। उन्हें सिनेमाघर नहीं मिल रहे हैं तो वे फिल्म देखने की वैकल्पिक युक्तियां
तलाश रहे हैं। खोज करें तो मालूम होगा कि रिलीज के दिन ही फिल्मों की डिजीटल कॉपी
गांव-देहात तक पहुंच जाती है। मुंबई की लोकल और गेस्ट बसों में मुंबईकर बेहिचक अपने
स्मार्टफोन पर ताजा फिल्में देख रहे होते हैं। पड़ोसी यात्री कर चाहत और उत्सुकता
हो तो उन्हें पायरेटेड फिल्म शेयर करने में दिक्कत नहीं होती। यह एक अलग समस्या
है,जिसका अप्रत्यक्ष रिश्ता सिनेमाघरों की कमी से है। सिनेमाघर बढ़ं और टिकट
दरें किफायती हों तो दर्शक् सिनेमाघरों में लौटेंगे। वे सिनेमा का आनंद उठाना
सीखेंगे। यकीन करें मोबाइल या लैपटॉप पर फिल्म देखने का अनुभव कभी भी सिनेमाघर की
बराबरी नहीं कर सकता। हम ने देश में फिल्मों के रसास्वादन का पाठ भी तो नहीं
पढ़ाया है।
पड़ोसी देश चीन में
सिनेमाघरों की संख्या 45,000 से अधिक है। वहां जनसंख्या और सिनेमाघरों की संख्या
का अनुपात भारत से बेहतर है। यही कारण है कि चीन में व्रदर्शित् भारतीय फिल्मों
का कारोबार भी अपने देश से कई गना ज्यादा होता है। कल्पना करें कि अगर भारत में
भी सिनेमाघरों की संख्या 45,000 हो जाए और ‘पद्मावत’ 20,000 स्क्रीन में रिलीज
हो तो कुल कारोबार की राशि क्या होगी? अभी तो यह स्थिति है कि दो से अधिक बड़ी फिल्में
साथ में आ जाती हैा तो स्क्रीन की मारामरी हो जाती है। ताकतवर प्रोडक्शन कंपनी
कमजोर को स्क्रीन ही नहीं लेने देती। पिछले सालों में प्रोडक्शन कंपलनयों के
झगड़े भी विद्रूप ढंग से साने आए। मुझे लगता है कि केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट
फिल्म नीति बना कर इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए। हिंदी प्रदेशों की राज्य
सरकारों को इस तरफ जल्दी से ध्यान देना चाहिए। उन्हें वितरकों और प्रदर्शकों के
सहयोग से कुछ करना चाहिए। सिनेमाघर बढ़ेंगे तो उनका राजस्व भी बढ़ेगा।
originaly published in Lokmat Samachar
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